ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय हिंदी मीनिंग Aisi Bani Boliye Man Ka Aapa Khoy-Hindi Meaning
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय |
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय
या
शब्द जु ऐसा बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपन को सुख होय।।
औरन को शीतल करे, आपन को सुख होय।।
Aisee Baanee Bolie, Man Ka Aapa Khoy |
Auran Ko Sheetal Karai, Aapahu Sheetal Hoy
Or
Shabd Ju Aisa Boliye, Man Ka Aapa Khoy.
Auran Ko Sheetal Kare, Aapan Ko Sukh Hoy.
Auran Ko Sheetal Karai, Aapahu Sheetal Hoy
Or
Shabd Ju Aisa Boliye, Man Ka Aapa Khoy.
Auran Ko Sheetal Kare, Aapan Ko Sukh Hoy.
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय हिंदी मीनिंग Aisi Bani Boliye Man Ka Aapa Khoy-Hindi Meaning
शीतल वाणी से स्वंय को सुख पहुँचता ही है और दूसरों को भी सुख की अनुभूति होती है। यह विषय जरा मनोवैज्ञानिक है। जब 'अहम् ' का नाश होता है, मैंने ये किया, मैं ये हूँ, मै बड़ा हूँ, खुद के सर्वोच्च होने का भाव सामाजिक हो जाने पर, दूसरों का भी महत्त्व समझने पर वाणी स्वतः ही शीतल होने लगती है। अहम् के नाश होने से अभिप्राय है की मुझे बड़ा कोई है जो परमसत्ता है और जो इस संसार को चला रहा है, हम सब उसी के प्रति जवाबदेह हैं, जब कहीं जाकर वाणी शीतल होती है।
वाणी के शीतल होने पर वह दूसरों को भी सुख पहुँचाती है और खुद को भी सुखद महसूस होता है। वर्तमान समय में यदि आप देखें तो जितने भी झगड़े फसाद, टंटे हैं उनका कारन ज्यादातर शारीरिक हिंसा नहीं है, उनका कारण है दूसरों के लिए अपशब्द, वाणी की कठोरता। तलवार का घाव तो भर जाता है लेकिन वाणी का घाव नहीं भरता है। इसलिए वाणी को नियंत्रित करना आवश्यक है।
वाणी नियंत्रित होती है एकमात्र 'प्रेम' से। और यह प्रेम तो बाजार में कहीं बिकता नहीं है, इसे तो स्वंय पैदा होना है, सकारात्मक परिस्थितियों में। 'प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय' यह ढाई है इसलिए अनंत है, कभी पूर्ण नहीं होने वाला। भाव है की वाणी की शीतलता से स्वंय को भी सुख मिलता है और दूसरों को भी शीतलता मिलती है।
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वाणी के शीतल होने पर वह दूसरों को भी सुख पहुँचाती है और खुद को भी सुखद महसूस होता है। वर्तमान समय में यदि आप देखें तो जितने भी झगड़े फसाद, टंटे हैं उनका कारन ज्यादातर शारीरिक हिंसा नहीं है, उनका कारण है दूसरों के लिए अपशब्द, वाणी की कठोरता। तलवार का घाव तो भर जाता है लेकिन वाणी का घाव नहीं भरता है। इसलिए वाणी को नियंत्रित करना आवश्यक है।
वाणी नियंत्रित होती है एकमात्र 'प्रेम' से। और यह प्रेम तो बाजार में कहीं बिकता नहीं है, इसे तो स्वंय पैदा होना है, सकारात्मक परिस्थितियों में। 'प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय' यह ढाई है इसलिए अनंत है, कभी पूर्ण नहीं होने वाला। भाव है की वाणी की शीतलता से स्वंय को भी सुख मिलता है और दूसरों को भी शीतलता मिलती है।
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