जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा भजन

जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा भजन

 
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा भजन

जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा,
जहाँ नाथ रख लोगे, वहीं मैं रहूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूंगा।


यह जीवन समर्पित चरण में तुम्हारे,
तुम्ही मेरे सर्वस्व तुम्हीं प्राण प्यारे,
तुम्हे छोड़ कर ना, मैं किससे कहूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूंगा।

ना कोई उलाहना, ना कोई अर्जी,
कर लो करालो, तुम्हारी जो मर्जी,
कहना भी होगा तो तुम्ही से कहूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूंगा।

दयानाथ दयनीय मेरी अवस्था,
तुम्हारे ही हाथ सारी व्यवस्था,
कहोगे नाथ भी, ख़ुशी से कहूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूंगा।

तुम्हारे ही दिन हैं, तुम्हारी रातें,
कृपानाथ सब हैं, तुम्हारी कृपा से,
नारायण प्रभु प्रेम, मैं पावन रहूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूंगा।

जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा,
जहाँ नाथ रख लोगे, वहीं मैं रहूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा,
जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूंगा। 


जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा - Jaha Le Chaloge Wahi Mai Chalunga Bhajan Video by Rajan JeeJahaan Le Chaloge Vahin Main Chalunga,

जब मनुष्य यह अनुभव कर लेता है कि उसकी दिशा, गति और गंतव्य सभी ईश्वर की इच्छा से संचालित हैं, तब जीवन एक सुंदर यात्रा बन जाता है। शब्द “जहाँ ले चलोगे वहीं मैं चलूँगा” केवल वाक्य नहीं, बल्कि उस साधक का प्रण है जिसने अपनी लगाम स्वयं से लेकर प्रभु के हाथों में सौंप दी है। यह स्थिति गहरी शांति देती है, क्योंकि जहाँ विरोध समाप्त होता है, वहीं सच्चा विश्राम शुरू होता है।

एक बालक अपने पिता का हाथ थामे निश्चिंत चलता है, वैसे ही आत्मा अपने ईश्वर के पीछे-पीछे चलती है, चाहे रास्ता कँटीला हो या फूलों से भरा। यही सच्ची भक्ति है, जहाँ आदेश भी आशीष लगता है और परीक्षा भी अवसर बन जाती है। जब जीवन के हर पल में “तेरी मर्ज़ी” का भाव आ जाता है, तब भीतर कोई भय नहीं रहता। यह समर्पण ही मुक्ति का द्वार है — जहाँ कर्ता वही, भोगता वही, और साधक केवल एक साक्षी बन जाता है।
 
यह भी देखें You May Also Like

Next Post Previous Post