कबीरदास जी "घूँघट के पट खोल रे" में, भजन में आंतरिक प्रेम को खोजने के लिए कहते हैं। वे कहते हैं कि व्यक्ति को अपने भौतिक शरीर और सांसारिक मोह से ऊपर उठना चाहिए। जब व्यक्ति ऐसा करता है, तो वह अपने भीतर अपने सच्चे प्रेम को देख सकता है। भजन के पहले दो लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि व्यक्ति को अपने घूंघट को खोलना चाहिए। यह घूंघट भौतिक शरीर और सांसारिक मोह का प्रतीक है। जब व्यक्ति अपने घूंघट को खोलता है, तो वह अपने आंतरिक प्रेम को देख सकता है।
घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे
घूँघट के पट खोल रे
तोहे पिया मिलेंगे घट घट मै तेरे साईं बसत है कटुक बचन मत बोल रे धन जोबन का गरब ना कीजे झूठा इन का मोल जाग यतन से रंग महल में पिया पायो अनमोल सूने मंदिर दिया जला के आसन से मत डोल कहत कबीर सुनो भाई साधों अनहद बाजत ढोल, घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे
घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे घूँघट के पट खोल रे घट घट मैं तोरे कई बसत है घट घट मैं तोरे कई बसत है कतहु बचन मत बोल रे तोहे पिया मिलेंगे घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे घूँघट के पट खोल रे, धन जोबन का गरब न कीजे धन जोबन का गरब न कीजे झूठा इनका मोल रे तोहे पिया मिलेंगे घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे घूँघट के पट खोल रे जाग जातां से रंग महल में जाग जातां से रंग महल में पिया पायो अनमोल रे
Kabir Bhajan Lyrics in Hindi
घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे घूँघट के पट खोल रे सूने मंदिर सूने मन्दिर दिया जला के सूने मन्दिर दिया जला के आसन से मत डोल रे तोहे पिया मिलेंगे घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे घूँघट के पट खोल रे
"घूँघट के पट खोल रे, तोहे पिया मिलेंगे" कबीर जी कहते हैं कि अपने मन के पर्दे (अहंकार और भ्रांतियों) को हटा दो, तभी तुम अपने सच्चे प्रेमी (परमात्मा) से मिल सकोगे।
"घट-घट में तेरे साईं बसत है, कटु वचन मत बोल रे" हर शरीर में परमात्मा का वास है; इसलिए दूसरों के प्रति कठोर शब्दों का प्रयोग न करें।
"धन जोबन का गर्व न कीजै, झूठा पंच रंग चोल रे" धन और यौवन पर गर्व न करें, क्योंकि ये सब अस्थायी हैं।
"सूने महल में दिया जलत है, आशा से मत डोल रे" अपने भीतर के सूनेपन में, ध्यान और साधना के माध्यम से, आत्मा की ज्योति (प्रकाश) को प्रज्वलित करें।
"जाग यतन से रंग महल में, पिया पायो अनमोल" सच्चे प्रयास और जागरूकता से, आप अपने भीतर के महल (आत्मा) में प्रवेश कर सकते हैं, जहाँ परमात्मा की अनमोल प्राप्ति होती है।
"कहत कबीर सुनो भाई साधो, अनहद बाजत ढोल रे" कबीर जी कहते हैं, सुनो साधुओं, जब आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है, तो अनहद (अनहद नाद) की ध्वनि सुनाई देती है।
इस भजन के माध्यम से कबीरदास जी हमें अपने भीतर की सच्चाई को पहचानने, अहंकार और भ्रांतियों को दूर करने, और परमात्मा की प्राप्ति के लिए साधना करने की प्रेरणा देते हैं।
Ghoonghat Ke Pat Khol Re Tohe Piya Milenge Ghat Ghat Mai Tere Saeen Basat Hai Katuk Bachan Mat Bol Re Dhan Joban Ka Garab Na Keeje Jhootha In Ka Mol Jaag Yatan Se Rang Mahal Mein Piya Paayo Anamol Soone Mandir Diya Jala Ke Aasan Se Mat Dol Kahat Kabeer Suno Bhaee Saadhon Anahad Baajat Dhol
घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे
घूँघट के पट खोल कबीर जी का सुप्रसिद भजन Ghunghat ke Pat Khol - Mayank Upadhyay- Ambey bhakti
घूँघट के पट खोल रे- यह भजन कबीरदास जी द्वारा रचित है। यह भजन एक व्यक्ति को अपने आंतरिक प्रेम को खोजने के लिए कहता है। भजन के पहले दो लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि व्यक्ति को अपने घूंघट को खोलना चाहिए। यह घूंघट भौतिक शरीर और सांसारिक मोह का प्रतीक है। जब व्यक्ति अपने घूंघट को खोलता है, तो वह अपने आंतरिक प्रेम को देख सकता है। आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं