कभी माँ के द्वारे पे आकर तो देखो भजन
कभी माँ के द्वारे पे आकर तो देखो भजन
ग़म-ए-ज़िंदगी, फूल बनकर खिलेगी,
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।
तेरे दर्द-ओ-ग़म सारे,
पल में मिटेंगे,
कभी दर्द-ए-ग़म तुम,
सुनाकर तो देखो।।
(अंतरा 1)
बिगड़ा मुक़द्दर बनाती है मैया,
रोते हुए को हँसाती है मैया।
मेरी माँ के दर पे, सब कुछ मिलेगा,
कभी अपनी झोली फैलाकर तो देखो।
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।
ग़म-ए-ज़िंदगी, फूल बनकर खिलेगी,
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।।
(अंतरा 2)
बिछड़े हुओं को मिलाती है मैया,
डूबे हुओं को बचाती है मैया।
नहीं इसके जैसा, दयालु जहाँ में,
कभी सच्चे दिल से बुलाकर तो देखो।
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।
ग़म-ए-ज़िंदगी, फूल बनकर खिलेगी,
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।।
(अंतिम पुनरावृत्ति)
ग़म-ए-ज़िंदगी, फूल बनकर खिलेगी,
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।
तेरे दर्द-ओ-ग़म सारे,
पल में मिटेंगे,
कभी दर्द-ए-ग़म तुम,
सुनाकर तो देखो।।
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।
तेरे दर्द-ओ-ग़म सारे,
पल में मिटेंगे,
कभी दर्द-ए-ग़म तुम,
सुनाकर तो देखो।।
(अंतरा 1)
बिगड़ा मुक़द्दर बनाती है मैया,
रोते हुए को हँसाती है मैया।
मेरी माँ के दर पे, सब कुछ मिलेगा,
कभी अपनी झोली फैलाकर तो देखो।
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।
ग़म-ए-ज़िंदगी, फूल बनकर खिलेगी,
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।।
(अंतरा 2)
बिछड़े हुओं को मिलाती है मैया,
डूबे हुओं को बचाती है मैया।
नहीं इसके जैसा, दयालु जहाँ में,
कभी सच्चे दिल से बुलाकर तो देखो।
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।
ग़म-ए-ज़िंदगी, फूल बनकर खिलेगी,
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।।
(अंतिम पुनरावृत्ति)
ग़म-ए-ज़िंदगी, फूल बनकर खिलेगी,
कभी माँ के द्वारे पर,
आकर तो देखो।
तेरे दर्द-ओ-ग़म सारे,
पल में मिटेंगे,
कभी दर्द-ए-ग़म तुम,
सुनाकर तो देखो।।
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