कबीरदास जी के इस भजन में, वे सन्देश देते हैं की जब वे अपने ईश्वर के प्रेम का अनुभव करते हैं, तो वे बहुत खुश और आनंदित हो जाते हैं। वे अपने प्रेम और खुशी को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं खोज सकते।
कबीरदास जी कहते हैं कि उनके ऊपर प्रेम का बादल बरस गया है। इस बादल के कारण, उनकी आत्मा आनंदित हो गई है और वह एक हरे भरे जंगल की तरह महसूस कर रही है। मन मस्त हो गया है और वे कुछ भी नहीं बोल सकते। वे अपनी खुशी और प्रेम को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं खोज सकते। जब वे अपने ईश्वर के प्रेम को प्राप्त करते हैं, तो उन्हें कोई और चीज चाहिए नहीं होती। उनका मन प्रेम से भरा होता है, तो उन्हें किसी और चीज की आवश्यकता नहीं होती। वे पहले से ही पूर्ण हैं।
मन मस्त हुआ अब क्या बोले लिरिक्स Man Mast Hua Aub Kya Lyrics, Man Mast Hua Aub Kya Bole
आज बदरा उठा प्रेम का,हम पर दरसा होई,
हर्शिली हो गई आत्मा,
हरी भरी बन रई,
मन मस्त हुआ,
अब क्या बोले।
क्या बोले फिर क्या बोले,
मन मस्त हुआ अब क्या बोले,
हलकी थी जब चढ़ी तराजू,
पूरी भरी अब क्यों तौले,
मन मस्त हुआ, अब क्या बोले,
हीरा पाया गाँठ गठियाया,
बार बार वा को क्यों खोले,
मन मस्त हुआ, अब क्या बोले,
हीरा पाया, बाँध गठरिया,
बार बार वा को क्यों खोले,
मन मस्त हुआ अब क्या बोले,
हंसा नहाया मानसरोवर,
ताल तालरिया में क्यों डौले,
मन मस्त हुआ अब क्या बोले।
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
साहिब मिल गया तिल ओले,
मन मस्त हुआ अब क्या बोले।
द्वितीय भजन : सेकंड वर्शन
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले
क्या बोले फिर क्योँ बोले,
हीरा पाया बांध गठरिया,
हे, बार बार वाको क्यों खोले
हलकी थी जब चढ़ी तराजू,
हे, पूरी भई तब क्या तोलै
हंसा पावे मानसरोवर,
हे, ताल तलैया में क्यों डोले
तेरा साहब है घर माँहीं,
हे बाहर नैना क्यों खोलै
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
हे, साहिब मिल गया तिल ओले
मन मस्त हुआ अब क्या बोले,
हीरा पाया, बाँध गठरिया,
बार बार वा को क्यों खोले,
मन मस्त हुआ अब क्या बोले,
हंसा नहाया मानसरोवर,
ताल तालरिया में क्यों डौले,
मन मस्त हुआ अब क्या बोले।
Mann Mast Hua | Kabir | मन मस्त हुआ | Devotional Poem | Alaap - Songs from Sadhguru Darshan
Lyrics and Meaning:
Aaj badra utha prem kaHum par barsa hoi
Clouds of love have risen today...
They have showered down on me
Harshili ho gayi aatma
Hari bhari ban rayi
The life within me is now full of joy…
And the world around me serene
Mann mast hua, ab kya bole
My heart is now drunk on love, I find no need to speak…
Kya bole phir kya bole
Oh how can i describe this!
Halki thi jab chadi taraaju, Puri bhari ab kyon tole;
i climbed the weighing scale, when i felt small
what is the need to measure, now that i feel full!
Mann mast hua, ab kya bole
My heart is now drunk on love, I find no need to speak…
Heera paaya, baandh gathariya, Baar-baar vaa ko kyon khole;
I have found an invaluable gem and tied it safely within...
Why open the knot again and again?
Mann mast hua, ab kya bole
My heart is now drunk on love, I find no need to speak…
Hansa nahaaya Mann sarovar, taal taleiya mein kyon dole;
This swan has bathed in the lake Manasarovar...
Now why would it dwell in ponds and puddles?
Mann mast hua, ab kya bole
My heart is now drunk on love, I find no need to speak…
Kehat kabir suno bhayi saadho, Sahib mil gayaa til ole
Kabir says, listen dear fellow seekers, I have found the divine even in a grain!
