कहाँ से आया कहाँ जाओगे खबर करो अपने तन की कोई सदगुरु मिले तो भेद बतावें खुल जावे अंतर खिड़की
हिन्दू मुस्लिम दोनों भुलाने खटपट मांय रिया अटकी जोगी जंगम, शेख सवेरा लालच मांय रिया भटकी
काज़ी बैठा कुरान बांचे ज़मीन जोर वो करी चटकी हर दम साहेब नहीं पहचाना
Prahlad Singh Tipaniya Bhajan Lyrics in Hindi
पकड़ा मुर्गी ले पटकी
बहार बैठा ध्यान लगावे भीतर सुरता रही अटकी बहार बंदा, भीतर गन्दा मन मैल मछली गटकी
माला मुद्रा तिलक छापा तीरथ बरत में रिया भटकी
गावे बजावे लोक रिझावे खबर नहीं अपने तन की
बिना विवेक से गीता बांचे चेतन को लगी नहीं चटकी कहें कबीर सुनो भाई साधो आवागमन में रिया भटकी
कबीर के भजन अक्सर सरल, सुलभ भाषा का उपयोग करते हैं जिसे विभिन्न पृष्ठभूमि और जीवन के क्षेत्रों के लोग आसानी से समझ सकते हैं। कबीर के भजन अक्सर रोजमर्रा की जिंदगी, जैसे जानवरों, पौधों और प्राकृतिक घटनाओं से खींचे गए रूपकों और इमेजरी का उपयोग करते हैं। कबीर के भजन भक्ति और परमात्मा के प्रति समर्पण के महत्व पर जोर देते हैं, और अक्सर सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए पुनरावृत्ति और कॉल-एंड-रिस्पांस संरचनाओं का उपयोग करते हैं।
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