
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
छटा तेरी तीन लोक से न्यारी हे,
गोवर्धन महाराज,
मानसी मानसी गंगा को स्नानं करो ,
फिर चकलेश्वर को ध्यान,
दान घाटी में दही को दान ,
करो परिक्रमा तैयारी रै,
गोवर्धन महाराज।
कंस को मन मर्दन कीनो,
डूबत गज बचाई लीनो,
प्रकट प्रकट है के दरशन दीनो,
नटराज की महिमा न्यारी रै,
गोवर्धन महाराज।
सन्त जन पड़े रहे चहुँ और ,
देख के ध्यान धरे नित घोर ,
शिखर के ऊपर नाचे मोर ,
कर रहे हैं बृज की सब रखवारी रै,
गोवर्धन महाराज।
धन्य जो बात करें गिरिराज,
सिद्ध हो उनके बिगरे काज ,
लाज भक्तन की रखे गिरिराज,
श्याम तेरे चरनन की बलिहारी रै,
गोवर्धन महाराज।
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Author - Saroj Jangir
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