Mann mast hua, ab kya bole
My heart is now drunk on love, i find no need to speak
एक बूंद एकै मल मूत्र, एक चम् एक गूदा।
एक जोति थैं सब उत्पन्ना, कौन बाम्हन कौन सूदा।।
वैष्णव भया तो क्या भया बूझा नहीं विवेक।
छाया तिलक बनाय कर दराधिया लोक अनेक।।
प्रेम प्याला जो पिए, शीश दक्षिणा दे l
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का ले ll
काँकर-पाथर जोरि के मस्जिद लियो चुनाय।
त चढ़ि मुल्ला बाँग दे क्या बहरो भयो खुदाय ॥
एकहि जोति सकल घट व्यापत दूजा तत्त न होई।
कहै कबीर सुनौ रे संतो भटकि मरै जनि कोई॥
एक जोति थैं सब उत्पन्ना, कौन बाम्हन कौन सूदा।।
वैष्णव भया तो क्या भया बूझा नहीं विवेक।
छाया तिलक बनाय कर दराधिया लोक अनेक।।
प्रेम प्याला जो पिए, शीश दक्षिणा दे l
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का ले ll
काँकर-पाथर जोरि के मस्जिद लियो चुनाय।
त चढ़ि मुल्ला बाँग दे क्या बहरो भयो खुदाय ॥
एकहि जोति सकल घट व्यापत दूजा तत्त न होई।
कहै कबीर सुनौ रे संतो भटकि मरै जनि कोई॥
यह भजन कबीरदास जी द्वारा रचित एक भक्ति गीत है। इस भजन में, कबीरदास जी अपने भक्तों को बता रहे हैं कि जब उन्हें अपने ईश्वर के प्रेम का अनुभव होता है, तो वे बहुत खुश और आनंदित हो जाते हैं। वे अपने प्रेम और खुशी को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं खोज सकते। भजन के पहले दो लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि उनके ऊपर प्रेम का बादल बरस गया है। इस बादल के कारण, उनकी आत्मा आनंदित हो गई है और वह एक हरे भरे जंगल की तरह महसूस कर रही है।
तीसरे और चौथे लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि उनका मन मस्त हो गया है और वे कुछ भी नहीं बोल सकते। वे अपनी खुशी और प्रेम को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं खोज सकते। पांचवीं से आठवीं लाइन में, कबीरदास जी कई रूपकों का उपयोग करके अपने भक्तों को समझाते हैं कि जब वे अपने ईश्वर के प्रेम को प्राप्त करते हैं, तो उन्हें कोई और चीज चाहिए नहीं होती।
हलकी थी जब चढ़ी तराजू,
पूरी भरी अब क्यों तौले,
इस लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि जब उनका मन प्रेम से भरा होता है, तो उन्हें किसी और चीज की आवश्यकता नहीं होती। वे पहले से ही पूर्ण हैं।
हीरा पाया गाँठ गठियाया,
बार बार वा को क्यों खोले,
इस लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि जब वे अपने ईश्वर को पा लेते हैं, तो उन्हें उसे बार-बार देखने की जरूरत नहीं होती। वे पहले से ही जानते हैं कि वह उनके पास है।
हंसा नहाया मानसरोव,
ताल तालरिया में क्यों डौले,
इस लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि जब एक हंस मानसरोवर में नहा लेता है, तो उसे किसी और तालाब में जाने की जरूरत नहीं होती। वह पहले से ही स्वच्छ और पवित्र है।
नौवीं और दसवीं लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि जब कोई भक्त अपने ईश्वर को प्राप्त कर लेता है, तो उसे किसी और चीज की तलाश में बाहर जाने की जरूरत नहीं होती। उसका ईश्वर उसके घर में ही है।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
साहिब मिल गया तिल ओलेर,
इस लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि वह अपने भक्तों को बताना चाहते हैं कि जब कोई भक्त अपने ईश्वर को प्राप्त कर लेता है, तो वह बहुत खुश और आनंदित हो जाता है।
तीसरे और चौथे लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि उनका मन मस्त हो गया है और वे कुछ भी नहीं बोल सकते। वे अपनी खुशी और प्रेम को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं खोज सकते। पांचवीं से आठवीं लाइन में, कबीरदास जी कई रूपकों का उपयोग करके अपने भक्तों को समझाते हैं कि जब वे अपने ईश्वर के प्रेम को प्राप्त करते हैं, तो उन्हें कोई और चीज चाहिए नहीं होती।
हलकी थी जब चढ़ी तराजू,
पूरी भरी अब क्यों तौले,
इस लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि जब उनका मन प्रेम से भरा होता है, तो उन्हें किसी और चीज की आवश्यकता नहीं होती। वे पहले से ही पूर्ण हैं।
हीरा पाया गाँठ गठियाया,
बार बार वा को क्यों खोले,
इस लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि जब वे अपने ईश्वर को पा लेते हैं, तो उन्हें उसे बार-बार देखने की जरूरत नहीं होती। वे पहले से ही जानते हैं कि वह उनके पास है।
हंसा नहाया मानसरोव,
ताल तालरिया में क्यों डौले,
इस लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि जब एक हंस मानसरोवर में नहा लेता है, तो उसे किसी और तालाब में जाने की जरूरत नहीं होती। वह पहले से ही स्वच्छ और पवित्र है।
नौवीं और दसवीं लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि जब कोई भक्त अपने ईश्वर को प्राप्त कर लेता है, तो उसे किसी और चीज की तलाश में बाहर जाने की जरूरत नहीं होती। उसका ईश्वर उसके घर में ही है।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
साहिब मिल गया तिल ओलेर,
इस लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि वह अपने भक्तों को बताना चाहते हैं कि जब कोई भक्त अपने ईश्वर को प्राप्त कर लेता है, तो वह बहुत खुश और आनंदित हो जाता है।
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