तजौ मन हरि बिमुखनि कौ संग हिंदी मीनिंग
तजौ मन हरि बिमुखनि कौ संग हिंदी मीनिंग
तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग।जिनकै संग कुमति उपजति है, परत भजन में भंग।
कहा होत पय पान कराएं, बिष नही तजत भुजंग।
कागहिं कहा कपूर चुगाएं, स्वान न्हवाएं गंग।
खर कौ कहा अरगजा-लेपन, मरकट भूषण अंग।
गज कौं कहा सरित अन्हवाएं, बहुरि धरै वह ढंग।
पाहन पतित बान नहिं बेधत, रीतौ करत निषंग।
सूरदास कारी कमरि पै, चढत न दूजौ रंग।
कहा होत पय पान कराएं, बिष नही तजत भुजंग।
कागहिं कहा कपूर चुगाएं, स्वान न्हवाएं गंग।
खर कौ कहा अरगजा-लेपन, मरकट भूषण अंग।
गज कौं कहा सरित अन्हवाएं, बहुरि धरै वह ढंग।
पाहन पतित बान नहिं बेधत, रीतौ करत निषंग।
सूरदास कारी कमरि पै, चढत न दूजौ रंग।
हिंदी अर्थ / भावार्थ : इस पद में सूरदास जी भक्त को भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। वे कहते हैं कि यदि कोई भक्त वास्तव में राधा कृष्ण की कृपा पाना चाहता है, तो उसे उन लोगों का साथ छोड़ देना चाहिए जो भगवान के विमुख हैं। सूरदास जी कहते हैं कि ऐसे लोगों के साथ रहने से बुरी आदतें पैदा होती हैं, जो भजन में बाधा डालती हैं। जब भक्त भगवान के विमुख लोगों के साथ रहता है, तो वह उनके बुरे प्रभाव से बच नहीं सकता है। ऐसे लोगों के साथ रहने से भक्त की मन में भ्रम पैदा होता है और वह भगवान से दूर हो जाता है।
सूरदास जी भक्त को समझाते हैं कि भगवान के विमुख लोगों के साथ रहने से भक्ति में सफलता नहीं मिल सकती है। इसलिए भक्त को ऐसे लोगों का साथ छोड़ देना चाहिए और केवल भगवान की भक्ति में लग जाना चाहिए। इस पद में सूरदास जी ने भक्ति के मार्ग में बाधा बनने वाले एक महत्वपूर्ण कारक का उल्लेख किया है। वे कहते हैं कि यदि भक्त भगवान के विमुख लोगों के साथ रहता है, तो वह भक्ति में सफल नहीं हो सकता है।
सूरदास जी का मानना है कि भगवान के विमुख लोगों के साथ रहने से बुरी आदतें पैदा होती हैं। ये बुरी आदतें भक्त को भजन से दूर ले जाती हैं। इसके अलावा, ऐसे लोगों के साथ रहने से भक्त की मन में भ्रम पैदा होता है। भ्रम से भक्त का ध्यान भटक जाता है और वह भगवान की भक्ति में लग नहीं पाता है। सूरदास जी भक्तों को समझाते हैं कि भगवान के विमुख लोगों के साथ रहने से भक्ति में सफलता नहीं मिल सकती है। इसलिए भक्त को ऐसे लोगों का साथ छोड़ देना चाहिए और केवल भगवान की भक्ति में लग जाना चाहिए।
सूरदास जी भक्त को समझाते हैं कि भगवान के विमुख लोगों के साथ रहने से भक्ति में सफलता नहीं मिल सकती है। इसलिए भक्त को ऐसे लोगों का साथ छोड़ देना चाहिए और केवल भगवान की भक्ति में लग जाना चाहिए। इस पद में सूरदास जी ने भक्ति के मार्ग में बाधा बनने वाले एक महत्वपूर्ण कारक का उल्लेख किया है। वे कहते हैं कि यदि भक्त भगवान के विमुख लोगों के साथ रहता है, तो वह भक्ति में सफल नहीं हो सकता है।
सूरदास जी का मानना है कि भगवान के विमुख लोगों के साथ रहने से बुरी आदतें पैदा होती हैं। ये बुरी आदतें भक्त को भजन से दूर ले जाती हैं। इसके अलावा, ऐसे लोगों के साथ रहने से भक्त की मन में भ्रम पैदा होता है। भ्रम से भक्त का ध्यान भटक जाता है और वह भगवान की भक्ति में लग नहीं पाता है। सूरदास जी भक्तों को समझाते हैं कि भगवान के विमुख लोगों के साथ रहने से भक्ति में सफलता नहीं मिल सकती है। इसलिए भक्त को ऐसे लोगों का साथ छोड़ देना चाहिए और केवल भगवान की भक्ति में लग जाना चाहिए।
मन को उन संगतों से दूर रखना चाहिए, जो प्रभु से विमुख कर दें। ऐसी संगति मन में कुविचार जन्म देती है और भक्ति के मार्ग में बाधा डालती है। जैसे साँप को कितना ही दूध पिलाओ, वह विष नहीं छोड़ता, या कौवे को कपूर खिलाने से उसकी प्रकृति नहीं बदलती, वैसे ही गलत संगति मन को भटकाती है। गंगा में स्नान कराने से कुत्ते का स्वभाव नहीं बदलता, न ही गधे को चंदन लगाने से उसकी सुंदरता बढ़ती है। प्रभु से दूर मन पत्थर सा कठोर हो जाता है, जिसे कोई तीर भेद नहीं सकता। सच्ची भक्ति वही है, जो मन को शुद्ध करे और प्रभु के रंग में रंग दे, क्योंकि गलत संगति का काला रंग बार-बार चढ़ता है, पर प्रभु का रंग एक बार चढ़े तो कभी नहीं उतरता।
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