पंडित सेती कहि रह्या भीतरि भेद्या नाहिं मीनिंग Pandit Seti Kahi Rahya Meaning Kabir Ke Dohe

पंडित सेती कहि रह्या भीतरि भेद्या नाहिं मीनिंग Pandit Seti Kahi Rahya Meaning Kabir Ke Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit/Hindi Meaning, Hindi Bhavarth.

पंडित सेती कहि रह्या, भीतरि भेद्या नाहिं।
औरूँ कौ परमोधतां, गया मुहरकाँ माँहि॥
Pandit Seti Kahi Rahya, Bhitari Bhedya Nahi,
Oru Ko Parmodhata, Gaya Muharka Mahi.

पंडित सेती कहि रह्या : पंडित लोग सिर्फ कह रहे हैं.
भीतरि भेद्या नाहिं : भीतर तक ज्ञान को प्राप्त नहीं किया है.
औरूँ कौ परमोधतां : दूसरों को प्रसन्न करते हुए, करते करते.
गया मुहरकाँ माँहि : विनाश को प्राप्त हुआ.
पंडित सेती : पंडित लोग जो स्वेत वस्त्र धारण करते हैं.
कहि रह्या : कहते है.
भीतरि : हृदय तक, भीतर तक.
भेद्या नाहिं : भेदा नहीं, अन्दर तक ज्ञान को नहीं उतारा.
औरूँ कौ : दूसरों को.
परमोधतां : खुश करते हुए.
गया : चला गया.
मुहरकाँ : कत्लखाना.
माँहि : के अन्दर.

कबीर साहेब ने कथनी और करनी के विषय में वाणी दी है की पंडित लोग कहते कुछ और हैं और करते कुछ और ही हैं. उनकी कथनी और करनी में बहुत ही अन्दर होता है. वे दूसरों को खुश करने के चक्कर में स्वंय का विनाश कर बैठते हैं. भाव है की जो ज्ञान पंडित लोग दूसरों को बाँटते हैं वे स्वंय उसका अनुसरण नहीं करते हैं. ज्ञान का भी तभी महत्त्व होता है जब उसे स्वंय के आचरण में उतारा जाए. वह बाहर बाहर तक ही घूमता है, हृदय में अपने ज्ञान को नहीं उतारता है.
अतः ज्ञान का महत्त्व यही है की उसके तह तक जाया जाए, उसे आत्मसात किया जाए. महज लोगों का मनोरंजन करने के लिए ज्ञान को रटना किसी काम का नहीं है.
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