आरती असुर निकंदन की भजन

आरती असुर निकंदन की


पवनसुत केसरी नंदन की।।

ज्ञान के सागर हैं हनुमंत।।
पड़े पद युगल उपासक संत।।
कमल हिय राजै सिया-भगवंत।।

परमप्रिय, परमप्रिय भक्त शिरोमणि की।।
पवनसुत केसरी नंदन की।।

आरती असुर निकंदन की।।
पवनसुत केसरी नंदन की।।

सिया-रघुवर के तुम प्यारे।।
साधु-संतन के रखवारे।।
असुर कुल के तुम संहारे।।

परमबल, परम बलवान शिरोमणि की।।
पवनसुत केसरी नंदन की।।

आरती असुर निकंदन की।।
पवनसुत केसरी नंदन की।।

बुद्धि, बल, विद्या वारिधि तुम।।
बिगड़े सब काज सवारे तुम।।
विभीषण के रखवारे तुम।।

परमगुरु, परम ज्ञानी, विज्ञानी की।।
पवनसुत केसरी नंदन की।।

आरती असुर निकंदन की।।
पवनसुत केसरी नंदन की।।

सिया के बिगड़े संवारें तुम।।
राम सेवा मतवाले तुम।।
लखन के रखवाले हो तुम।।

समर्पित, समर्पित त्यागी दानी की।।
पवनसुत केसरी नंदन की।।

आरती असुर निकंदन की।।
पवनसुत केसरी नंदन की।।

धनुर्धर पूजक-पूज्य हो तुम।।
सखे गोविंद के प्यारे तुम।।
युद्ध में ध्वज रखवारे तुम।।

परमश्री, परम रक्षक बलिदानी की।।
पवनसुत केसरी नंदन की।।

आरती असुर निकंदन की।।
पवनसुत केसरी नंदन की।।
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