कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग सहित Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning
जेती देषौं श्रात्मा, तेता सालिग राम ।साधू प्रतषि देव हैं, नहीं पाथर सूकाम ॥
Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning दोहे का हिंदी में भावार्थ : इस संसार में जितनी आत्माएं हैं उतने ही सालिग्राम हैं (पत्थर की मूर्तियाँ हैं) साधू तो स्वंय ही देवता होता है उसे किसी अन्य की आवश्यकता नहीं होती है। साधुजनों को अन्य किसी पत्थर की पूजा करने की कोई आवश्यकता नहीं होती हैं क्योंकि वो तो खुद ही प्रत्यक्ष देव हैं।
सेवै सालिग राम कू, मन की भ्रांति न जाइ ।
सीतलता सुपनैं नहीं, दिन दिन अधकी लाइ ॥
दोहे का हिंदी में भावार्थ : पत्थरों की मूर्ति की पूजा करने वाला कभी शान्ति को प्राप्त नहीं होता है, उसके मन में और अधिक पाने की लालसा लगी ही रहती है। मूर्ति पूजा मन का भ्रम है जिसे समझना चाहिए और उसे अधिक पाने की लालसा लगी रहती है।
जप तप दीसैं थोथरा, तीरथ व्रत वेसास ।
सूवै सैंवल सेविया यौ, जग चल्या निरास ॥
दोहे का हिंदी में भावार्थ : जप तप तीर्थ, वर्त एंव विभिन्न देवताओं में विश्वास रखने वाला व्यक्ति थोथा होता है ऐसे व्यक्ति को सदा ही निराशा ही हाथ लगती है जैसे संवर के फल में चोंच मारने पर तोते को निराशा ही हाथ लगती हैं। भाव है की जीव को सच्चे मन से ईश्वर का सुमिरण किया जाना चाहिए।
तीरथै तै सध वेलड़ी, सब जग मेल्या छाइ।
कबीर मूल निकंरिया, कौण हलाहल खाइ ॥
Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning दोहे का हिंदी में भावार्थ : जैसे जंगल की बेल फैलकर चरों तरफ फ़ैल जाती है वैसे ही पाखंड व्रत आदि भी लोगों में फ़ैल चुके हैं, कबीर दास जी ने इस बेल को जड़ से ही नष्ट कर दिया है और अब इसके फल की आवश्यकता किसे है, किसी को नहीं।
सेवै सालिग राम कू, मन की भ्रांति न जाइ ।
सीतलता सुपनैं नहीं, दिन दिन अधकी लाइ ॥
दोहे का हिंदी में भावार्थ : पत्थरों की मूर्ति की पूजा करने वाला कभी शान्ति को प्राप्त नहीं होता है, उसके मन में और अधिक पाने की लालसा लगी ही रहती है। मूर्ति पूजा मन का भ्रम है जिसे समझना चाहिए और उसे अधिक पाने की लालसा लगी रहती है।
जप तप दीसैं थोथरा, तीरथ व्रत वेसास ।
सूवै सैंवल सेविया यौ, जग चल्या निरास ॥
दोहे का हिंदी में भावार्थ : जप तप तीर्थ, वर्त एंव विभिन्न देवताओं में विश्वास रखने वाला व्यक्ति थोथा होता है ऐसे व्यक्ति को सदा ही निराशा ही हाथ लगती है जैसे संवर के फल में चोंच मारने पर तोते को निराशा ही हाथ लगती हैं। भाव है की जीव को सच्चे मन से ईश्वर का सुमिरण किया जाना चाहिए।
तीरथै तै सध वेलड़ी, सब जग मेल्या छाइ।
कबीर मूल निकंरिया, कौण हलाहल खाइ ॥
Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning दोहे का हिंदी में भावार्थ : जैसे जंगल की बेल फैलकर चरों तरफ फ़ैल जाती है वैसे ही पाखंड व्रत आदि भी लोगों में फ़ैल चुके हैं, कबीर दास जी ने इस बेल को जड़ से ही नष्ट कर दिया है और अब इसके फल की आवश्यकता किसे है, किसी को नहीं।
पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।।
Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning हिंदी भावार्थ : एक दुसरे से तुलना की प्रवृति को समाप्त कर निष्पक्ष होकर हरी का भजन करना ही मुक्ति का मार्ग है। भाव है की तुलना करना यथा कौन किस बिरादरी का है, किसकी क्या जाती है, यह इस देस का है आदि संत जन के कार्य नहीं हैं, संत जन तो निष्पक्ष होकर मूल्यांकन करते हैं।
