ओम नमः शिवाय शिवाय ओम भजन
ओम नमः शिवाय शिवाय ओम नमः शिवाय भजन
ॐ नमः शिवाय शिवाय नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय शिवाय नमः शिवाय ।।
तीन शब्द में सृष्टि सारी,
सृष्टि सारी समाई,
ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ।।
पर्वत-पर्वत क्यों चढ़े, नदी पार क्यों जाए,
जो मिलना है, यहीं है,
जिन खोजे वही पाए,
ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ।।
हर सपना एक साँप है, मनन से लिपट जाए,
विष अमृत कब हो सके,
कहे जातां लग जाए,
ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ।।
सुख की डफली रोए है, दुःख की बंसी गाए,
भक्ति में इतनी शक्ति है,
द्वार स्वयं खुल जाए,
ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ।।
तीन शब्द में सृष्टि सारी,
सृष्टि सारी समाई,
ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ।।
ॐ नमः शिवाय शिवाय नमः शिवाय ।।
तीन शब्द में सृष्टि सारी,
सृष्टि सारी समाई,
ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ।।
पर्वत-पर्वत क्यों चढ़े, नदी पार क्यों जाए,
जो मिलना है, यहीं है,
जिन खोजे वही पाए,
ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ।।
हर सपना एक साँप है, मनन से लिपट जाए,
विष अमृत कब हो सके,
कहे जातां लग जाए,
ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ।।
सुख की डफली रोए है, दुःख की बंसी गाए,
भक्ति में इतनी शक्ति है,
द्वार स्वयं खुल जाए,
ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ।।
तीन शब्द में सृष्टि सारी,
सृष्टि सारी समाई,
ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ।।
ॐ नमः शिवाया, शिवाया नमः शिवाया.
तीन शब्द मे सृष्टि सारी,
दृष्टि सारी समाई,
ॐ नमः शिवाया..........
पर्वत पर्वत क्यों चढ़े, नदी पार क्यों जाए,
जो मिलना है यहीन है,
जिन खोदे वहीं पाई.
ॐ नमः शिवाया.......
हर सपना इक साँप है मन से लिपटा जाए,
विष अमृत कबाहु ना बने,
कहे जतन लगाए.
ॐ नमः शिवाया....
सुख की डफली रोए है,
दुख की बंसी गये,
भक्ति में शक्ति इतनी है,
द्वार स्वयं खुल जाए.
ॐ नमः शिवाया..........
तीन शब्द मे सृष्टि सारी,
दृष्टि सारी समाई,
ॐ नमः शिवाया..........
पर्वत पर्वत क्यों चढ़े, नदी पार क्यों जाए,
जो मिलना है यहीन है,
जिन खोदे वहीं पाई.
ॐ नमः शिवाया.......
हर सपना इक साँप है मन से लिपटा जाए,
विष अमृत कबाहु ना बने,
कहे जतन लगाए.
ॐ नमः शिवाया....
सुख की डफली रोए है,
दुख की बंसी गये,
भक्ति में शक्ति इतनी है,
द्वार स्वयं खुल जाए.
ॐ नमः शिवाया..........
Om Namah Shivaya - ॐ नमः शिवाय
यह वंदना उस परम सत्य का उद्घोष है जहाँ शब्द साधना बन जाते हैं और मौन भी प्रार्थना बन जाता है। “ॐ नमः शिवाय” — यह केवल जप नहीं, अस्तित्व का सार है। इसमें वह तत्व है जिससे सृष्टि उत्पन्न हुई, और वही जिसमें सब विलीन होगा। जो इस मंत्र को समझ लेता है, वह बाहरी यात्रा से भीतर की यात्रा की ओर मुड़ जाता है। पर्वतों पर चढ़ने या नदियाँ पार करने की आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि शिव तो वहीं हैं जहाँ मन स्थिर हो जाए। यह अनुभूति यह सिखाती है कि खोज किसी दिशा की नहीं, समर्पण की होती है। जो भीतर उतरता है, वही पा लेता है। शून्य से लेकर अनंत तक, सारा ब्रह्मांड इन तीन शब्दों में गुंथा हुआ है—ॐ, नमः, शिवाय।
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