देवताओं के गायत्री मन्त्र Gayatri Mantra Deities

देवताओं के गायत्री मन्त्र Gayatri Mantra Deities Full Gayatri Mantra Of All Gods by Bangalore Sisters

देवताओं के गायत्री मन्त्र Gayatri Mantra Deities
 
ॐ भूर् भुवः स्वः ।तत्स॑वि॒तुर्वरेण्यं॒
भर्गो॑ दे॒वस्य॑धीमहि ।धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त् ॥

गायत्री मंत्र महा मंत्र है जो कई प्रकार की भाधाओं से बचाता है। यह मंत्र मूल रूप से ऋग्वेद से लिया गया है। भूत प्रेत, चोर डाकू, राज कोप, आशंका, भय, अकाल मृत्यु, रोग और अनेक प्रकार की बाधाओं का निवारण करके मनुष्य को सदैव तेजश्वी बनाय रखता है। गायत्री मंत्र को "सभी मंत्रों की माँ" माना जाता है। गायत्री मंत्र "वेदों की माँ" है। गायत्री मंत्र सभी अंधकार को नष्ट करने वाला है इसे 'महामंत्र' या 'गुरु मंत्र' भी कहा जाता है।इन मंत्रों को प्रतिदिन जपकर सुख, सौभाग्य, समृद्धि और ऎश्वर्य प्राप्ति की जा शक्ति है,गायत्री ने वेदों के मूल सिद्धांत की घोषणा की कि मनुष्य अपने जीवन में ईश्वर की प्राप्ति बिना किसी पैगंबर या अवतार के हस्तक्षेप के कर सकता है।

१. गणेश गायत्री –  
ॐ एक दृष्टाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो बुद्धिः प्रचोदयात्।
ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।। का अर्थ है "हम उस एक दन्त भगवान गणेश की प्रार्थना करते हैं, जो सर्वव्यापी है। हम ध्यान और प्रार्थना करते है उस हाथी के आकार वाले भगवान से बुद्धि के लिए। हम, ज्ञान के साथ अपने दिमाग को रोशन करने के लिए एकल दन्त भगवान गणेश के सामने झुकते हैं।"
यह गणेश मंत्र भगवान गणेश की बुद्धि और ज्ञान की शक्तियों को स्मरण दिलाता है। यह भक्तों को ज्ञान और समझ प्राप्त करने में मदद करने के लिए भगवान गणेश से प्रार्थना करता है।

गणेश गायत्री मंत्र समस्त प्रकार के विघ्नों का निवारण करने में सक्षम है

२. नृसिंह गायत्री –  
ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि। तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्।
इस मंत्र के नियमित जाप से पुरषार्थ एवं पराक्रम की वृद्धि होती है।

३. विष्णु गायत्री – 
ॐ नारायण विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।

विष्णु गायत्री मंत्र के नियमित जाप से पारिवारिक क्लेश और लड़ाई झगड़े का अंत होता है।

४. शिव गायत्री – 
ॐ पंचवक्त्राय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।

शिव भगवान् सदैव अपने भक्तों पर कल्याण करते हैं। शिव गायत्री मंत्र के जाप से शिव की कृपा बनी रहती है।

५. कृष्ण गायत्री – 
ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।

गीता का मूल मंत्र है कर्म और इसी भांति कृष्णा गायत्री मंत्र के जाप से कर्म क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।

६. राधा गायत्री – 
ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि। तन्नो राधा प्रचोदयात्।

राधा गायत्री मंत्र के जाप से जीवन में प्रेम का अभाव दूर होता है।

७. लक्ष्मी गायत्री– 
ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।

यह मंत्र पद प्रतिष्ठा, यश ऐश्वर्य और धन Sसम्पति की प्राप्ति होती है।

८. अग्नि गायत्री – 
ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि। तन्नो अग्नि: प्रचोदयात्।

यह मंत्र इंद्रियों की तेजस्विता बढ़ती है।

९. इन्द्र गायत्री – 
ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि। तन्नो इन्द्र: प्रचोदयात्।

