रंग बाँकों साँवरिया डार गयो री भजन
होली के इस अवसर पर श्रद्धेय गौरव कृष्ण गोस्वामी जी की आवाज में सुनिए बृज गीत "रंग, बाँकों साँवरिया डार गयो री" बृज की प्रसिद्ध होली वृंदावन और मथुरा के बृज क्षेत्र में बड़े ही उत्साह के साथ खेली जाती है जो की सीधे श्री कृष्ण से जुडी हुई है। ब्रज वह क्षेत्र है जहां भगवान कृष्ण अपने मित्रों और राधा और अन्य गोपियों के साथ होली खेलते थे। चाहे बरसाना और नंदगांव में उसकी लठामार होली हो, वृंदावन में फूलन वाली होली हो, विधवा की होली हो, या बांके बिहारी मंदिर की होली हो, बृज भूमि पर होली का अपना ख़ास महत्त्व है।
रंग, बाँकों साँवरिया डार (डाल ) गयो री,
डार गयो री, रंग डार गयो री,
रंग, बाँकों साँवरिया (बाँके बिहारी) डार गयो री,
सारी सुरंग रंग जरतारी, (जरतारी-जिसमे स्वर्ण और रजत लगा हो)
सारी सुरंग रंग जरतारी,
हो, भर पिचकारी, मार गयो री,
हो मोपे (मुझपे), भर पिचकारी मार गयो री,
रंग, बाँकों साँवरिया डार गयो री,
रंग, बाँकों साँवरिया डार गयो री,
बइयाँ पकर मोहे झकझोरी,
हो झटक चुनरिया फार (फाड़ ) गयो री,
ओ मेरी, झटक चुनरिया फार गयो री,
रंग, बाँकों साँवरिया डार गयो री,
रंग, बाँकों साँवरिया डार गयो री,
दृगन अबीर गुलाल गाल मल,
हँस हॅंस सैन (इशारा ) चलाय गयो री,
ओ वो तो, हँस हँस सैन चलाय गयो री,
रंग, बाँकों साँवरिया डार गयो री,
रंग, बाँकों साँवरिया डार गयो री,
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