लागत बून्द कटारी पिया बिन भजन
राग मल्हार
लागत बून्द कटारी पिया बिन,
छिन भीतर छिन बाहिर आवत छिन में चढत अटारी,
पिया बिन लागत बून्द कटारी,
दादुर मोर पपैया बोलत कोयल कुंजे कारी,
सूरदास प्रभु तिहारे मिले बिन दुःख व्यापो मोहि भारी,
लागत बून्द कटारी पिया बिन,
छिन भीतर छिन बाहिर आवत छिन में चढत अटारी,
पिया बिन लागत बून्द कटारी,
दादुर मोर पपैया बोलत कोयल कुंजे कारी,
सूरदास प्रभु तिहारे मिले बिन दुःख व्यापो मोहि भारी,
जागत रैंन गई, पिया बिन
जागत रैंन गई।
अवधि वदी गए, अजहू न आये,
बड़ी बेर भयीं॥१॥
कछु कहत हो, करत कछु और,
कौन सीख दई।
सांच नही तेरो एको अंग,
कहाँजू रीत लई॥२॥
कैसे कीजे विश्वास, भये हो विषई।
रसिक प्रीतम रावरी, छीन छीन गती नई॥
बोलवेकी नाहीं, तुमसो बोलवेकी नाहीं।
घर घर गमन करत सुंदरपिय,
चित्त नाही एक ठाहीं॥१॥
कहा कहो शामल घन तुमसो,
समज देख मन माहीं।
सूरदास प्रभु प्यारीके वचन सुन,
ह्रदय मांझ मुस्कानी॥
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