श्री गोवर्धन महाराज महाराज तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो लिरिक्स Shri Govardhan Maharaj Lyrics

श्री गोवर्धन महाराज महाराज तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो लिरिक्स Shri Govardhan Maharaj Bhajan Lyrics, Govardhan Puja Bhajan Hindi

श्री गोवर्धन महाराज महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो,
श्री गोवर्धन महाराज महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।

तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े दूध की धार, ओ धार,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो,
श्री गोवर्धन महाराज महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।

तेरे कानन कुंडल साज रहे,
तेरे कानन कुंडल साज रहे,
ठोड़ी पे हिरा लाल, ओ लाल,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो,
श्री गोवर्धन महाराज महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।

तेरे गले में कंठा सोने को,
तेरे गले में कंठा सोने को,
तेरी झांकी बनी विशाल, विशाल,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो,
श्री गोवर्धन महाराज महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।

तेरी सात कोस की परिक्रमा,
तेरी सात कोस की परिक्रमा,
और चकलेश्वर विश्राम, विश्राम,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो,
श्री गोवर्धन महाराज महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।

श्री गोवर्धन महाराज महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो,
श्री गोवर्धन महाराज महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।
 

यह भजन भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं में से एक का वर्णन करता है। जब इंद्र ने ब्रजवासियों पर बारिश की बाढ़ भेजी, तो श्रीकृष्ण ने अपनी उंगलियों पर गिरिवर को उठाकर ब्रजवासियों को बचाया। इस लीला के बाद, ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण को भगवान गोवर्धन के रूप में पूजाना शुरू कर दिया। भजन के पहले दो लाइन में, भक्त भगवान गोवर्धन की स्तुति करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान गोवर्धन के माथे पर मुकुट विराजमान है। इस मुकुट का अर्थ है उनकी शक्ति और महिमा।

भजन के अगले दो लाइन में, भक्त भगवान गोवर्धन को चढ़ाए जाने वाले प्रसादों का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि उन्हें पान, फूल और दूध की धार चढ़ाई जाती है। भजन के अगले दो लाइन में, भक्त भगवान गोवर्धन की सुंदरता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि उनके कान में कुंडल और ठोड़ी पर हीरा चमकता है।

भजन के अगले दो लाइन में, भक्त भगवान गोवर्धन की शोभा का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि उनके गले में सोने का कंठा है और उनकी झांकी बहुत विशाल है। भजन के आखिरी दो लाइन में, भक्त भगवान गोवर्धन की परिक्रमा और चकलेश्वर विश्राम का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान गोवर्धन की सात कोस की परिक्रमा बहुत ही पवित्र है और चकलेश्वर विश्राम बहुत ही सुंदर है।
भगवान की कृपा से सब कुछ संभव है। श्रीकृष्ण ने अपनी उंगलियों पर गिरिवर उठाकर ब्रजवासियों को बचाया। यह भगवान की कृपा का ही परिणाम था।
भगवान की पूजा करना और उनकी आज्ञा का पालन करना आवश्यक है। ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण की पूजा करना शुरू कर दिया और उनकी आज्ञा का पालन किया। इससे उन्हें भगवान की कृपा प्राप्त हुई।
प्रकृति का सम्मान करना चाहिए। श्रीकृष्ण ने गिरिवर को उठाकर ब्रजवासियों को बचाया। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए।
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