बलिहारी गुरु आपनो घड़ी घड़ी सौ सौ बार मीनिंग Balihari Guru Aapno Meaning : Kabir Doha Hindi Meaning Bhavarth
बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी घड़ी सौ सौ बार।
मानुष से देवत किया करत न लागी बार॥
या
बलिहारी गुरु आपकी, घरी घरी सौ बार।
मानुष तैं देवता किया, करत न लागी बार ।।
मानुष से देवत किया करत न लागी बार॥
या
बलिहारी गुरु आपकी, घरी घरी सौ बार।
मानुष तैं देवता किया, करत न लागी बार ।।
या
बलिहारी गुर आपणैं, द्यौहाड़ी कै बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार॥
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार॥
Balihaaree Guru Aapakee, Gharee Gharee Sau Baar.
Maanush Tain Devata Kiya, Karat Na Laage Baar.
Balihari Guru Aapano, Ghadi Ghadi Sou Sou Baar,
Manush Se Devat Kiya, Karat Na Lagi Baar.
कबीर दोहे/साखी के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Meaning
- बलिहारी -न्योछावर जाना/सदके जाना/एहसान मानना/उत्सर्ग जाना/बलिदान करना.
- गुरु आपकी-गुरु का.
- घरी घरी सौ बार-घड़ी घड़ी/सैंकड़ों बार.
- मानुष -मनुष्य.
- तैं -से (मनुष्य से देवता किया )
- देवता किया-देव तुल्य बना दिया.
- करत न लागी बार -इसमें कोई विलम्ब नहीं लगा.
इस दोहे में कबीर जी कह रहे हैं कि उनका मन समर्पित है गुरु के प्रति, जिसने उन्हें बिना देरी के मानव से देवता बना दिया है। यहां "बलिहारी" का अर्थ है समर्पित होना या समर्पण करना। "आपणे" का अर्थ है आप पर, जिससे संबंधित। "द्यौहाड़ी" शब्द का अर्थ है देर लगना या समय का लगना। "बार" शब्द का अर्थ है देर लगना या समय का लगना। "जिनि" शब्द का अर्थ है जिसने। "मानिश ते देवता करत ना लागि बार" का अर्थ है मानव से देवता बनने में देर नहीं लगी। इसका मतलब है कि गुरु के प्रशाद से मानव से देवता बनने के लिए देरी नहीं लगी। गुरु की कृपा ने उन्हें शीघ्र ही देवता बना दिया।
हिंदी अर्थ / भावार्थ : गुरुदेव के प्रति कबीर साहेब की वाणी है की वे गुरु के प्रति सौ सौ बार न्योछावर जाते हैं जिन्होंने उसे मनुष्य से पल भर में देवता तुल्य बना दिया है. गुरु ही साधक / शिष्य के अवगुणों को रेखांकित करके उसे सत्य के मार्ग की और अग्रसर करते हैं. गुरु के सानिध्य में ही साधक को वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त हो पाता है और वह भक्ति मार्ग की और अग्रसर हो पाता है. गुरु के उपदेशों के अभाव में वह इस संसार को ही अपना वास्तविक घर समझने लग जाता है और इश्वर सुमिरन से विमुख हो जाता है.
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मानवीय अवगुणों को दूर करने के लिए गुरु का सानिध्य आवश्यक है. गुरु के अभाव में मनुष्य पशु के समान खा पीकर सो जाता है और माया जोड़ने के जाल में फंसा रहता है. ऐसी ही उसकी तमाम उम्र पूर्ण हो जाती है. लेकिन जब जीवात्मा गुरु के सानिध्य में आती है तो गुरु उसे ज्ञान देता है की यह जगत मिथ्या है, भ्रम है. यह स्थाई घर नहीं है. एक रोज सब कुछ छोड़कर जाना है. हरी सुमिरन ही मुक्ति का द्वार है.