सम्पूर्ण नारायण स्तोत्र लिरिक्स Sampurn Narayan Strot Narayana Strotam स्तोत्र संग्रह
भगवान विष्णु को हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवता माना जाता है। वे त्रिदेवों में से एक हैं, और उन्हें सृष्टि के पालनहार के रूप में जाना जाता है। विष्णु जी के कई नाम हैं, जिनमें से "नारायण" सबसे प्रसिद्ध है। यह नाम संस्कृत शब्द "नार" से आया है, जिसका अर्थ है "जल"। विष्णु जी को अक्सर सागर में विश्राम करते हुए शेषनाग के ऊपर लेटे हुए चित्रित किया जाता है। इसलिए, उन्हें "नारायण" कहा जाता है, जिसका अर्थ है "जल में रहने वाला"।
नारायण नारायण जय गोविंद हरे ॥
नारायण नारायण जय गोपाल हरे ॥
करुणापारावारा वरुणालयगम्भीरा ॥
घननीरदसंकाशा कृतकलिकल्मषनाशा ॥
यमुनातीरविहारा धृतकौस्तुभमणिहारा ॥
पीताम्बरपरिधाना सुरकल्याणनिधाना ॥
मंजुलगुंजाभूषा मायामानुषवेषा ॥
राधाऽधरमधुरसिका रजनीकरकुलतिलका ॥
मुरलीगानविनोदा वेदस्तुतभूपादा ॥
बर्हिनिवर्हापीडा नटनाटकफणिक्रीडा ॥
वारिजभूषाभरणा राजिवरुक्मिणिरमणा ॥
जलरुहदलनिभनेत्रा जगदारम्भकसूत्रा ॥
पातकरजनीसंहर करुणालय मामुद्धर ॥
अधबकक्षयकंसारे केशव कृष्ण मुरारे ॥
हाटकनिभपीताम्बर अभयं कुरु मे मावर ॥
दशरथराजकुमारा दानवमदस्रंहारा ॥
गोवर्धनगिरिरमणा गोपीमानसहरणा ॥
शरयूतीरविहारासज्जनऋषिमन्दारा ॥
विश्वामित्रमखत्रा विविधपरासुचरित्रा ॥
ध्वजवज्रांकुशपादा धरणीसुतस्रहमोदा ॥
जनकसुताप्रतिपाला जय जय संसृतिलीला ॥
दशरथवाग्घृतिभारा दण्डकवनसंचारा ॥
मुष्टिकचाणूरसंहारा मुनिमानसविहारा ॥
वालिविनिग्रहशौर्या वरसुग्रीवहितार्या ॥
मां मुरलीकर धीवर पालय पालय श्रीधर ॥
जलनिधिबन्धनधीरा रावणकण्ठविदारा ॥
ताटीमददलनाढ्या नटगुणविविधधनाढ्या ॥
गौतमपत्नीपूजन करुणाघनावलोकन ॥
स्रम्भ्रमसीताहारा साकेतपुरविहारा ॥
अचलोद्घृतिञ्चत्कर भक्तानुग्रहतत्पर ॥
नैगमगानविनोदा रक्षःसुतप्रह्लादा ॥
भारतियतिवरशंकर नामामृतमखिलान्तर ॥
। इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं नारायणस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
नारायण नारायण जय गोपाल हरे ॥
करुणापारावारा वरुणालयगम्भीरा ॥
घननीरदसंकाशा कृतकलिकल्मषनाशा ॥
यमुनातीरविहारा धृतकौस्तुभमणिहारा ॥
पीताम्बरपरिधाना सुरकल्याणनिधाना ॥
मंजुलगुंजाभूषा मायामानुषवेषा ॥
राधाऽधरमधुरसिका रजनीकरकुलतिलका ॥
मुरलीगानविनोदा वेदस्तुतभूपादा ॥
बर्हिनिवर्हापीडा नटनाटकफणिक्रीडा ॥
वारिजभूषाभरणा राजिवरुक्मिणिरमणा ॥
जलरुहदलनिभनेत्रा जगदारम्भकसूत्रा ॥
पातकरजनीसंहर करुणालय मामुद्धर ॥
अधबकक्षयकंसारे केशव कृष्ण मुरारे ॥
हाटकनिभपीताम्बर अभयं कुरु मे मावर ॥
दशरथराजकुमारा दानवमदस्रंहारा ॥
गोवर्धनगिरिरमणा गोपीमानसहरणा ॥
शरयूतीरविहारासज्जनऋषिमन्दारा ॥
विश्वामित्रमखत्रा विविधपरासुचरित्रा ॥
ध्वजवज्रांकुशपादा धरणीसुतस्रहमोदा ॥