यह मंत्र दुश्मनों है हमले से बचाता है।


१०. सरस्वती गायत्री – 
ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।

यह मंत्र ज्ञान बुद्धि की वृद्धि होती है एवं स्मरण शक्ति बढ़ती है।

११. दुर्गा गायत्री – 
ॐ गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।

यह मंत्र से दुखः और पीड़ानही रहती है।शत्रु नाश, विघ्नों पर विजय मिलती है।

१२. हनुमान गायत्री – 
ॐ अंजनी सुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो मारुति: प्रचोदयात्।

यह मंत्र कर्म के प्रति निष्ठा की भावना जागृत होती हैं।

१३. पृथ्वी गायत्री – 
ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे सहस्त्रमूत्यै धीमहि। तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।

यह मंत्र दृढ़ता, धैर्य और सहिष्णुता की वृद्धि होती है।

१४. सूर्य गायत्री – 
ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।

यह मंत्र शरीर के सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है।

१५. राम गायत्री – 
ॐ दशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि। तन्नो राम: प्रचोदयात्।

यह मंत्र इससे मान प्रतिष्ठा बढती है।

१६. सीता गायत्री – 
ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि। तन्नो सीता प्रचोदयात्।

यह मंत्र तप की शक्ति में वृद्धि होती है।

१७. चन्द्र गायत्री – 
ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।

यह मंत्र निराशा से मुक्ति मिलती है और मानसिकता प्रवल होती है।

१८. यम गायत्री – 
ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नो यम: प्रचोदयात्।

यह मंत्र इससे मृत्यु भय से मुक्ति मिलती है।

१९. ब्रह्मा गायत्री – 
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारुढ़ाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

यह मंत्र व्यापारिक संकटो को दूर करता है।

२०. वरुण गायत्री – 
ॐ जलबिम्वाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि। तन्नो वरुण: प्रचोदयात्।

यह मंत्र प्रेम भावना जागृत होती है, भावनाओ का उदय होता हैं।

२१. नारायण गायत्री – 
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो नारायण: प्रचोदयात्।

यदि आप प्रशाशनिक क्षेत्र में हैं तो यह मंत्र प्रशासनिक प्रभाव बढ़ता है।

२२. हयग्रीव गायत्री – 
ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि। तन्नो हयग्रीव: प्रचोदयात्।

यह मंत्र जीवन के समस्त भयो का नाश होता है।

२३. हंस गायत्री – 
ॐ परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि। तन्नो हंस: प्रचोदयात्।

यह मंत्र विवेक शक्ति का विकाश होता है,बुद्धि प्रखर होती है।

२४. तुलसी गायत्री – 
ॐ श्रीतुलस्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।

परमार्थ भावना की उत्त्पति होती है।


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गायत्री साधना का प्रभाव तत्काल होता है जिससे साधक को आत्मबल प्राप्त होता है और मानसिक कष्ट में तुरन्त शान्ति मिलती है। इस महामन्त्र के प्रभाव से आत्मा में सतोगुण बढ़ता है।गायत्री जप में आसन का भी विचार किया जाता है। बांस, पत्थर, लकड़ी, वृक्ष के पत्ते, घास-फूस के आसनों पर बैठकर जप करने से सिद्धि प्राप्त नहीं होती, वरन् दरिद्रता आती है। गायत्री शक्ति का ध्यान करके करमाला, रुद्राक्ष या तुलसी की माला में जप करना चाहिए। मन में मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए।
गायत्री की महिमा के सम्बन्ध में क्या कहा जाए। ब्रह्म की जितनी महिमा है, वह सब गायत्री की भी मानी जाती हैं। वेदमाता गायत्री से यही विनम्र प्रार्थना है कि वे दुर्बुद्धि को मिटाकर सबको सद्बुद्धि प्रदान करें।स्त्रोत और मंत्र में क्या अंतर होता है : स्त्रोत और मंत्र देवताओं को प्रशन्न करते के शक्तिशाली माध्यम हैं। आज हम जानेंगे की मन्त्र और स्त्रोत में क्या अंतर होता है। किसी भी देवता की पूजा करने से पहले उससे सबंधित मन्त्रों को गुरु की सहायता से सिद्ध किया जाना चाहिए।
 
