श्री राधा रसिक बिहारी की, मेरे प्यारे निकुंज बिहारी की, प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की, मैं तो आरती उतारूं रे, श्री राधा रसिक बिहारी की।।
मोर पखा अलके घूंघराली, बार बार जाऊँ बलिहारी, कुंडल की छवि न्यारी की, प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की, मैं तो आरती उतारूं रे, श्री राधा रसिक बिहारी की।।
साँवरिया की साँवरी सूरत, मन मोहन की मोहनी मूरत, तिरछी नज़र बिहारी की, मेरे प्यारे निकुंज बिहारी की, मैं तो आरती उतारूं रे, श्री राधा रसिक बिहारी की।।
गल सोहे वैजंती माला, नैन रसीले रूप निराला, मन मोहन कृष्ण मुरारी की, प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की, मैं तो आरती उतारूं रे, श्री राधा रसिक बिहारी की।।
पागल के हो प्राणन प्यारे, प्राणन प्यारे नैनन तारे, मेरी श्यामा प्यारी की, श्री हरीदास दुलारी की, मैं तो आरती उतारूं रे, श्री राधा रसिक बिहारी की।।
मैं तो आरती उतारूँ रे, श्री राधा रसिक बिहारी की, मेरे प्यारे निकुंज बिहारी की, प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की, मैं तो आरती उतारूं रे, श्री राधा रसिक बिहारी की।।
यह आरती भगवान कृष्ण की स्तुति करती है, जिन्हें बाँके बिहारी के रूप में भी जाना जाता है। आरती में, भक्त कृष्ण की सुंदरता और गुणों की प्रशंसा करते हैं। वे उनके मोर पंखों के अलकों, उनकी घुंघराले बालों, उनकी सांवली त्वचा, उनकी तिरछी नजर, उनकी वैजंती माला और उनकी रसीली आँखों की प्रशंसा करते हैं। वे कृष्ण को अपने प्राण और नैनों के तारे बताते हैं और उन्हें श्री हरीदास की प्रिय श्यामा कहते हैं।
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।