बोली रुकमण मोहन से प्रभु भजन
बोली रुकमण मोहन से प्रभु भजन
बोली रुकमण मोहन से प्रभु,
सदा है सताया भक्तों ने,
बोली रुकमण मोहन से प्रभु,
सदा सताया भक्तों ने,
हे, सदा सताया भक्तों ने,
श्याम, चावल और चने के बदले में,
तेरा प्यार है प्यारा भक्तों ने।
कभी हाथी बन, कभी भाती बन,
था भात भरा तूने नरसी का,
मोहन अशर्फी खूब लुटा,
तूने काज सँवारा, नरसी का, श्याम,
वृन्दावन में गाय चराई,
तो चोर बताया भक्तों ने,
बोली रुकमण मोहन से प्रभु,
सदा है सताया भक्तों ने।
विदुराणी के छिलके खाए,
भीलणी के बैर भी खाए हो,
अपने भक्तों का मान रखा,
द्रौपदी की लाज़ बचाए हो,
तुम द्रौपदी की लाज़ बचाए हो,श्याम,
जब याद करे तू आता है,
जब भी बुलाया भक्तों ने,
चावल और चने के बदले में,
तेरा प्यार है पाया भक्तों ने।
बोली रुकमण मोहन से,
सदा है सताया भक्तों ने।
अपने भक्तों के लिए है मारा,
है कंस और शिशुपाल भी तूने,
कहीं मार गिराया रावण को,
और कष्ट सहे चौदह साल तूने,
कहे कृष्ण सिंह, कहे बदरी सिंह,
तेरा प्रण भी तुड़ाया, भक्तों ने,
बोली रुकमण मोहन से,
सदा है सताया भक्तों ने।
कभी अपने सैन भगत के लिए,
पहुँचे तुम नाइ बन करके,
चल स्यारा छोड़न जाता तू,
मोहन का भाई बन कर के, श्याम,
कभी नौकर कभी घर का तुझको,
पहरेदार बनाया भक्तों ने,
बोली रुकमण मोहन से,
सदा है सताया भक्तों ने।
बोली रुकमण मोहन से प्रभु,
सदा है सताया भक्तों ने,
बोली रुकमण मोहन से प्रभु,
सदा सताया भक्तों ने,
हे, सदा सताया भक्तों ने,
श्याम, चावल और चने के बदले में,
तेरा प्यार है प्यारा भक्तों ने।
सदा है सताया भक्तों ने,
बोली रुकमण मोहन से प्रभु,
सदा सताया भक्तों ने,
हे, सदा सताया भक्तों ने,
श्याम, चावल और चने के बदले में,
तेरा प्यार है प्यारा भक्तों ने।
कभी हाथी बन, कभी भाती बन,
था भात भरा तूने नरसी का,
मोहन अशर्फी खूब लुटा,
तूने काज सँवारा, नरसी का, श्याम,
वृन्दावन में गाय चराई,
तो चोर बताया भक्तों ने,
बोली रुकमण मोहन से प्रभु,
सदा है सताया भक्तों ने।
विदुराणी के छिलके खाए,
भीलणी के बैर भी खाए हो,
अपने भक्तों का मान रखा,
द्रौपदी की लाज़ बचाए हो,
तुम द्रौपदी की लाज़ बचाए हो,श्याम,
जब याद करे तू आता है,
जब भी बुलाया भक्तों ने,
चावल और चने के बदले में,
तेरा प्यार है पाया भक्तों ने।
बोली रुकमण मोहन से,
सदा है सताया भक्तों ने।
अपने भक्तों के लिए है मारा,
है कंस और शिशुपाल भी तूने,
कहीं मार गिराया रावण को,
और कष्ट सहे चौदह साल तूने,
कहे कृष्ण सिंह, कहे बदरी सिंह,
तेरा प्रण भी तुड़ाया, भक्तों ने,
बोली रुकमण मोहन से,
सदा है सताया भक्तों ने।
कभी अपने सैन भगत के लिए,
पहुँचे तुम नाइ बन करके,
चल स्यारा छोड़न जाता तू,
मोहन का भाई बन कर के, श्याम,
कभी नौकर कभी घर का तुझको,
पहरेदार बनाया भक्तों ने,
बोली रुकमण मोहन से,
सदा है सताया भक्तों ने।
बोली रुकमण मोहन से प्रभु,
सदा है सताया भक्तों ने,
बोली रुकमण मोहन से प्रभु,
सदा सताया भक्तों ने,
हे, सदा सताया भक्तों ने,
श्याम, चावल और चने के बदले में,
तेरा प्यार है प्यारा भक्तों ने।
Boli Rukmani · Panna Singh Lakkha · Mohan Singh-Kamal Singh · Rajpal Sharma
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Author - Saroj Jangir
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