मन प्राण बुद्धि हो प्रबल चित्त विमल कर दे शारदे

मन प्राण बुद्धि हो प्रबल चित्त विमल कर दे शारदे

(मुखड़ा)
मन, प्राण, बुद्धि हों प्रबल,
चित्त विमल कर दे शारदे,
उठे मन में उद्रेक सात्विक,
उद्दात भाव का सार दे।।

(अंतरा)
हे ज्ञानेश्वरी, हे योगेश्वरी,
माँ सरस्वती, वागेश्वरी,
निपट मूर्ख ये दास तेरा,
ज्ञान-ज्योति का संचार दे,
मन, प्राण, बुद्धि हों प्रबल,
चित्त विमल कर दे शारदे।।

श्वेतवर्णी, कमल-आसिनी,
हंस-वाहिनी, ज्ञान-दायिनी,
सुदृढ़ हो हर कर्म लक्ष्य मेरा,
ऐसा संकल्पित विचार दे,
मन, प्राण, बुद्धि हों प्रबल,
चित्त विमल कर दे शारदे।।

(पुनरावृति)
मन, प्राण, बुद्धि हों प्रबल,
चित्त विमल कर दे शारदे,
उठे मन में उद्रेक सात्विक,
उद्दात भाव का सार दे।।
 

चित विमल करदे शारदे।सरस्वती वंदना।रूपेश चौधरी।निशांत झा "बटोही"।7004825279
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