आज छमाछम नाचूँगा मैं बाँध के घुंघरू पाँव में

आज छमाछम नाचूँगा मैं बाँध के घुंघरू पाँव में

आज छमाछम नाचूँगा मैं, बाँध के घुंघरू पाँव में,
बिठा लिया बाबा ने मुझको अपने कर्म की छाँव में।
पोंछ गई फरियाद मेरी, कब जाने शिरडी गाँव में,
बिठा लिया बाबा ने मुझको अपने कर्म की छाँव में।।

अधूरी रही न कोई आरज़ू, हुई आज पूरी मेरी जुस्तजू,
तसल्ली है दिल को, नज़र को सुकून, मेरी साँस है अब मेरे रूबरू।
मिल गई दुआ मेरे साईं की, याद मेरी दुआओं में,
बिठा लिया बाबा ने मुझको अपने कर्म की छाँव में।।

नज़राना दूँ या दिल का जाँ वार दूँ,
करूँ क्या नज़र, आँधियाँ वार दूँ।
ज़मीन वार दूँ या आसमाँ वार दूँ,
मैं साईं पे सारा जहाँ वार दूँ।
ना देखी औक़ात जात मेरी, रख लिया अपनी पनाहों में,
बिठा लिया बाबा ने मुझको अपने कर्म की छाँव में।।

मुक़द्दर का सनी सिकंदर हुआ,
जो सजदे में साईं के ये सिर हुआ।
ठिकाना मेरा साईं का दर हुआ,
मेरा द्वारकामाई में घर हुआ।
वचन सुनूँ साईं बाबा के मैं शिरडी की हवाओं में,
बिठा लिया बाबा ने मुझको अपने कर्म की छाँव में।।


Aaj Chama Cham Nachunga ! झूमने पर मजबूर कर देगा साईनाथ का यह भजन ! Sunny Sharma #SaiSong

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About Bhajan -

Aaj Chama Cham Nachunga ! झूमने पर मजबूर कर देगा साईनाथ का यह भजन ! Sunny Sharma SaiSong
Song - Aaj Chama Cham Nachunga
Singer :- Sunny Sharma 09871676643
Lyrics :- Ravi Chopra, Dinesh Vyakul
Music :- Bijendra Chauhan
 
साईं बाबा की कृपा और उनके प्रेम का भाव भक्त के हृदय को एक ऐसी मस्ती और आनंद से भर देता है, जो उसे घुंघरू बांधकर उनके नाम में नाचने और गाने की प्रेरणा देता है। यह भाव उस गहसास को दर्शाता है कि साईं की करुणा ने भक्त को अपनी कर्म की छांव में बिठाकर उसकी हर फरियाद को सुन लिया और हर अधूरी आरजू को पूरा कर दिया। शिर्डी के पवित्र गांव में साईं की दया से भक्त का मन तस्सली और सुकून से भर जाता है, और उसकी सारी दुआएं उनकी शरण में पूरी होकर सामने आती हैं। 

साईं के प्रति भक्त का पूर्ण समर्पण और उनकी महिमा में डूबने की भावना उसे सारे सांसारिक बंधनों से मुक्त कर देती है। यह भाव उस अटल विश्वास को व्यक्त करता है कि साईसाईं के दर पर भक्त अपना दिल, जान, जमीन और आसमान तक न्योछावर करने को तैयार है, क्योंकि उनकी कृपा ने उसे बिना उसकी औकात या जात देखे अपनी पनाह दी। साईं का दर भक्त का असली ठिकाना बन जाता है, और शिर्डी की हवाओं में उनके वचनों को सुनकर वह द्वारकामाई को अपना घर मानता है। 

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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