घोर अंधकार हो चल रही बयार हो

घोर अंधकार हो चल रही बयार हो

घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो..
आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं !
यह निशीथ का दिया, ला रहा विहान है !!

शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ..
भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता दिया..
रुक रही न नाव हो, जोर का बहाव हो..
आज गंग-धार पर यह दिया बुझे नहीं !
यह स्वदेश का दिया, प्राण के समान है !!

यह अतीत कल्पना, यह विनीत प्रार्थना ..
यह पुनीत भावना, यह अनंत साधना..
शांति हो, अशांति हो, युद्ध, संधि, क्रांति हो..
तीर पर, कछार पर, यह दिया बुझे नहीं !
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है !!

तीन-चार फूल हैं, आस-पास धूल हैं..
बांस हैं, बबूल हैं, घास के दुकूल हैं..
वायु भी हिलोर दे, फूंक दे, झकोर दे..
कब्र पर, मजार पर, यह दिया बुझे नहीं !
यह किसी शहीद का पुण्य प्राण-दान है !!

झूम-झूम बदलियां, चूम-चूम बिजलियां..
आंधियां उठा रही, हलचलें मचा रही..
लड़ रहा स्वदेश हो, शांति का न लेश हो..
क्षुद्र जीत-हार पर, यह दिया बुझे नहीं !
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है !!
 


Swatantrata ka Deepak (Gopal Singh Nepali) - #Patriotic Motivational Poem

यह गीत स्वतंत्रता और राष्ट्र प्रेम की भावना से ओतप्रोत है। इसमें दिया को स्वाधीनता, शक्ति और भक्ति का प्रतीक बताया गया है, जो हर परिस्थिति में जलता रहना चाहिए। यह गीत देश की एकता और संघर्ष को दर्शाता है, जिसमें बताया गया है कि चाहे कोई भी बाधा आए, भारत की स्वतंत्रता की ज्योति बुझनी नहीं चाहिए। यह भजन हर देशभक्त को अपने कर्तव्य की याद दिलाता है कि हमें अपने देश की रक्षा के लिए सतत प्रयासरत रहना होगा। यह राष्ट्र की अखंडता और बलिदान को श्रद्धांजलि देने का संदेश देता है।

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