श्री सरस्वती कवचम भजन

श्री सरस्वती कवचम भजन

 
श्री सरस्वती कवचम लिरिक्स Saraswati Kavacham Lyrics Saraswati Mata Bhajan Lyrics

श्रृणु वत्स प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वकामदम्,
श्रुतिसारं श्रुतिसुखं श्रुत्युक्तं श्रुतिपूजितम्.
उक्तं कृष्णेन गोलोके मह्यं वृन्दावने वमे,
रासेश्वरेण विभुना रासै वै रासमण्डले.
अतीव गोपनीयं च कल्पवृक्षसमं परम्,
अश्रुताद्भुतमन्त्राणां समूहैश्च समन्वितम्.
यद धृत्वा भगवाञ्छुक्रः सर्वदैत्येषु पूजितः,
यद धृत्वा पठनाद ब्रह्मन बुद्धिमांश्च बृहस्पति.
पठणाद्धारणाद्वाग्मी कवीन्द्रो वाल्मिको मुनिः,
स्वायम्भुवो मनुश्चैव यद धृत्वा सर्वपूजितः.
कणादो गौतमः कण्वः पाणिनीः शाकटायनः,
ग्रन्थं चकार यद धृत्वा दक्षः कात्यायनः स्वयम्.
धृत्वा वेदविभागं च पुराणान्यखिलानि च,
चकार लीलामात्रेण कृष्णद्वैपायनः स्वयम्.
शातातपश्च संवर्तो वसिष्ठश्च पराशरः,
यद धृत्वा पठनाद ग्रन्थं याज्ञवल्क्यश्चकार सः.
ऋष्यश्रृंगो भरद्वाजश्चास्तीको देवलस्तथा,
जैगीषव्योऽथ जाबालिर्यद धृत्वा सर्वपूजिताः.
कचवस्यास्य विप्रेन्द्र ऋषिरेष प्रजापतिः,
स्वयं च बृहतीच्छन्दो देवता शारदाम्बिका...
सर्वतत्त्वपरिज्ञाने सर्वार्थसाधनेषु च,
कवितासु च सर्वासु विनियोगः प्रकीर्तितः.
श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा शिरो मे पातु सर्वतः,
श्रीं वाग्देवतायै स्वाहा भालं मे सर्वदावतु.
ॐ सरस्वत्यै स्वाहेति श्रोत्रे पातु निरन्तरम्,
ॐ श्रीं ह्रीं भारत्यै स्वाहा नेत्रयुग्मं सदावतु.
ऐं ह्रीं वाग्वादिन्यै स्वाहा नासां मे सर्वतोऽवतु,
ॐ ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा ओष्ठं सदावतु.
ॐ श्रीं ह्रीं ब्राह्मयै स्वाहेति दन्तपङ्क्तीः सदावतु,
ऐमित्येकाक्षरो मन्त्रो मम कण्ठं सदावतु.
ॐ श्रीं ह्रीं पातु मे ग्रीवां स्कन्धौ मे श्रीं सदावतु,
ॐ श्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा वक्षः सदावतु.
ॐ ह्रीं विद्यास्वरुपायै स्वाहा मे पातु नाभिकाम्,
ॐ ह्रीं ह्रीं वाण्यै स्वाहेति मम हस्तौ सदावतु.
ॐ सर्ववर्णात्मिकायै पादयुग्मं सदावतु,
ॐ वागधिष्ठातृदेव्यै सर्व सदावतु.
ॐ सर्वकण्ठवासिन्यै स्वाहा प्राच्यां सदावतु,
ॐ ह्रीं जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहाग्निदिशि रक्षतु.
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा,
सततं मन्त्रराजोऽयं दक्षिणे मां सदावतु.
ऐं ह्रीं श्रीं त्र्यक्षरो मन्त्रो नैरृत्यां मे सदावतु,
कविजिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहा मां वारुणेऽवतु.
ॐ सर्वाम्बिकायै स्वाहा वायव्ये मां सदावतु,
ॐ ऐं श्रीं गद्यपद्यवासिन्यै स्वाहा मामुत्तरेऽवतु.
ऐं सर्वशास्त्रवासिन्यै स्वाहैशान्यां सदावतु,
ॐ ह्रीं सर्वपूजितायै स्वाहा चोर्ध्वं सदावतु.
ऐं ह्रीं पुस्तकवासिन्यै स्वाहाधो मां सदावतु,
ॐ ग्रन्थबीजरुपायै स्वाहा मां सर्वतोऽवतु.
इति ते कथितं विप्र ब्रह्ममन्त्रौघविग्रहम्,
इदं विश्वजयं नाम कवचं ब्रह्मरुपकम्.
पुरा श्रुतं धर्मवक्त्रात पर्वते गन्धमादने,
तव स्नेहान्मयाऽख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित्.
गुरुमभ्यर्च्य विधिवद वस्त्रालंकारचन्दनैः,
प्रणम्य दण्डवद भूमौ कवचं धारयेत सुधीः.
पञ्चलक्षजपैनैव सिद्धं तु कवचं भवेत्,
यदि स्यात सिद्धकवचो बृहस्पतिसमो भवेत्.
महावाग्मी कवीन्द्रश्च त्रैलोक्यविजयी भवेत्, 


Friday Special | ज्ञान की देवी को करें खुश | श्री सरस्वतीकवचम् | Suresh Wadkar | Sahitya Tak

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यह सरस्वती कवच मन को ज्ञान और बुद्धि का प्रकाश देता है। इसे धारण करने से मन में एक अजीब सी शांति और आत्मविश्वास जागता है, जैसे माँ सरस्वती स्वयं हर पल साथ हों। हर मंत्र, हर शब्द में उनकी कृपा बरसती है। शिर से लेकर पांव तक, हर दिशा में उनकी शक्ति रक्षा करती है। जैसे मीराबाई ने श्रीकृष्णजी की भक्ति में सब कुछ पाया, वैसे ही इस कवच को जपने से मन विद्या और कविता के सागर में डूब जाता है। सरस्वती भजन में उनकी ऐसी ही महिमा का वर्णन है। चाहे वाणी हो, बुद्धि हो, या शास्त्रों का ज्ञान, माँ सरस्वती की कृपा से सब कुछ सुलभ हो जाता है। यह कवच न सिर्फ मन को बल देता है, बल्कि जीवन को सार्थक बनाता है। जैसे वाल्मीकि और वेदव्यास ने उनके आशीर्वाद से अमर रचनाएँ दीं, वैसे ही यह कवच हर कार्य में सफलता का रास्ता खोलता है।
चिंतन करने पर लगता है कि माँ की शरण में ही सच्चा ज्ञान और शांति है। धर्म की राह सिखाती है कि उनकी भक्ति से मन हर भय से मुक्त हो जाता है। संत की तरह जीने का मतलब है उनके मंत्रों में रमकर हर पल को सृजनात्मक बनाना। सरस्वती पूजा में उनकी इस कृपा की झलक मिलती है। 
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