कोई कहियौ रे प्रभु आवन की,
आवनकी मनभावन की।
आप न आवै लिख नहिं भेजै ,
बाण पड़ी ललचावन की।
ए दोउ नैण कह्यो नहिं मानै,
नदियां बहै जैसे सावन की।
कहा करूं कछु नहिं बस मेरो,
पांख नहीं उड़ जावनकी।
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे,
चेरी भै हूँ तेरे दांवन की।
आप न आवै लिख नहिं भेजै ,
बाण पड़ी ललचावन की।
ए दोउ नैण कह्यो नहिं मानै,
नदियां बहै जैसे सावन की।
कहा करूं कछु नहिं बस मेरो,
पांख नहीं उड़ जावनकी।
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे,
चेरी भै हूँ तेरे दांवन की।
Koee Kahiyau Re Prabhu Aavan Kee,
Aavanakee Manabhaavan Kee.
Aap Na Aavai Likh Nahin Bhejai ,
Baan Padee Lalachaavan Kee.
E Dou Nain Kahyo Nahin Maanai,
Nadiyaan Bahai Jaise Saavan Kee.
Kaha Karoon Kachhu Nahin Bas Mero,
Paankh Nahin Ud Jaavanakee.
Meera Kahai Prabhu Kab Re Miloge,
Cheree Bhai Hoon Tere Daanvan Kee.
Aavanakee Manabhaavan Kee.
Aap Na Aavai Likh Nahin Bhejai ,
Baan Padee Lalachaavan Kee.
E Dou Nain Kahyo Nahin Maanai,
Nadiyaan Bahai Jaise Saavan Kee.
Kaha Karoon Kachhu Nahin Bas Mero,
Paankh Nahin Ud Jaavanakee.
Meera Kahai Prabhu Kab Re Miloge,
Cheree Bhai Hoon Tere Daanvan Kee.
कोई कहियो रे हरि आवन की - श्रीहित अम्बरीष जी महाराज
हरी मेरे जीवन प्रान अधार।
और आसरो नाहीं तुम बिन तीनूं लोक मंझार॥
आप बिना मोहि कछु न सुहावै निरख्यौ सब संसार।
मीरा कहै मैं दासि रावरी दीज्यो मती बिसार॥
आली , सांवरे की दृष्टि मानो, प्रेम की कटारी है॥
लागत बेहाल भई, तनकी सुध बुध गई ,
तन मन सब व्यापो प्रेम, मानो मतवारी है॥
सखियां मिल दोय चारी, बावरी सी भई न्यारी,
हौं तो वाको नीके जानौं, कुंजको बिहारी॥
चंदको चकोर चाहे, दीपक पतंग दाहै,
जल बिना मीन जैसे, तैसे प्रीत प्यारी है॥
बिनती करूं हे स्याम, लागूं मैं तुम्हारे पांव,
मीरा प्रभु ऐसी जानो, दासी तुम्हारी है॥
छोड़ मत जाज्यो जी महाराज॥
मैं अबला बल नायं गुसाईं, तुमही मेरे सिरताज।
मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समरथ महाराज॥
थांरी होयके किणरे जाऊं, तुमही हिबडारो साज।
मीरा के प्रभु और न कोई राखो अबके लाज॥
सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हांरो कांई कर लेसी।
म्हे तो गुण गोविन्द का गास्यां हो माई॥
राणोजी रूठ्यो वांरो देस रखासी,हरि रूठ्या किठे जास्यां हो माई॥
लोक लाजकी काण न मानां,निरभै निसाण घुरास्यां हो माई॥
राम नामकी झाझ चलास्यां,भौ-सागर तर जास्यां हो माई॥
मीरा सरण सांवल गिरधर की, चरण कंवल लपटास्यां हो माई॥
हरी मेरे जीवन प्रान अधार।
और आसरो नाहीं तुम बिन तीनूं लोक मंझार॥
आप बिना मोहि कछु न सुहावै निरख्यौ सब संसार।
मीरा कहै मैं दासि रावरी दीज्यो मती बिसार॥
आली , सांवरे की दृष्टि मानो, प्रेम की कटारी है॥
लागत बेहाल भई, तनकी सुध बुध गई ,
तन मन सब व्यापो प्रेम, मानो मतवारी है॥
सखियां मिल दोय चारी, बावरी सी भई न्यारी,
हौं तो वाको नीके जानौं, कुंजको बिहारी॥
चंदको चकोर चाहे, दीपक पतंग दाहै,
जल बिना मीन जैसे, तैसे प्रीत प्यारी है॥
बिनती करूं हे स्याम, लागूं मैं तुम्हारे पांव,
मीरा प्रभु ऐसी जानो, दासी तुम्हारी है॥
छोड़ मत जाज्यो जी महाराज॥
मैं अबला बल नायं गुसाईं, तुमही मेरे सिरताज।
मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समरथ महाराज॥
थांरी होयके किणरे जाऊं, तुमही हिबडारो साज।
मीरा के प्रभु और न कोई राखो अबके लाज॥
सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हांरो कांई कर लेसी।
म्हे तो गुण गोविन्द का गास्यां हो माई॥
राणोजी रूठ्यो वांरो देस रखासी,हरि रूठ्या किठे जास्यां हो माई॥
लोक लाजकी काण न मानां,निरभै निसाण घुरास्यां हो माई॥
राम नामकी झाझ चलास्यां,भौ-सागर तर जास्यां हो माई॥
मीरा सरण सांवल गिरधर की, चरण कंवल लपटास्यां हो माई॥
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