खुली नहीं थी आँखे पर खुल गए सारे ताले
जबते जनमे तुम गिरधारी
देखे क्या क्या छाळे
जबते जनमे तुम गिरधारी
देखे क्या क्या छाळे
खुली नहीं थी आँखे
पर खुल गए सारे ताले
जो भी बेड़िया पड़ी हुयी थी
पल में खुल गयी सारी
होश खो दिया सबने अपना
चलन की थी जब थी तैयारी
पहरेदार भी सो गए
और गिर गए सारे भाले
खुली नहीं थी आँखे
पर खुल गए सारे ताले
तीन लोक के नाथ ने देख्यो
यो रूप धरया कैसा
पाप का नाश करण की खातिर
रूप ना पहले देख्या ऐसा
काला काला रूप है तेरा
तुम हो सबसे निराले
खुली नहीं थी आँखे
पर खुल गए सारे ताले
होरी स बरसात यो भारी
शेषनाग भी बने पुजारी
चढ़के पैर छुए यमुना जी
देख थी रही ये श्रष्टि सारी
फिर नन्द बाबा के घर पहुँच गए
ये नन्द बाबा के रखवाले
खुली नहीं थी आँखे
पर खुल गए सारे ताले
खुली नहीं थी आँखे
पर खुल गए सारे ताले
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