कान्हा तेरे रोज उलाहने आवे रे मनमोहन मुरली वाले
कान्हा तेरे रोज उलाहने आवे रे,
मनमोहन मुरली वाले।।
मनमोहन मुरली वाले, मनमोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उलाहने आवे।।
पहला उलाहना तेरा बागों में से आया,
डाली झुकाई तूने, फलों को चुराया।।
तू तो फलों का चोर कहाया रे, मनमोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उलाहने आवे।।
दूजा उलाहना तेरा यमुना में से आया,
कपड़े चुराए तूने, पेड़ पर छुपाए।।
तू तो कपड़ा चोर कहाया रे, मनमोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उलाहने आवे।।
तीसरा उलाहना तेरा गोकुल से आया,
मटकी फोड़ी तूने, माखन चुराया।।
तू तो माखन चोर कहाया रे, मनमोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उलाहने आवे।।
चौथा उलाहना ब्रज नारियों का आया,
बैया मरोड़ी तूने, घूंघटा उठाया।।
तू तो नटखट चोर कहाया रे, मनमोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उलाहने आवे।।
पांचवा उलाहना एक गुजरिया का आया,
नैना मिलाए तूने, दिल को चुराया।।
तू तो दिल का चोर बताया रे, मनमोहन मुरली वाले,
कान्हा तेरे रोज उलाहने आवे।।
रे तेरे रोज उलाहणे आवे रे मनमोहन मुरली आले ।। सरोज घणघस।।