गणपति स्तोत्र षोडश गणपति स्तवम् लिरिक्स Ganpati Stort (Shodash Ganpati Stavam) Lyrics
षोडश गणपति स्तवम्, (Shodhash Ganpati Stavam) गणपति स्त्रोत (Ganpati Strot) के जाप से समस्त दुःख और संताप दूर होते हैं और भगवान श्री गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है। संकटनाशनगणेशस्तोत्रम् को ही षोडस गणपति स्तवम / गणपति स्त्रोत के नाम से जाना जाता है।
श्री गणेश स्त्रोत (Shri Ganesh Strot ) में अनुष्टुप् छन्द पर आधारित ८ श्लोक हैं जिनके माध्यम से श्री गणेश जी की महिमा का वर्णन करते हुए उनके बारह मानों का माहात्म्य बताया गया है। श्री गणेश स्त्रोत का उल्लेख नारद पुराण में भी किया गया है।
श्री गणेश स्त्रोत (Shri Ganesh Strot ) में अनुष्टुप् छन्द पर आधारित ८ श्लोक हैं जिनके माध्यम से श्री गणेश जी की महिमा का वर्णन करते हुए उनके बारह मानों का माहात्म्य बताया गया है। श्री गणेश स्त्रोत का उल्लेख नारद पुराण में भी किया गया है।
गणेश स्त्रोत के लाभ : गणेश स्त्रोत के जाप करने मात्र से ही श्री गणेश जी कृपा प्राप्त होती है और वे धन, विद्या, सफलता को प्राप्त होते हैं तथा साथ ही समस्त विघ्न दूर होते हैं । जीवन के सभी संताप को दूर करने की अद्भुद क्षमता रखता है श्री गणेश स्त्रोत। आप भी इसका अभ्यास करके इसका पाठ अवश्य करें।
गणेश स्त्रोत / गणपति स्तोत्र षोडश हिंदी मीनिंग (Ganesh Strot Hindi Meaning)
॥ षोडशगणपतिस्तवम् ॥
प्रथमं बालविघ्नेशं द्वितीयं तरुणं तथा ।
तृतीयं भक्तविघ्नेशं चतुर्थं वीरविघ्नकम् ॥
पञ्चमं शक्तिविघ्नेशं षष्ठं ध्वजगणाधिपम् ।
सप्तमं पिङ्गलं देवं तथा चोच्छिष्टनायकम् ॥
नवमं विघ्नराजेन्द्रं दशमं क्षिप्रदायकम् ।
एकादशं तु हेरम्बं द्वादशं लक्ष्मिनायकम् ॥
त्रयोदशं महासंज्ञं भुवनेशं चतुर्दशम् ।
नृत्ताख्यं पञ्चदशं षोडशोर्ध्वगणाधिपम् ॥
स्तोत्रं तु विघ्नराजस्य कथ्यते षोडशात्मकम् ।
धर्मार्थकाममोक्षार्थं नराणां येन विद्यते ॥
॥ इति षोडशगणपतिस्तवम् सम्पूर्णम् ॥
प्रथमं बालविघ्नेशं द्वितीयं तरुणं तथा ।
तृतीयं भक्तविघ्नेशं चतुर्थं वीरविघ्नकम् ॥
पञ्चमं शक्तिविघ्नेशं षष्ठं ध्वजगणाधिपम् ।
सप्तमं पिङ्गलं देवं तथा चोच्छिष्टनायकम् ॥
नवमं विघ्नराजेन्द्रं दशमं क्षिप्रदायकम् ।
एकादशं तु हेरम्बं द्वादशं लक्ष्मिनायकम् ॥
त्रयोदशं महासंज्ञं भुवनेशं चतुर्दशम् ।
नृत्ताख्यं पञ्चदशं षोडशोर्ध्वगणाधिपम् ॥
स्तोत्रं तु विघ्नराजस्य कथ्यते षोडशात्मकम् ।
धर्मार्थकाममोक्षार्थं नराणां येन विद्यते ॥
॥ इति षोडशगणपतिस्तवम् सम्पूर्णम् ॥
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