विघ्नों का अर्थ है बाधाएं, रुकावटें, परेशानियां, और कठिनाइयां। विघ्न गायत्री मंत्र का जाप करने से जीवन में आने वाली सभी तरह की बाधाओं और परेशानियों को दूर करने में मदद मिलती है। यह मंत्र भगवान विघ्नहर्ता गणेश को समर्पित है, जो विघ्नों को दूर करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
विघ्न गायत्री मंत्र का जाप करने से निम्नलिखित लाभ और महत्व होते हैं:
  1. जीवन में आने वाली सभी तरह की बाधाओं और परेशानियों को दूर करने में मदद मिलती है।
  2. मन को शांत और स्थिर करने में मदद मिलती है।
  3. ध्यान और एकाग्रता में सुधार होता है।
  4. बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है।
  5. कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  6. आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
 जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
विघ्न गायत्री मंत्र का जाप करने की विधि:
  • शांत और साफ जगह पर बैठ जाएं।
  • अपने सामने भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर रखें।
  • अपने हाथों को जोड़ें और भगवान गणेश का ध्यान करें।
  • 108 बार मंत्र का जाप करें।
  • मंत्र का जाप करते समय मन को शांत और स्थिर रखें।

विघ्न गायत्री मंत्र:

ॐ विघ्न हर्ताय विद्महे,
वक्रतुण्डाय धीमहि,
तन्नो विनायक प्रचोदयात्।
 
इस मंत्र का अर्थ है:
  • हम उस विघ्न हर्ता भगवान गणेश को जानते हैं,
  • हम ध्यान करते हैं उस वक्र तुण्ड वाले भगवान पर,
  • उस विघ्नहर्ता भगवान गणेश हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें।
विघ्न गायत्री मंत्र का जाप किसी भी समय किया जा सकता है। हालांकि, सुबह के समय जाप करने से सबसे अधिक लाभ मिलता है। गायत्री मंत्र हिंदू धर्म का एक प्रमुख मंत्र है। यह एक संस्कृत मंत्र है जो ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति, ब्रह्मा को समर्पित है। गायत्री मंत्र को "महामंत्र" भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "महान मंत्र"।

गायत्री मंत्र का शाब्दिक अर्थ है:

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

इसका अर्थ है:

हम उस प्रकाशमान परमात्मा के तेज का ध्यान करते हैं, जो पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग में व्याप्त है। हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की तरफ चलने के लिए उस परमात्मा का तेज प्रेरित करे। गायत्री मंत्र का जाप करने से निम्नलिखित लाभ और महत्व होते हैं:
  • मन को शांत और स्थिर करने में मदद मिलती है।
  • ध्यान और एकाग्रता में सुधार होता है।
  • बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है।
  • कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  • आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  • जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

गायत्री मंत्र का जाप करने की विधि:
  • शांत और साफ जगह पर बैठ जाएं।
  • अपने सामने एक दीपक जलाएं।
  • अपने हाथों को जोड़ें और भगवान ब्रह्मा का ध्यान करें।
  • 108 बार मंत्र का जाप करें।
  • मंत्र का जाप करते समय मन को शांत और स्थिर रखें।
गायत्री मंत्र का जाप किसी भी समय किया जा सकता है। हालांकि, सुबह के समय जाप करने से सबसे अधिक लाभ मिलता है। गायत्री मंत्र का जाप करने के लिए कोई विशेष नियम या विधान नहीं है। आप किसी भी मुद्रा में बैठकर मंत्र का जाप कर सकते हैं। हालांकि, ध्यान और एकाग्रता बढ़ाने के लिए पद्मासन या अर्धपद्मासन में बैठना सबसे अच्छा माना जाता है। गायत्री मंत्र का जाप करते समय, अपने मन को मंत्र के शब्दों पर केंद्रित करें। मंत्र का अर्थ समझने की कोशिश करें। इससे आप मंत्र के लाभों को और अधिक प्रभावी ढंग से प्राप्त कर सकेंगे। गायत्री मंत्र एक शक्तिशाली मंत्र है जो जीवन में शांति, ज्ञान और सफलता ला सकता है। नियमित रूप से मंत्र का जाप करने से आप अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन देख सकते हैं।
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