चौथ की कथा चौथ माता कहानी

चौथ की कथा चौथ माता कहानी

प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दिन संकट चतुर्थी तथा चौथमाता का व्रत को रखा जाता है जिसे अत्यंत ही शुभ माना जाता है। इस दिवस पर महिलाएं निराहार उपवास करती हैं। रात्रि को चन्द्रोदय होने पर अर्घ्य देकर तथा गणेशजी एवं चौथ माता की पूजा करके लड्डू का भोग लगाकर भोजन ग्रहण करती हैं। वैशाख कृष्ण चतुर्थी से ही चौथमाता का व्रत प्रारंभ करते हैं। आइये सुनते हैं चौथ माता की कथा। करवा चौथ और माहीं (तिलकुटा चौथ) के अतिरिक्त रखे वाले वाले सभी चौथ माता के व्रत पर इस कहानी को सुनना शुभ होता है। आइये सुनते हैं चौथ माता की कहानी। 
 
एक बूढ़ी अम्मा के ग्वालिया बाछलिया नाम का एक बेटा था। बूढ़ी अम्मा अपने बेटे से बहुत प्यार करती थी और उसके लिए बारह महीने की चौथ के व्रत किया करती थी । बुढ़ी अम्मा का बेटा हमेशा लकड़ी काट कर लाता और दोनों मां-बेटे बाजार में लकड़ियाँ बेच कर अपना गुजारा करते थे। बूढ़ी अम्मा रोजाना लकड़ियों में से कुछ लकड़ी अलग रख देती थी और चौथ के दिन बेटे से छुपकर उन्हे बेचकर सामान लाती और पांच चूरमे के लड्डू बनाती थी। एक लड्डू अपने बेटे को खिलाती और एक लड्डू खुद खाती थी ।
 एक बार चौथ का ही दिन था। बूढ़ी अम्मा का बेटा अपनी पड़ोसन के पास गया । उसने देखा पड़ोसन ने चूरमा बना रखा था । उसने पड़ोसन से पूछा कि आज क्या त्यौहार है जो आप ने चूरमा बनाया है? पड़ोसन बोली कि मैंने तो आज ही बनाया है आपकी मां तो हर चौथ के दिन चूरमा बनाती है। आपको खाने के लिए नहीं देती है क्या ?

तो बेटे ने कहा हां देती तो है। फिर पड़ोसन ने बूढ़ी अम्मा के बेटे से कहा कि आप जो लकड़ियां काट कर लाते हो उनमें से कुछ लकड़ियां आपकी मां छुपा कर बेचती है। और उन्हीं लकड़ियों से मिलने वाले पैसे से चूरमा बनाती हैं। बेटा अपनी मां के पास गया और बोला की मां मैं इतनी मेहनत से लकड़ी लेकर आता हूं और तुम चूरमा बना बना कर खा जाती हो। तो या तो आप मेरे को छोड़ दो या फिर चौथ माता के व्रत को छोड़ दो।

मां बोली कि बेटा मैं तो यह व्रत तुम्हारे लिए ही करती हूं । तुम्हें छोड़ सकती हूं लेकिन चौथ माता के व्रत नहीं छोड़ सकती। बेटा घर छोड़कर जाने लगा तो माँ ने कहा बेटा तू जा तो रहा है लेकिन यह कुछ अनाज है जिससे मैंने चौथ माता की कहानी सुनी है यह लेकर जा और जब भी संकट आए तो चौथ माता का नाम लेकर कुछ दाने वहां डाल देना। बेटे ने सोचा कि यह तो झूठ है, लेकिन कोई बात नहीं उसने वह अनाज के दाने रख लिए। और घर से चल पड़ा। वह घर से थोड़ी ही दूर गया था कि उसने देखा खून की नदी बह रही थी और कहीं से भी रास्ता नजर नहीं आ रहा था । उसने चौथ माता का नाम लिया और थोड़े से अनाज के दाने वहां डाल दिए । और कहा हे चौथ माता अगर आप सच्ची हैं तो यहां रास्ता हो जाए। इतने में ही नदी सूख गई और वहां रास्ता हो गया।

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वह आगे बढ़ा और जंगल में पहुँच गया । थोड़ी देर में रात हो गई और जंगल में जंगली जानवर बोलने लगे। उसे बहुत डर लगा तो उसने चौथ माता का नाम लेकर वहां पर कुछ अनाज के दाने डाले । और कहा हे चौथ माता मुझे रास्ता दिखाओ वरना यह जानवर मुझे खा जाएंगे। इतने में ही रास्ता मिल गया । चलते चलते वह एक राजा के नगर में पहुंच गया। वहां का राजा हर महीने एक आदमी की बलि देता था । जब वह एक बूढ़ी अम्मा के घर गया तो देखा कि बूढ़ी अम्मा पुड़ी बनाती जा रही थी और रोती जा रही थी। तो उसने पूछा कि हे बूढ़ी माई रो क्यों रही हो ? तो बूढ़ी अम्मा ने कहा कि मेरे एक ही बेटा है और आज उसे राजा के पास बलि देने के लिए जाना पड़ेगा। यह पुड़िया में उसी के लिए बना रही हूं। तो लड़के ने कहा कि आप यह पुड़ियाँ मुझे दे दो । मैं आपके बेटे के बदले राजा के यहां बलि देने चला जाऊंगा। बूढ़ी अम्मा ने उसे पुड़ियाँ दे दी । रात को सोते समय उसने अम्मा से कहा कि जब भी राजा का बुलावा आये तो आप मुझे बता देना।

