हल्दी मुलाई थारे तेल चढ़ावा भजन
हल्दी मुलाई थारे तेल चढ़ावा,
हल्दी रो मोल चुकावां ला,
उगतेड़ो सूरज रो रंग लागे सुरंगो,
मैं तो भोरा भोर बाणे बिठावाला,
मैं तो हरा हरा मूँग बिखरा वाला,
यह शादी के समय गाया जाने वाला एक प्रसिद्व गीत धार्मिक गीत है। हल्दी मुलाई से अभिप्राय है हल्दी को बदन पर लगाया है और तेल चढाने से आशय है हल्दी और तेल की रस्म को पूरा करना। हल्दी और तेल को "मुलाने" से आशय है की हल्दी दुल्हन को दूल्हे (ससुराल) पक्ष से आती है। जैसे उगते हुए सूरज का रंग लाल होता है उसी भांति हल्दी का रंग भी सुरंगा (लाल ) होता है। सुबह जल्दी बान बैठता है, जिसके लिए कहा गया है की सूर्योदय पर इस रस्म को पूरा किया जाता है। मूँग का भी राजस्थानी सस्कृति में विशेष स्थान है। हर धार्मिक और शुभ कार्यों में मूँग का उपयोग होता है। जैसे हरा रंग समृद्धि का प्रतीक होता है वैसे ही राजस्थान में हरे मूँग को पवित्र कार्यों में उपयोग में लिया जाता है। शादी दे समय सात सुहागन स्त्रियां मूँग को दुल्हन के घर के आँगन में बिखेरती हैं।
Repeat ( हल्दी मुलाई थारे तेल चढ़ावा,
हल्दी रो मोल चुकावां ला,
उगतेड़ो सूरज रो रंग लागे सुरंगो,
मैं तो भोरा भोर बाणे बिठावाला,
मैं तो हरा हरा मूँग बिखरा वाला, )
तेल चढ़ावा पाछे तेल उतारां,
कामणगारी निजरा सूं बचावाँगा,
बहना भुआ मंगल गावे, नेग चुकावे,
मैं तो 'बाई' जी से आरती करावांगा,
मैं तो हरा हरा मूँग बिखरा वाला,
हल्दी और तेल को चढाने के बाद शादी के रोज़ इसे दुबारा उतारा जाता है। ऐसा माना जाता है की तेल उतारने के बाद नजर उतारी जाती है क्योंकि हल्दी चढाने से सौंदर्य भी बढ़ता है। इस अवसर पर नजर उतारकर उस समय नेग (रस्म ) पूरा किया जाता है। बहन और भुआ मंगल गाती हैं, और बहन (बाई) आरती उतारने की रस्म पूर्ण करती है।
ऐसे ही अन्य भजनों के लिए आप होम पेज / गायक कलाकार के अनुसार भजनों को ढूंढें.
ऐसे ही अन्य मधुर भजन देखें
पसंदीदा गायकों के भजन खोजने के लिए यहाँ क्लिक करें।
You may also like...