सेप सबूरी बाहिरा, क्या हज काबै जाइ।
जिनकी दिल स्याबति नहीं, तिनकौ कहाँ खुदाइ।।
Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning हिंदी भावार्थ : सांकेतिक भक्ति पर कटाक्ष है की तुम्हारे हृदय में सब्र और संतोष नहीं है तो तुम्हारे काबा जाने से कोई लाभ नहीं होने वाला है और जिनके हृदय में ईश्वर की भक्ति का भाव नहीं है, हृदय साफ़ नहीं है उनको खुदा प्राप्त नहीं होने वाला है। भाव ही की ईश्वर की प्राप्ति हेतु अपने आचरण को शुद्ध रखना होता है, आचरण की शुद्धता के बगैर कोई व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है। यह मन का भ्रम है की काबा जाने से किसी को खुदा की प्राप्ति हो जायेगी, काबा जाने से पूर्व खुदा के बताए गए मार्ग का अनुसरण आवश्यक है।
खूब खाँड हैं खीचड़ी, माँहि पड़ै टुक लूण।
पेड़ा रोटी खाइ करि, गला कटावै कौण।।
हिंदी भावार्थ : यदि खिंचडी में थोडा सा नमक डाल दिया जाए तो वह और अधिक स्वादिष्ट बन जाती है, पैडा और रोटी खा करके कोई व्यक्ति अपना गला कैसे कटा सकता है। जिसे ईश्वर से लगन लगी है वह कभी कष्ट नहीं पाता है।
पापी पूजा बैसि करि, भषै माँस मद दोइ।
तिनकी दृष्या मुकति नहिं, कोटि नरक फल होइ।।
Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning हिंदी भावार्थ : पापी व्यक्ति पूजा पाठ करके अपने पापों को दूर करना चाहते हैं और सोचते हैं की उनके पाप दूर हो जायेंगे, लेकिन यह सत्य नहीं है और ऐसे लोग कभी भी मुक्ति को प्राप्त नहीं होते हैं, इन्हें करोड़ों नरक के फल भोगने पड़ते हैं। भाव है की पापी लोग भले ही पूजा करने बैठ जाए लेकिन तब तक वे पापों से तौबा नहीं करते हैं तब तक उन्हें मुक्ति प्राप्त नहीं होती है और वे दण्डित भी होते हैं। सांकेतिक भक्ति, दिखावे की भक्ति और झूठा आडम्बर रच कर, कर्मकांड करने से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है, यदि हरी से मिलाप करना है तो ईश्वर के प्रति सद्भाव होना आवश्यक है, तभी जाकर मुक्ति के दवार प्रशस्त होते हैं। अपने आचरण को शुद्ध करके, अपने व्यवहार में मानवता को अपना कर ही हम ईश्वर के प्रति प्रेम को दर्शा सकते हैं।
कबीर लज्या लोक की, सुमिरै नाँही साच ।
जानि बूभि कंचन तजै, काठा पकड़ै काच ॥
हिंदी भावार्थ : मनुष्य माया के प्रभाव में आकर लोक लाज को विस्मृत कर सत्य के मार्ग को विस्मृत कर देता है, यह ऐसा ही है जैसे कोई स्वर्ण को छोडकर काठ को पकड़ लेता है। भाव है की मनुष्य अपने मन के चले चलता है, मन में तो माया का भ्रम बसा है जो विवेक को समाप्त कर देता है और वह अनैतिक कार्यों की ओर अग्रसर हो जाता है, जो जीव को केवल नरक की ओर ही अग्रसर करता है।
कबीर जिनि जिनि जाँनियाँ,करता केवल सार।
सो प्राँणी काहै चलै झूठे जग की लार॥
Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning हिंदी भावार्थ : जिन प्राणियों ने यह समझ लिया है की ईश्वर का मालिक एक ही है, परम ब्रह्म है तो वह झूठे जगत का अनुसरण नहीं करता है। जिन लोगों को अभी भी भ्रम है वे संसार जिधर चलता है उधर ही चल पड़ते हैं, ब्रह्म को जिसने जान लिया है वह समझे की कोरा कागज बन जाता है, जिसका ना कोई दोस्त है, ना कोई शत्रु है और ना ही उसे अब माया भ्रमित ही कर पाती है।
झूठे कौ झूठा मिलै दूँण बधै सनेह ।
झूठे कूँ सांचा मिलै, तबही टूटै नेह ॥
हिंदी भावार्थ : झूठे व्यक्ति को झूठा ही अच्छा लगता है। झूठे व्यक्ति को जब सत्य और सच्चा व्यक्ति मिलता है तो उसका प्रेम झूठे से समाप्त हो जाता है क्योंकि उसे सत्य का ज्ञान होने लगता है। भाव है की जब कोई राह दिखाने वाला मिलता है तभी जाकर सत्य क्या है इसका ज्ञान प्राप्त होता है और उसका झूठ के प्रति स्नेह कम होने लगता है, प्रीत/नेह टूट जाती है।
