आरती श्री जनक दुलारी की Aarti Shri Janak Dulaari Ki Sita Mata Aarti Meaning
वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में माता सीता का प्राकट्य हुआ था. इस तिथि को सीता नवमी या जानकी नवमी भी कहा जाता है. हिंदू धर्म में सीता नवमी का उतना ही महत्व है जितना कि राम नवमी का. सीता नवमी के दिन माता सीता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि आज के दिन माता सीता की पूजा करने से जीवन की सभी कठिनाईयां दूर होती हैं. सीता नवमी (Sita Navami) और जानकी नवमी के नाम से भी जाना जाता है। श्री सीतायै नमः, श्री सीता-रामाय नमः
आरती श्री जनक दुलारी की,
सीता जी रघुवर प्यारी की।
आरती श्री जनक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
जगत जननी जग की विस्तारिणी,
नित्य सत्य साकेत विहारिणी,
आरती श्री ज़नक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
परम दयामई तीनों धारिणी,
सीता मैया भक्तनं हितकारी की।
आरती श्री ज़नक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
सती शिरोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा हित वन वन चारिणी,
आरती श्री जनक दुलारी की,
सीता जी रघुवर प्यारी की।
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की,
आरती श्री ज़नक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पावन मति आई,
आरती श्री ज़नक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
सुमीरत कटत कष्ट दुखदाई,
शरणागत जन भय हारी की,
आरती श्री ज़नक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
आरती श्री जनक दुलारी की,
श्री शिरोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा वित्र वन वन चारिणी,
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की,
आरती श्री जनक दुलारी की,
विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पावन मति आई,
सुमिरत काटत कष्ट दुःख दाई ,
शरणागत जन भय हरी की ,
आरती श्री जनक दुलारी की ||
सीता जी रघुवर प्यारी की।
आरती श्री जनक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
जगत जननी जग की विस्तारिणी,
नित्य सत्य साकेत विहारिणी,
आरती श्री ज़नक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
परम दयामई तीनों धारिणी,
सीता मैया भक्तनं हितकारी की।
आरती श्री ज़नक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
सती शिरोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा हित वन वन चारिणी,
आरती श्री जनक दुलारी की,
सीता जी रघुवर प्यारी की।
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की,
आरती श्री ज़नक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पावन मति आई,
आरती श्री ज़नक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
सुमीरत कटत कष्ट दुखदाई,
शरणागत जन भय हारी की,
आरती श्री ज़नक दुलारी की,
सीताजी रघुवर प्यारी की।
आरती श्री जनक दुलारी की,
श्री शिरोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा वित्र वन वन चारिणी,
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की,
आरती श्री जनक दुलारी की,
विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पावन मति आई,
सुमिरत काटत कष्ट दुःख दाई ,
शरणागत जन भय हरी की ,
आरती श्री जनक दुलारी की ||
माता सीता जी की आरती मीनिंग हिंदी (आरती श्री जनक दुलारी की लिरिक्स मीनिंग
आरती श्री जनक दुलारी की : आरती श्री जनक (राजा जनक की पुत्री हैं माता सीता) दुलारी की। हम सभी मिलकर जनक दुलारी की आरती करते हैं।
सीता जी रघुवर प्यारी की : सीता जी जो रघुकुल के श्री राम की प्यारी हैं, उनकी आरती करते हैं।
जगत जननी जग की विस्तारिणी : माता सीता समस्त जगत की जननी हैं और जग की विस्तारिणी हैं जग विस्तारिणी से आशय है की माता सीता ही जगत का विस्तार करती हैं।