आधी रात को राजा का बुलावा आया तो बूढ़ी अम्मा सोचने लगी कि पराए बेटे को मैं बलि चढ़ाने के लिए कैसे भेजूं ? इतने में ही वह उठ गया और बुड्ढी अम्मा को बोला कि मेरा थैला और मेरी लाठी दे दो । बूढ़ी अम्मा ने सोचा कि आज तक कोई वापस नहीं आया। यह भी नहीं आएगा। राजा के आदमी उसे ले गए और आवा में उसकी चिनाई कर दी । तब उसने चौथ माता का नाम लेकर कहा हे चौथ माता आपने पहले भी दो संकट टाले हैं । तो यह संकट भी टाल देना। इतने में ही आवा पक कर तैयार हो गया।

दो-तीन दिन बाद आवा के पास बच्चे खेल रहे थे । उन्होंने आवा पर पत्थर मारा उसमें से आवाज आई । बच्चे राजा के पास जाकर बोले कि राजा जी आवा पक गया है। राजा ने सोचा कि छः महीने में आवा पकता था तीन दिन में ही आवा कैसे पक गया। राजा के आदमी ने वहां जाकर देखा तो वहां पर सोने चांदी के कलश हो गए ।जब उनको उतारने लगे तो अंदर से आवाज आई कि धीरे धीरे उतारो अंदर मानस है । राजा के आदमी बोले कि इसमें तो कोई भी नहीं बोलता था आज पहली बार कौन बोलने लग गया। कोई भूत बोलने लग गया क्या ? आवा के अंदर जाकर देखा तो अनाज उगा हुआ था। राजा के आदमी को उसने सारी बात बताई । तो राजा आए और पूछा कि तुम कौन हो और तुम बच कैसे गए?

तो वह बोला कि मेरी मां चौथ के व्रत करती है । मैं तो चौथ माता के प्रभाव से बच गया । राजा को उस पर यकीन नहीं हुआ तो राजा ने उसकी परीक्षा लेने की सोची । राजा उससे बोला कि तू एक घोड़े पर चढजा और मैं दूसरे घोड़े पर चढ़ जाऊंगा। तेरे हाथ पैर रस्सी से बांध देंगे अगर रस्सी खुलकर मेरे बंध जाएगी तो चौथ माता सच्ची है । तो राजा और वह लड़का दोनों घोड़े पर बैठ गये।तो उसने थोड़े से अनाज के दाने डालकर कहा हे चौथ माता मेरी लाज रखना। इतने में ही उसकी रस्सी खुलकर के राजा के बंध गई। राजा जी ने सोचा कि चौथ माता है तो सच्ची। उन्होंने अपनी बेटी की शादी उसके साथ कर दी । वह वहीं रहने लग गया । बहुत दिनों बाद उसने कहा कि आज हमारे गांव की तरफ बिजली चमक रही है ।

तो रानी ने पूछा आपके गांव भी है । तो वह बोला कि मेरी एक मां भी है। हम अब अपने देश चलेंगे । राजा जी ने उन्हें बहुत सारा धन देकर उन्हे विदा कर दिया। दूसरी तरफ बुढ़िया माई से लकड़ी तो कटती नहीं थी इसलिए वह गोबर चुनकर उसे सुखाकर बेचकर अपना गुजारा करती। पड़ोसन ने उनके बहू बेटे को आता देखकर बोला बुढ़िया माई तेरे बेटे बहू आ रहे हैं और बहुत सारा धन लाए हैं । बुढ़िया माई ने बोला मेरे कर्म में बेटा कहां था एक बेटा था जिसको तूने लगा सिखा कर भेज दिया । पर बूढ़ी मां का मन नहीं माना और उसने ऊपर चढ़कर देखा तो सच में ही उसके बेटे बहू आ रहे थे । बेटे बहू आने के बाद बूढ़ी अम्मा का आशीर्वाद लेने लगे। और कहा कि हम चौथ माता के प्रभाव से ही बचे हैं। तब सारी नगरी में ढोल नगाड़े बजाकर कहा की बेटे की मां और उसकी पत्नी सब कोई चौथ का व्रत करें । तेरह नहीं तो चार चार नहीं तो दो तो सब ही करें। हे माता जैसे बुढ़िया माई के बेटे का संकट काटा वैसे ही सब का संकट काटना । कहते को सुनते को सब को अपना आशीर्वाद देना। जय चौथ माता की। (End)

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