ऋणमोचक मंगल स्तोत्र एक पवित्र प्रार्थना है, जो भगवान मंगलदेव को समर्पित है। इस स्तोत्र के नियमित पाठ से कर्ज से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इसमें मंगलदेव के 21 नामों का उल्लेख है, जो विशेष रूप से प्रभावशाली माने जाते हैं।
ऋणमोचक मंगल स्तोत्र के लाभ:
- कर्ज से मुक्ति: इस स्तोत्र के पाठ से आर्थिक समस्याएं कम होती हैं और कर्ज से छुटकारा मिलता है।
- सुख-समृद्धि: जीवन में खुशहाली और समृद्धि का आगमन होता है।
- शांति: मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
पाठ करने की विधि:
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान मंगलदेव की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
- शुद्ध मन से इस स्तोत्र का पाठ करें।
नियमित रूप से 21 दिनों तक इसका पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।
मंगलदेव के 21 नाम:- धर्मराज
- कुज
- भूमि पुत्र
- ऋणहर्ता
- धनप्रदा
- स्थिरासन
- महाकाय
- सर्वकामफलप्रदा
- लोहितांग
- लोहिताक्ष
- सामगानां कृपाकर
- धरात्मज
- भूमि नंदन
- अंगारक
- यम
- सर्वरोगापहा
- वृष्टिकर्ता
- सर्वकामफलप्रदा
- महिषवाहन
- रक्तवर्ण
- रक्तांबरधर
इन नामों का स्मरण करने से भगवान मंगलदेव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
ऋण मोचन मंगल स्तोत्र के जाप से आप को कर्ज मुक्ति मिलेगी निरंतर व्यापार वृद्धि होगी रोग समस्त समाप्त होंगी और आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी स्कन्ध पुराण मे बताया गया है नमो नारायण जय श्री हरी ऋणमोचक मंगल स्तोत्र रोग, ऋण, गरीबी, असामयिक मृत्यु, भय, मुसीबतों, कठिनाई और अस्थिर मन आदि सभी कठियाईयों से मुक्ति मिलती है। यह दिव्य स्तोत्र यदि आप ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का नियमित पाठ करते है तो निश्चित ही धीरे धीरे आपका समस्त कर्ज उतरने लगेगा। ईश्वर में आस्था रखिये वो आपको अवश्य कर्ज से मुक्त करेगा साथ ही अपने कर्मों पर विशेष ध्यान दें।
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मावरोधकः॥अर्थ: हे मंगल देव! आपके शुभ नाम हैं:-
मंगल - शुभता लाने वाले।
भूमिपुत्र - पृथ्वी से जन्मे।
ऋणहर्ता - कर्ज से मुक्ति दिलाने वाले।
धनप्रद - धन देने वाले।
स्थिरासन - जो अपनी जगह पर अडिग रहते हैं।
महाकाय - विशाल शरीर वाले।
सर्वकर्मावरोधक - सभी बाधाओं को दूर करने वाले।
लोहितो लोहिताङ्गश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥अर्थ: हे मंगल देव! आपके अन्य नाम हैं:लोहित - लाल रंग वाले।
लोहितांग - लाल शरीर वाले।
सामगान कृपाकर - साम वेद गाने वालों पर कृपा करने वाले।
धरात्मज - पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न।
कुज - मंगल ग्रह का नाम।
भौम - भौम ग्रह के अधिपति।
भूतिद - ऐश्वर्य देने वाले।
भूमिनंदन - पृथ्वी को आनंद देने वाले।
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
वृष्टे कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥अर्थ: हे मंगल देव! आपके और भी नाम हैं:अंगारक - आग की तरह तेजस्वी।
यम - न्याय के देवता।
सर्वरोगापहारक - सभी रोगों को हरने वाले।
वृष्टिकर्ता - वर्षा कराने वाले।
वृष्टिहर्ता - वर्षा रोकने वाले।
सर्वकामफलप्रद - सभी इच्छाओं को पूरा करने वाले।
एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥अर्थ: जो व्यक्ति श्रद्धा से मंगल देव के इन 21 नामों का जाप करता है, उसे कभी कर्ज का सामना नहीं करना पड़ता और वह जल्दी ही धन-धान्य प्राप्त करता है।
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्ति-समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहरतं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥अर्थ: हे मंगल देव! आप पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न हैं। आपकी आभा बिजली के समान है। आप सभी शक्तियों के स्वामी हैं। मैं आपको नमन करता हूं।
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत् पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥अर्थ: मंगल देव के इस स्तोत्र का पाठ हमेशा करना चाहिए। जो भी इसे पढ़ता है, उसे कभी भी मंगल ग्रह की अशुभ दशा से कष्ट नहीं होता।
अङ्गारक! महाभान! भगवन्! भक्तवत्सल!
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥अर्थ: हे अंगारक देव! हे महाभाग्यवान! हे भक्तों पर स्नेह रखने वाले! मैं आपको प्रणाम करता हूं। कृपया मेरे सभी कर्जों को समाप्त कर दीजिए।
ऋणरोगादि-दारिद्रयं ये चाऽन्ये ह्यपमृत्यवः।
भय-क्लेश-मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥अर्थ: हे मंगल देव! मेरे सभी कर्ज, रोग, गरीबी, अकाल मृत्यु, भय, क्लेश और मन की पीड़ा को समाप्त कर दीजिए।
अतिवक्र! दुराराध्य! भोगमुक्तजितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥अर्थ: हे मंगल देव! आपको प्रसन्न करना कठिन है। जब आप खुश होते हैं, तो राजयोग का वरदान देते हैं। नाराज होने पर सुख-समृद्धि को तुरंत छीन लेते हैं।
विरिञ्च-श्क्र-विष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥अर्थ: हे मंगल देव! आप ब्रह्मा, इंद्र और विष्णु जैसे देवताओं को भी प्रभावित कर सकते हैं। आप ग्रहों के राजा और महान शक्ति वाले हैं।
पुत्रान् देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गताः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥अर्थ: हे मंगल देव! मुझे संतान और धन का आशीर्वाद दीजिए। मुझे कर्ज, गरीबी, दुख और दुश्मनों के भय से मुक्त कर दीजिए।
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥अर्थ: जो व्यक्ति इन 12 श्लोकों से मंगल देव की वंदना करता है, वह धन-धान्य और यश का स्वामी बनता है। वह सदैव युवा और धनवान रहता है।