पढ़ि पढ़ि के पत्थर भये लिखि भये जु ईट हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

पढ़ि पढ़ि के पत्थर भये लिखि भये जु ईट हिंदी मीनिंग Padhi Padhi Ke Patthar Bhaye Liki Bhaye Jhyu Int Meaning

 
पढ़ि पढ़ि के पत्थर भये, लिखि भये जुईट।
कबीर अन्तर प्रेम का लागी नेक न छींट।।
 
Padhi Padhi Ke Patthar Bhaye, Likhi Bhaye Jueet.
Kabeer Antar Prem Ka Laagee Nek Na Chheent. 
 
पढ़ि पढ़ि के पत्थर भये लिखि भये जु ईट हिंदी मीनिंग Padhi Padhi Ke Patthar Bhaye Liki Bhaye Jhyu Int Meaning
 
दोहे का हिंदी मीनिंग: किताबी ज्ञान का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है जब तक की व्यक्ति में प्रेम का अभाव हो। हृदय में मानवता के लिए प्रेम, दया, सहयोग और करुणा के अभाव पढ़ पढ़ कर पत्थर के समान और लिख लिख कर ईंट / जीवन रहित हो गए हैं लेकिन उनके हृदय में प्रेम के छींटे नहीं लगे हैं।
 
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय
 
पंडित (विद्वान् ) कौन है ? मोटी मोटी किताबों को पढ़ कर कोई पंडित नहीं हुआ है। पंडित वही बन पाया है जिसने ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ लिए हों। मानव देह पाकर यदि दया नहीं है, करुणा नहीं है तो किताबी ज्ञान का औचित्य क्या है, कुछ नहीं। ढाई अक्षर से अभिप्राय है जो कभी पूर्ण ना हो ऐसा है प्रेम। 
 
प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय। 
 
यह मिलेगा कहाँ ? किताबों में, बाजारों में। प्रेम तो हृदय में पैदा होता है जिसे यत्न पूर्वक न तो पैदा किया जा सकता है और ना ही बाजार से मूल्य चूका कर ख़रीदा जा सकता है। इसके लिए अहम् को समाप्त करना होता है फिर कहीं जाकर प्रेम पैदा होता है।

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