जिंदगी में हजारों का मेला जुड़ा भजन
जिंदगी में हजारों का मेला जुड़ा भजन
जिंदगी में हजारों का मेला जुड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।
काल से बच न पाएगा छोटा-बड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।।
ठाट सारे पड़े के पड़े रह गए,
सारे धनवा गढ़े के गढ़े रह गए,
अंत में लखपति को न ढेला मिला,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।।
बेबसों को सताने से क्या फायदा,
झूठ-अपजस कमाने से क्या फायदा,
दिल किसी का दुखाने से क्या फायदा,
नीम के संग जैसे करेला जुड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।।
राज-राजे रहे, न वो रानी रही,
न बुढ़ापा रहा, न जवानी रही,
ये तो कहने को केवल कहानी रही,
चार दिन का जगत में झमेला रहा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।।
जिंदगी में हजारों का मेला जुड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।
काल से बच न पाएगा छोटा-बड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।।
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।
काल से बच न पाएगा छोटा-बड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।।
ठाट सारे पड़े के पड़े रह गए,
सारे धनवा गढ़े के गढ़े रह गए,
अंत में लखपति को न ढेला मिला,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।।
बेबसों को सताने से क्या फायदा,
झूठ-अपजस कमाने से क्या फायदा,
दिल किसी का दुखाने से क्या फायदा,
नीम के संग जैसे करेला जुड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।।
राज-राजे रहे, न वो रानी रही,
न बुढ़ापा रहा, न जवानी रही,
ये तो कहने को केवल कहानी रही,
चार दिन का जगत में झमेला रहा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।।
जिंदगी में हजारों का मेला जुड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।
काल से बच न पाएगा छोटा-बड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा।।
Jindgi me hajaro Ka Mela juda
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Author - Saroj Jangir
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