पाहण केरा पूतला, करि पूजै करतार।
इही भरोसै जे रहे, ते घूड़े काली धार।।
हिंदी भावार्थ : मूर्ति पूजा पर व्यंग्य करते हुए साहेब की वाणी है की जो व्यक्ति पत्थर की मूर्ति बना कर उसकी पूजा करते हैं और पत्थर को ही ईश्वर समझते हैं वे काल के बहाव में बह जाते हैं। इस दोहे का भाव है की ईश्वर को पत्थरों में ढूंढने वाला व्यक्ति काल के द्वारा अपना शिकार बना लिया जाता है। वस्तुतः साहेब की वाणी है की ईश्वर किसी स्थान विशेष का, मूर्तियों में, तीर्थों में, कर्मकांडों में नहीं बल्कि वह तो कण कण में व्याप्त है, हम सबके हृदय में बसता है लेकिन वह विस्मृत इसलिए हो जाता है क्योंकि उसे हम पहचान ही नहीं पाते हैं, उसे पहचानने के लिए हमें नेक कर्म करने होते हैं, अपने आचरण में शुद्धता लानी होती है और माया के भ्रम जाल से दूर रहना होता है इसके बाद ही हम उसे अपने हृदय में खोज पाते हैं। ईश्वर को खोजने का जो भटकाव है वह इसलिए है की हम स्वंय को दुरुस्त नहीं करना चाहते हैं और तमाम सुखों, त्रश्नाओं की चक्कर में लगे रहते हैं और ईश्वर से और अधिक दूर हो जाते हैं।
काजल केरी कोठरी, मसि के कर्म कपाट ।
पाँहनि बोई पृथमीं, पंडित पाड़ी बाट
Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning हिंदी भावार्थ : मूर्ति पूजा के सबंध में इस वाणी में बताया गया है की यह संसार काजल की कोठरी है जिसमे काली स्याही के किवाड़ लगे हुए हैं, पंडितों ने पूरी श्रष्टि को पत्थरों से ढक दिया है, पत्थरों की मूर्तियों से ढक दिया है, ऐसा लगता है की वे स्वंय इसी मार्ग से आगे बढकर मुक्ति प्राप्त करना चाहते हैं। मूर्ति पूजा महज एक पाखंड है जिससे हम स्वंय को राजी कर सकते हैं, लेकिन इससे जीव को कुछ हासिल नहीं होगा।
पाहन कू का पूजिए, जे जनम न देई जाब।
आंधा नर आसामुषी, यौहिं खोवै आव।।
हिंदी भावार्थ : साहेब की वाणी है की उस पत्थर की मूर्ति को क्या पूजना जो जीवन भर तक जवाब ही नहीं देती है, उसे पूजने वाले अंधे हैं जो व्यर्थ में ही अपने जीवन को समाप्त कर लेते हैं। भाव है की ईश्वर किसी मंदिर की मूर्ति में नहीं बल्कि हर जगह फैला हुआ है, वह तो सूरज की किरणों की भाँती हर जगह व्याप्त है उससे तभी पहचान मिलेगी जब जीव सद्कर्म करके मालिक का अन्तः करण से सुमिरण करेगा, अन्यथा सिर्फ भटकाव ही पल्ले लगना है।
हम भी पॉंहन पूजते, होते रन के रोझ।
सतगुरु की कृपा भई, डारया सिर थै बोझ।।
Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning दोहे का हिंदी भावार्थ : यदि कोई मूर्ति पूजा करता है तो समझे की वह युद्ध में गधे की तरह है जो युद्ध में बोझा दोने के काम आता है, हम पर तो सतगुरु जी की कृपा हुई जो हमें इस मार्ग से विमुख करके सत्य की राह पर अग्रसर किया। भाव है की मूर्ति पूजा केवल भटकाव है, आडम्बर है जिससे हमकों कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है। यह कर्मकांडों का बोझ है, दिखावे की भक्ति का बोझ है जिसे उतार कर हमकों फेंक देना चाहिए और सच्चे मन से प्रभु की भक्ति में लीन हो जाना चाहिए, यही सच्ची भक्ति है और सद्मार्ग पर चलकर ही हरी की प्राप्ति होगी। मन को प्रशन्न करने के लिए भले ही कोई पूजा कर ले, दान कर ली लेकिन यदि उसने मानवीय गुणों को नहीं अपनाया है, दया को नहीं अपनाया है, हृदय से अहम् को समाप्त नहीं किया है तो सभी बातें व्यर्थ हैं।
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