श्री ब्रह्म अमृतवाणी जानिये शुद्ध बोल
ब्रह्म देव भगवान तेरा, महा सुखदाय नाम,
चरण कमल में साधक का सत सत प्रणाम,
भवतारक भवभंजना सिद्धिकारक है जाप,
तेरे सुमिरन से मिटे, घड़ी में दुःख संताप,
गौरवर्ण प्रभु नारायण मंगलमय तेरा रुप,
आनंद सागर के जैसे तेरी छटा अनूप,
विष्णु नाभि कमल पर आप हैं विराजमान।
भक्तों के हर कष्ट को, हरते हो आठों याम,
जय जय ब्रह्म जी धाम, जय जय जग के नाथ।
आठ सिद्धियां कर बांधे खड़ी हैं तुमरे द्वार,
शरणागत के शिरोपती बिगड़े काज सँवार,
विघ्न हरण भगवान सुनो दुखिया मन की पीर,
निष्ठा से तेरे नाम की, माला रहे हम फेर,
पुष्कर नगरी में आकर, जो पूजे तेरा नाम,
नीले अम्बर से ऊँचा हो जाये उनका नाम,
रोम रोम जिन भक्तों का ब्रह्मा रहा है बोल,
उनको होने ना दीज्यो किसी पग डावाँडोल,
जय जय ब्रह्म जी धाम, जय जय जग के नाथ।
तेरी दया के चरणों का अमृत सम हैं नीर
तेरा सुमिरन है करते योद्धा बली रणवीर
आशीष सुभ संजीवनी का दे सब को दान
तेरी चौखट हम झुकें हे ब्रह्मा भगवान
चतुर मुख तेरे रूप के तुल्य नहीं है कोय
तेरे वंदन अर्चन से तन मन शीतल होय
दर्शन दे प्रत्यक्ष तुम जिनकी बुझाते प्यास
पतझड़ भी लगती उन्हें सुखदायक मधुमास
जय जय ब्रह्म जी धाम, जय जय जग के नाथ।
सरस्वती रक्षक है प्रभु शरण गयी तेरी आय
अन्तः करन में ज्ञान का पावन दीप जलाय
जय जय ब्रह्म जी धाम, जय जय जग के नाथ।
चरण कमल में साधक का सत सत प्रणाम,
भवतारक भवभंजना सिद्धिकारक है जाप,
तेरे सुमिरन से मिटे, घड़ी में दुःख संताप,
गौरवर्ण प्रभु नारायण मंगलमय तेरा रुप,
आनंद सागर के जैसे तेरी छटा अनूप,
विष्णु नाभि कमल पर आप हैं विराजमान।
भक्तों के हर कष्ट को, हरते हो आठों याम,
जय जय ब्रह्म जी धाम, जय जय जग के नाथ।
आठ सिद्धियां कर बांधे खड़ी हैं तुमरे द्वार,
शरणागत के शिरोपती बिगड़े काज सँवार,
विघ्न हरण भगवान सुनो दुखिया मन की पीर,
निष्ठा से तेरे नाम की, माला रहे हम फेर,
पुष्कर नगरी में आकर, जो पूजे तेरा नाम,
नीले अम्बर से ऊँचा हो जाये उनका नाम,
रोम रोम जिन भक्तों का ब्रह्मा रहा है बोल,
उनको होने ना दीज्यो किसी पग डावाँडोल,
जय जय ब्रह्म जी धाम, जय जय जग के नाथ।
तेरी दया के चरणों का अमृत सम हैं नीर
तेरा सुमिरन है करते योद्धा बली रणवीर
आशीष सुभ संजीवनी का दे सब को दान
तेरी चौखट हम झुकें हे ब्रह्मा भगवान
चतुर मुख तेरे रूप के तुल्य नहीं है कोय
तेरे वंदन अर्चन से तन मन शीतल होय
दर्शन दे प्रत्यक्ष तुम जिनकी बुझाते प्यास
पतझड़ भी लगती उन्हें सुखदायक मधुमास
जय जय ब्रह्म जी धाम, जय जय जग के नाथ।
सरस्वती रक्षक है प्रभु शरण गयी तेरी आय
अन्तः करन में ज्ञान का पावन दीप जलाय
जय जय ब्रह्म जी धाम, जय जय जग के नाथ।
जय जय ब्रह्म जी धाम, जय जय जग के नाथ।
ब्रह्मा अमृतवाणी BRAHMA AMRITWANI I TRIPTI SHAKYA I ब्रह्मा जी की सुरीली अमृतवाणी
श्री ब्रह्मा जी की पूजा क्यों नहीं होती ? श्री ब्रह्म देव श्रृष्टि के रचियता हैं उन्होंने ही इस धरा को आकार दिया है। लेकिन फिर भी ब्रह्म देव के मंदिर मात्र तीन ही हैं और इनकी पूजा भी वर्जित है। ब्रह्म देव की पूज वैखानस सम्प्रदाय करता है। उडुपी आदि मुख्य मध्वपीठों में ब्रह्म देव की पूजा-आराधना की विशेष परम्परा है। ब्रह्म देव ने ही हमें वेदों का ज्ञान दिया उनके हाथों में वेद हैं और भक्तों का उद्धार करते हैं। ना तो ब्रह्म देव की कोई पूजा की परंपरा है और ना ही इनके कोई व्रत आदि होते है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