नित्य सत्य साकेत विहारिणी : रोज ही, प्रतिदिन साकेत नगरी में विचरण करती हैं, विहार करती हैं, सैर करती हैं। साकेत से आशय अयोध्या नगरी से हैं जो भगवान् रामचन्द्र का लोक है।
परम दयामई तीनों धारिणी : माता सीता परम दया करने वाली हैं और तीनों लोकों का आधार हैं, धारण करने वाली हैं।
सीता मैया भक्तनं हितकारी की : माता सीता अपने भक्तों की हितकारी हैं, भक्तों पर दया भाव रखती हैं।
सती शिरोमणि पति हित कारिणी : माता सीता भगवान श्री राम के द्वारा कहने पर अग्नि परीक्षा देती हैं और वे अपने पति के हितों का ध्यान रखने वाली हैं।
पति सेवा हित वन वन चारिणी : भगवान श्री राम जो माता सीता के पति हैं के लिए, उनकी सेवा हित को ध्यान में रखते हुए माता सीता उनके साथ में वन वन को गमन करती हैं। चारिणी-फिरने वाली।
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी : पति के हित को ध्यान में रखते हुए वे पति वियोग को स्वीकार करती हैं।
त्याग धर्म मूर्ति धरी की : माता सीता त्याग को अपनाने वाली हैं।
विमल कीर्ति सब लोकन छाई : माता सीता की विमल हैं, निर्मल हैं, शुद्ध हैं और इसी कारण से उनकी कीर्ति सभी लोकों में छाई हुई है।
नाम लेत पावन मति आई :माता सीता का नाम ही इतना पवित्र है की इसे लेने से पावन बुद्धि का संचार होता है।
सुमीरत कटत कष्ट दुखदाई : माता सीता के सुमिरण से समस्त दुःख कटते हैं।
शरणागत जन भय हारी की : माता सीता की शरण में जो भी जाता है, माता सीता उनके सभी भय और दुखों को हर लेती हैं।
सीता जी रघुवर प्यारी की : सीता जी जो रघुकुल के श्री राम की प्यारी हैं, उनकी आरती करते हैं।
जगत जननी जग की विस्तारिणी : माता सीता समस्त जगत की जननी हैं और जग की विस्तारिणी हैं जग विस्तारिणी से आशय है की माता सीता ही जगत का विस्तार करती हैं।
नित्य सत्य साकेत विहारिणी : रोज ही, प्रतिदिन साकेत नगरी में विचरण करती हैं, विहार करती हैं, सैर करती हैं। साकेत से आशय अयोध्या नगरी से हैं जो भगवान् रामचन्द्र का लोक है।
परम दयामई तीनों धारिणी : माता सीता परम दया करने वाली हैं और तीनों लोकों का आधार हैं, धारण करने वाली हैं।
सीता मैया भक्तनं हितकारी की : माता सीता अपने भक्तों की हितकारी हैं, भक्तों पर दया भाव रखती हैं।
सती शिरोमणि पति हित कारिणी : माता सीता भगवान श्री राम के द्वारा कहने पर अग्नि परीक्षा देती हैं और वे अपने पति के हितों का ध्यान रखने वाली हैं।
पति सेवा हित वन वन चारिणी : भगवान श्री राम जो माता सीता के पति हैं के लिए, उनकी सेवा हित को ध्यान में रखते हुए माता सीता उनके साथ में वन वन को गमन करती हैं। चारिणी-फिरने वाली।
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी : पति के हित को ध्यान में रखते हुए वे पति वियोग को स्वीकार करती हैं।
त्याग धर्म मूर्ति धरी की : माता सीता त्याग को अपनाने वाली हैं।
विमल कीर्ति सब लोकन छाई : माता सीता की विमल हैं, निर्मल हैं, शुद्ध हैं और इसी कारण से उनकी कीर्ति सभी लोकों में छाई हुई है।
नाम लेत पावन मति आई :माता सीता का नाम ही इतना पवित्र है की इसे लेने से पावन बुद्धि का संचार होता है।
सुमीरत कटत कष्ट दुखदाई : माता सीता के सुमिरण से समस्त दुःख कटते हैं।
शरणागत जन भय हारी की : माता सीता की शरण में जो भी जाता है, माता सीता उनके सभी भय और दुखों को हर लेती हैं।
सीता नवमी स्पेशल - सीता माता की पवित्र आरती
Sita Ji Raghuvar Pyaari Ki.
Aarati Shri Janak Dulaari Ki,
Sitaaji Raghuvar Pyaari Ki.
Jagat Janani Jag Ki Vistaarini,
Nity Saty Saaket Vihaarini,
Aarati Shri Zanak Dulaari Ki,
Sitaaji Raghuvar Pyaari Ki.
Param Dayaami Tinon Dhaarini,
Sita Maiya Bhaktanan Hitakaari Ki.
