कान्हा रोज रोज तुमको सजाता रहूँ
कान्हा रोज रोज तुमको सजाता रहूँ
कान्हा रोज-रोज तुमको सजाता रहूँ, और मनाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं।।
दुग्ध, दधि, जल, शहद से नहलाया करूँ,
रेशमी वस्त्र सुंदर पहनाया करूँ।।
तेरे नयनों में कजरा लगाता रहूँ, गीत गाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं।। कान्हा।।
कुंकुम, केसर के चंदन लगाऊँ तुझे,
पुष्पमाला मैं सुंदर पहनाऊँ तुझे।।
पग में पैजनियाँ सुंदर पहनाता रहूँ, और नचाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं।। कान्हा।।
प्यार से सुंदर व्यंजन खिलाऊँ तुझे,
दुग्ध में मिश्री, केसर पिलाऊँ तुझे।।
तेरी सेवा में तन-मन लगाता रहूँ, मुस्कुराता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं।। कान्हा।।
साथ में गाकर लोरी सुलाऊँ तुझे,
प्यारा सा गीत गाकर जगाऊँ तुझे।।
कांत, सपनों में भी मैं सजाता रहूँ, और मनाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं।। कान्हा।।
भजन रचना : प. पू. श्री श्रीकांत दास जी महाराज
स्वर : सियाराम जी
श्रीकृष्ण की दिव्य छवि का अद्भुत चित्रण है, जहाँ साधक अपनी संपूर्ण श्रद्धा और प्रेम से उनकी सेवा में लीन रहता है। कान्हा को प्रतिदिन संवारने, सजाने और उनकी आराधना करने का भाव प्रकट होता है। स्नान के लिए दुग्ध, दही, शहद और जल का उपयोग कर दिव्य अभिषेक किया जाता है, रेशमी वस्त्र धारण कराए जाते हैं, नयनों में काजल और चरणों में पायजेब पहनाकर प्रेमपूर्वक नृत्य कराया जाता है। चंदन, केसर और कुंकुम से उनका श्रृंगार किया जाता है, सुंदर पुष्पमालाओं से उन्हें सुशोभित किया जाता है। उनके लिए प्रेमपूर्वक स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं, मिश्री और केसर मिश्रित दूध अर्पित किया जाता है। उनकी सेवा में तन-मन समर्पित करते हुए साधक हृदय से प्रसन्न रहता है। मधुर लोरी गाकर उन्हें सुलाना और सुंदर गीतों से जगाना, सपनों में भी उन्हें सजाने और उनकी आराधना करने का अनवरत संकल्प प्रकट होता है। इस प्रेममय भक्ति में किसी भी प्रकार की कमी न रहे, इसका दृढ़ निश्चय झलकता है। श्रीकृष्ण की ऐसी समर्पित सेवा, निष्काम प्रेम और अखंड भक्ति का अनुपम भाव प्रकट होता है, जो साधक को उनकी दिव्य कृपा प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
श्याम भजन :कान्हा रोज रोज तुमको सजाता रहूँ!!दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज!!स्वरःसियाराम जी ।
भजन रचना : प• पू• श्री श्रीकान्त दास जी महाराज ।
स्वर : सियाराम जी ।
भजन के शब्द :