तजौ मन हरि बिमुखनि कौ संग लिरिक्स

तजौ मन हरि बिमुखनि कौ संग

तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग |
जिनकै संग कुमति उपजति है, परत भजन में भंग | ”

“ तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग |
जिनकै संग कुमति उपजति है, परत भजन में भंग | ”
- सूरदास

आप किन से मिलते हैं ? आप उन लोगों से दूर रहे, मिले नहीं जो प्रभु भक्ति में लीं नहीं हैं, उनसे मिलने पर बुद्धि खराब होती है और भजन भाव में विघ्न उत्पन्न होता है। उनके पास सिर्फ तर्क है , खोखले तर्क और मेरे पास गोविन्द गोपाला , श्री राधे राधे बोल हरी बोल। 
 
 
सूरदास जी के इस पद में उन्होंने हमें उन लोगों से दूर रहने की सलाह दी है जो प्रभु भक्ति से विमुख हैं। उनके साथ संगति करने से हमारी बुद्धि भ्रष्ट होती है और भजन में विघ्न उत्पन्न होता है। सूरदास जी ने उदाहरण देकर यह स्पष्ट किया है कि जैसे विषैले सांप के साथ रहने से विष का सेवन होता है, वैसे ही हरि विमुख लोगों के साथ रहने से कुमति (बुरी बुद्धि) उत्पन्न होती है।
 
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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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