या घट भीतर बाग़ बगीचे Ya Ghat Bheetar Bag Bageeche Bhajan

या घट भीतर बाग़ बगीचे Ya Ghat Bheetar Bag Bageeche Bhajan

 
या घट भीतर बाग़ बगीचे लिरिक्स हिंदी Ya Ghat Bheetar Bag Bageeche Ya Hi Me Srijanhara Lyrics

या घट भीतर बाग़ बगीचे
या ही में सिरजनहारा
ढूंढे रे ढूंढे अंधियारा
या घट भीतर सात समंदर
या ही में नौ लख तारा
ढूंढे रे ढूंढे अंधियारा
या घट भीतर हीरा और मोती
या ही में परखनहारा
ढूंढे रे ढूंढे अंधियारा
या घट भीतर अनहद गरजे
या ही में उठत फुवारा
ढूंढे रे ढूंढे अंधियारा
कहे कबीरा सुनो भाई साधो
या ही में गुरु है हमारा
ढूंढे रे ढूंढे अंधियारा
 
 
यह भी देखें You May Also Like
बोलत ही पहचानिये साहु चोर का घाट ।
अन्तर घट की करनी निकले मुष की बाट ।

दिल का महरमी कोइ न मिला जो मिला सो गरजी ।
कहैं कबीर असमानहिं फाटा क्यों कर सोवै दरजी ।

ई जग जरते देषिया अपनी अपनी आगि ।
ऐसा कोई ना मिला जासो रहिये लागि ।

बना बनाया मानवा बिना बुद्धि बेतूल ।
काह कहा लाल ले कीजिए बिना बास का फूल ।

सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप ।
जाके हृदया साँच है ताके हृदया आप ।

कारे बडे कुल ऊपजै जोरे बडो बुद्धि नाहिं ।
जैसा फूल हजार का मिथ्या लगि झरिजाहि ।

करते किया न बिधि किया रबि ससि परी न दृष्टि ।
तीन लोक में है नहीं जाने सकलो सृष्टि ।

सुरपुर पेड अगाध फल पंछी परिया झूर ।
बहुत जतन कै षोजिया फल मीठा पै दूर ।

बैठा रहै सो बानियाँ ठाढ रहै सो ग्वाल ।
जागत रहै सो पाहरू तेहि धरि षायो काल ।

आगे आगे धौं जरै पाछे हरियर होए ।
बलिहारी तेहि वृक्षा को जर काटे होए ।

जन्म मरन बालापना चौथे बृद्ध अवस्था आए ।
ज्यों मूसा को तकै बिलाई अस जम जीवहि घात लगाए ।

है बिगरायल अवर का बिगरो नाहिं बिगारे ।
घाव काहे पर घालिये जित तित प्रान हमारो ।

पारस परसै कंचन भौ पारस कधी न होए ।
पारस से अर्स पर्स ते सुबरन कहावे सोए ।

ढूँढत ढूँढत ढूँढिया भया सो गूनागून ।
ढूँढत ढूँढत न मिला तब हारि कहा बेचून ।

बेचूने जग चूनिया सोई नूर निनार ।
आषिर ताके बषत में किसका करो दिदार ।

सोई नूर दिल पाक है सोई नूर पहिचान ।
जाको किया जग हुआ सो बेचून क्यों जान ।

ब्रह्मा पूछे जननि से कर जोरे सीस नवाए ।
कौन बरन वह पुरुस है माता कहु समुझाए ।

रेष रूप वै है नहीं अधर धरी नहिं देह ।
गगन मंदिल के मध्य में निरषो पुरुष बिदेह ।

धारेउ ध्यान गगन के माँहीँ लाये बज्र किवार ।
देषि प्रतिमा आपनी तीनिउ भये निहाल ।

ए मन तो सीतल भया जब उपजा ब्रह्म ग्यान ।
जेहि बसंदर जग जरै सो पुनि उदक समान ।

जासो नाता आदि का, बिसर गयो सो ठौर ।
चौरासी के बसि परा, कहै और की और ।

अलष लषौं अलषैं लषौं, लषौं निरंजन तोहि ।
हौं कबीर सबको लषौं, मोको लषै न कोइ ।

हम तो लषा तिहु लोक में, तू क्यों कहा अलेष ।
सार सब्द जाना नहीं, धोषे पहिरा भेष ।

साषी आँषी ग्यान की, समुझ देषि मन माहिं ।
बिनु साषी संसार का, झगरा छूटत नाहिं ।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें

+

एक टिप्पणी भेजें