जनकसुताप्रतिपाला जय जय संसृतिलीला ॥
दशरथवाग्घृतिभारा दण्डकवनसंचारा ॥
मुष्टिकचाणूरसंहारा मुनिमानसविहारा ॥
वालिविनिग्रहशौर्या वरसुग्रीवहितार्या ॥
मां मुरलीकर धीवर पालय पालय श्रीधर ॥
जलनिधिबन्धनधीरा रावणकण्ठविदारा ॥
ताटीमददलनाढ्या नटगुणविविधधनाढ्या ॥
गौतमपत्नीपूजन करुणाघनावलोकन ॥
स्रम्भ्रमसीताहारा साकेतपुरविहारा ॥
अचलोद्घृतिञ्चत्कर भक्तानुग्रहतत्पर ॥
नैगमगानविनोदा रक्षःसुतप्रह्लादा ॥
भारतियतिवरशंकर नामामृतमखिलान्तर ॥
। इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं नारायणस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
भगवान विष्णु हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे त्रिदेवों में से एक हैं, और उन्हें सृष्टि के पालनहार के रूप में जाना जाता है। विष्णु जी को अक्सर चार हाथों वाला और नीले रंग का चित्रित किया जाता है। उनके चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल होता है। विष्णु जी को अक्सर शेषनाग के ऊपर लेटे हुए चित्रित किया जाता है, जो एक विशाल सांप है। यह उनका विश्राम का रूप है, और यह दर्शाता है कि वे सृष्टि के रखरखाव के लिए जिम्मेदार हैं।
विष्णु जी के कई अवतार हैं, जो उनके द्वारा पृथ्वी को बुराई से बचाने के लिए लिए गए विभिन्न रूप हैं। उनके कुछ सबसे प्रसिद्ध अवतारों में राम, कृष्ण, और बुद्ध शामिल हैं। विष्णु जी को हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण देवता माना जाता है। उन्हें अक्सर न्याय, करुणा और दया के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
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नारायण स्त्रोत के बारे में : नारायण स्त्रोत भगवान् श्री विष्णु जी का सबसे प्रिय पाठ है। इसके नियमित जाप से भगवान् श्री विष्णु जी को प्रसन्न किया जा सकता है। किसी भी प्रकार के अभीष्ट की सिद्धि के लिए श्री नारायण स्त्रोतम का पाठ बहुत लाभदायक हैं। श्री लक्ष्मी जी की कृपा भी तभी आती है जब श्री विष्णु जी प्रसन्न हों। इस स्त्रोत के नियमित जाप से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
श्री नारायण स्तोत्रम् विष्णु भगवान के महिमा और महत्व का प्रतिष्ठान करने वाला एक प्रमुख स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु की महत्वता, शक्ति, और आदि के बारे में बताता है, और भक्तों को उनकी भक्ति में लागू होने के लिए प्रेरित करता है। यह स्तोत्र भक्तिभाव से भगवान विष्णु की प्रार्थना और स्तुति करने का एक उत्कृष्ट उपाय माना जाता है। इसे नियमित रूप से पाठ करने से भक्त को आनंद, शांति, और ध्यान की प्राप्ति होती है। यह एक प्रचलित प्रार्थना है जो हिन्दू भक्त अक्सर करते हैं।
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