बजरंगबली मेरी नाव चली भजन
बजरंगबली मेरी नाव चली भजन
जरा बल्ली कृपा की लगा देना।
मुझे रोग व शोक ने घेर लिया,
मेरे ताप को नाथ मिटा देना।
बजरंगबली मेरी नाव चली।
मैं दास आपका जन्म से हूँ,
बालक और शिष्य भी धर्म से हूँ,
बेशर्म, विमुख निज कर्म से हूँ,
चित से मेरा दोष भूला देना,
बजरंगबली मेरी नाँव चली।
दुर्बल हूं, गरीब हूं, दीन हूँ में,
नित कर्म-क्रिया गति क्षीण हूं मैं,
बलवीर तेरे आधीन हूं मैं,
मेरी बिगड़ी हुई को बना देना,
बजरंगबली मेरी नाँव चली।
बल देके मुझे निर्भय कर दो,
यश कीर्ति मेरी अक्षय कर दो,
मेरे जीवन को सुखमय कर दो,
संजीवन ला के पिला देना,
बजरंगबली मेरी नाँव चली।
करुणानिधि आपका नाम भी है,
शरणागत आपका दास भी है,
इसके अतिरिक्त ये काम भी है,
श्री राम से मोहे मिला देना,
बजरंगबली मेरी नाँव चली।
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Zara Balli Kripa Ki Laga Dena.
Mujhe Rog Va Shok Ne Gher Liya,
Mere Taap Ko Naath Mita Dena.
Bajrangbali Meri Naav Chali.
बजरंगबली की शरण में जाते ही मन को लगता है कि अब नाव पार लगेगी। उनकी कृपा की एक झलक ही सारे रोग और शोक को दूर कर देती है, जैसे कोई ताप हरने वाला साथी पास हो। जन्म से उनका दास, धर्म से उनका शिष्य, फिर भी कर्मों की भूलों से भटक गया मन, उनके सामने सारी गलतियों को भूलने की पुकार करता है। वो ही वो बल हैं, जो हर दोष को मिटा देते हैं। हनुमान भजन में उनकी ऐसी ही दया का जिक्र है। दुर्बल, गरीब और दीन मन जब उनके सामने झुकता है, तो उनकी ताकत हर कमजोरी को बल देती है। वो बिगड़ी बात को बनाते हैं, जैसे कोई सच्चा संरक्षक हर मुश्किल में साथ दे। उनका बल मन को निडर बनाता है, जीवन को सुख से भर देता है। उनकी संजीवनी जैसी कृपा मन को नया जीवन देती है। हनुमान चालीसा में उनकी ऐसी ही शक्ति का बखान है। करुणानिधि बजरंगबली का नाम ही शरणागत के लिए सब कुछ है। मन बस यही चाहता है कि वो श्री राम से मिला दें। उनकी भक्ति में डूबकर, जैसे मीराबाई ने श्रीकृष्णजी को पाया, वैसे ही हनुमानजी के सहारे श्री राम का रास्ता मिल जाता है।
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Author - Saroj Jangir
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