हमारो प्रणाम बांकेबिहारी को।
मोर मुकुट माथे तिलक बिराजे कुंडल अलका कारी को।।
अधर मधुर पर बंसी बजावै रीझ रिझावै राधा प्यारी को।
यह छवि देख मगन भ मीरा मोहन गिरधर -धारी को।
राग ललित
हमरो प्रणाम बांके बिहारी को ।। टेक ।।
मोर मुगट माथे तिलक बिराजै, कुंडल अलकाकारी को ।
अधर मधुर पर बंशी बजावै, रीझ रिझावै राधाप्यारी को ।
यह छबि देख मगन भई मीराँ, मोहन गिरवरधारी को ।।
मोर मुकुट माथे तिलक बिराजे कुंडल अलका कारी को।।
अधर मधुर पर बंसी बजावै रीझ रिझावै राधा प्यारी को।
यह छवि देख मगन भ मीरा मोहन गिरधर -धारी को।
राग ललित
हमरो प्रणाम बांके बिहारी को ।। टेक ।।
मोर मुगट माथे तिलक बिराजै, कुंडल अलकाकारी को ।
अधर मधुर पर बंशी बजावै, रीझ रिझावै राधाप्यारी को ।
यह छबि देख मगन भई मीराँ, मोहन गिरवरधारी को ।।
Hamaaro Pranaam Baankebihaaree Ko.
Mor Mukut Maathe Tilak Biraaje Kundal Alaka Kaaree Ko..
Adhar Madhur Par Bansee Bajaavai Reejh Rijhaavai Raadha Pyaaree Ko.
Yah Chhavi Dekh Magan Bh Meera Mohan Giradhar -dhaaree Ko.
Raag Lalit
Hamaro Pranaam Baanke Bihaaree Ko .. Tek ..
Mor Mugat Maathe Tilak Biraajai, Kundal Alakaakaaree Ko .
Adhar Madhur Par Banshee Bajaavai, Reejh Rijhaavai Raadhaapyaaree Ko .
Yah Chhabi Dekh Magan Bhee Meeraan, Mohan Giravaradhaaree Ko ..
हमरो प्रणाम बांकेबिहारी को भजन का अर्थ है कि हम बांकेबिहारी को अपना आदर और सम्मान करते हैं। यह भजन राग ललित में है और मीराबाई द्वारा रचित है। प्रथम चरण में भक्त कहता है कि वह बांकेबिहारी को प्रणाम करता है। बांकेबिहारी का अर्थ है "वह जो बांसुरी बजाता है"। यह कृष्ण का एक रूप है, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं। कृष्ण के सिर पर मोर मुकुट है, उनके माथे पर तिलक है, और उनके कानों में कुंडल हैं। उनके होंठ मधुर हैं और वे बंसी बजा रहे हैं। वह राधा को रिझा रहे हैं, जो उनकी प्रेमिका हैं।
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