कबीर कहा गरिबियो ऊँचे देखि अवास मीनिंग Kabir Kaha Garibiyo Unche Dekhi Aavas Meaning Kabir Ke Dohe
कबीर कहा गरिबियो ऊँचे देखि अवास मीनिंग Kabir Kaha Garibiyo Unche Dekhi Aavas Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit (Hindi Bhavarth/Meaning)
कबीर कहा गरिबियो, ऊँचे देखि अवास।काल्हि पर्यूँ भ्वै लेटणाँ, ऊपरि जामैं घास॥
या
कबीर कहा गरबियो, ऊँचे देखि आवास,
काल्हि परयुं भुई लोटणा, ऊपरि जामैं घास
Kabir Kaha Gariviyo, Unche Dekhi Avaas,
Kalhi Parayu Bhuve Letna, Upari Jaame Ghaas.
कबीर कहा : कबीर साहेब की वाणी है की तुम व्यर्थ में क्यों अभिमान करते हो.
गरिबियो : अभिमान करना.
ऊँचे देखि अवास : ऊँचे महल और मकान देखकर.
काल्हि पर्यूँ : आने वाले कल को पड़े रहेंगे, ध्वस्त हो जाएंगे.
भ्वै लेटणाँ : धरती पर लेटना है, धरती पर आ गिरना है.
ऊपरि जामैं घास : ऊपर घास को जमना है, उगना है.
गरिबियो : अभिमान करना.
ऊँचे देखि अवास : ऊँचे महल और मकान देखकर.
काल्हि पर्यूँ : आने वाले कल को पड़े रहेंगे, ध्वस्त हो जाएंगे.
भ्वै लेटणाँ : धरती पर लेटना है, धरती पर आ गिरना है.
ऊपरि जामैं घास : ऊपर घास को जमना है, उगना है.
कबीर साहेब की वाणी है की तुम व्यर्थ में क्यों अभिमान करते हो, बहुत ही अल्प समय में (कल को) तुम्हारे बनाए महल मालिये और अटारी धवस्त हो जानी है और इनपर घास को उगना है. यही अर्थ मानव तन के ऊपर भी लगाया जा सकता है. मानव तन एक रोज समाप्त हो जाना है. शीघ्र ही इसके ऊपर घास को जमना है. कबीर साहेब की वाणी है की एक रोज तुम्हारे बनाए सभी मकान आदि समाप्त हो
जाने हैं, मायाजनित कुछ भी स्थाई नहीं है. एक रोज सब कुछ समाप्त हो जाना है. इस प्रकार से सांसारिक वस्तुओं पर गर्व करना व्यर्थ ही है.
जाने हैं, मायाजनित कुछ भी स्थाई नहीं है. एक रोज सब कुछ समाप्त हो जाना है. इस प्रकार से सांसारिक वस्तुओं पर गर्व करना व्यर्थ ही है.