Aarati Shri Zanak Dulaari Ki,
Sitaaji Raghuvar Pyaari Ki.
Sati Shiromani Pati Hit Kaarini,
Pati Seva Hit Van Van Chaarini,
Aarati Shri Janak Dulaari Ki,
Sita Ji Raghuvar Pyaari Ki.
Pati Hit Pati Viyog Svikaarini,
Tyaag Dharm Murti Dhari Ki,
Aarati Shri Zanak Dulaari Ki,
Sitaaji Raghuvar Pyaari Ki.
Vimal Kirti Sab Lokan Chhai,
Naam Let Paavan Mati Aai,
Aarati Shri Zanak Dulaari Ki,
Sitaaji Raghuvar Pyaari Ki.
Sumirat Katat Kasht Dukhadai,
Sharanaagat Jan Bhay Haari Ki,
Aarati Shri Zanak Dulaari Ki,
Sitaaji Raghuvar Pyaari Ki.
Aarati Shri Janak Dulaari Ki,
Shri Shiromani Pati Hit Kaarini,
Pati Seva Vitr Van Van Chaarini,
Pati Hit Pati Viyog Svikaarini,
Tyaag Dharm Murti Dhari Ki,
Aarati Shri Janak Dulaari Ki,
Vimal Kirti Sab Lokan Chhai,
Naam Let Paavan Mati Aai,
Sumirat Kaatat Kasht Duhkh Dai ,
Sharanaagat Jan Bhay Hari Ki ,
Aarati Shri Janak Dulaari Ki ||
आरती : धूप-दीप से पूजा करने की विधि को आरती कहा जाता है।
जनक : माता सीता के पिता। पैदा करने वाला, बिजली आदि को उत्पन्न/पैदा करने वाला जनक कहलाता है।
दुलारी : प्रिय, प्यारी, चहेती, लाड़ली।
रघुवर : राजा दशरथ के पुत्र जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं।
जगत जननी : जगत को उतपन्न करने वाली।
जग की विस्तारिणी : जग को विस्तार देने वाली।
नित्य सत्य : नित्य ही, रोज ही।
साकेत विहारिणी : साकेत नगरी में विचरण करने वाली। उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के किनारे स्थित एक हिन्दू तीर्थ स्थान
परम दयामई : उच्चतम, परम, उच्चतर, से उच्च, से ऊंचा, सब से ऊंचा।
जनक : माता सीता के पिता। पैदा करने वाला, बिजली आदि को उत्पन्न/पैदा करने वाला जनक कहलाता है।
दुलारी : प्रिय, प्यारी, चहेती, लाड़ली।
रघुवर : राजा दशरथ के पुत्र जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं।
जगत जननी : जगत को उतपन्न करने वाली।
जग की विस्तारिणी : जग को विस्तार देने वाली।
नित्य सत्य : नित्य ही, रोज ही।
साकेत विहारिणी : साकेत नगरी में विचरण करने वाली। उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के किनारे स्थित एक हिन्दू तीर्थ स्थान
परम दयामई : उच्चतम, परम, उच्चतर, से उच्च, से ऊंचा, सब से ऊंचा।
हितकारी : लाभदाई, हितों का ध्यान रखने वाली।
सती शिरोमणि : सतियों में श्रेष्ठ।
पति हित कारिणी : अपने पति के हितों के लिए लाभदाई।
हित : भलाई, उपकार, कल्याण, मंगल।
वन वन चारिण : एक ही पुरुष के साथ अटूट संबंध रखने वाली स्त्री; एकनिष्ठा, पतिव्रता स्त्री ।
वियोग : पार्थक्य, विच्छेद।
विमल कीर्ति : शुभ यश।
सती शिरोमणि : सतियों में श्रेष्ठ।
पति हित कारिणी : अपने पति के हितों के लिए लाभदाई।
हित : भलाई, उपकार, कल्याण, मंगल।
वन वन चारिण : एक ही पुरुष के साथ अटूट संबंध रखने वाली स्त्री; एकनिष्ठा, पतिव्रता स्त्री ।
वियोग : पार्थक्य, विच्छेद।
विमल कीर्ति : शुभ यश।
Author - Saroj Jangir
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