कबीर रेख स्यंदूर की काजल दिया न जाइ मीनिंग
कबीर रेख स्यंदूर की, काजल दिया न जाइ।
नैनूं रमइया रमि रह्या, दूजा कहाँ समाइ॥
Kabir Rekh Syandoor Ki, Kajal Diya Na Jaai,
Nainu Ramaiya Rami Rahya, Dooja Kaha Samaai.रेख-रेखा, लकीर.
स्यंदूर की- सिन्दूर की,
काजल दिया न जाइ-काजल नहीं लगाया जाता, जहाँ पर सिन्दूर लगा हो वहां पर काजल नहीं लगाया जाता है.
नैनूं- नैनों में, रमइया-इश्वर, रमि रह्या-रम गया है, बस गया है, दूजा कहाँ समाइ : दूसरा इसमें (नैनों में) कहा समाएगा.
जीवात्मा का संवाद है की उसने मस्तक पर हरी के नाम का सिन्दूर लगा रखा है, अब सिन्दूर के स्थान पर काजल कैसे लगाया जा सकता है.
मेरे स्वानी तो आखों में रमण कर रहे हैं, बस गए हैं. सिन्दूर से आशय गुणों से है और काजल से आशय विषय वासनाओं से है. हरी भक्ति को सिन्दूर बताया गया है और सांसारिक विषय वासनाओं को काजल के समान बताया गया है. जीवात्मा को गुणवान इश्वर मिल गया है, तो वह अब अवगुणों की तरफ नहीं जा सकता है. अन्य अर्थों में उस निर्गुण राम का जाप ही सर्वोच्च है, अन्य भक्ति मार्ग, साधना आदि का सुमिरण की तुलना में कोई स्थान नहीं है