तोरे ऊंचे भुवन बने मात भवानी मोर नचत है बागों में

तोरे ऊंचे भुवन बने मात भवानी मोर नचत है बागों में

(मुखड़ा)
तोरे ऊँचे भुवन बने, मात भवानी,
मोर नचत है बागों में।।

(अंतरा)
माँ के मंदिर पे कंचन कलश धरे,
वहाँ चंदन के जड़े हैं किवाड़ भवानी,
मोर नचत है बागों में।।

तोरे अंगना में नवत बाज रही,
शंख, झालर बजे, खड़ताल भवानी,
मोर नचत है बागों में।।

बैठी अटल सिंघासन जगदंबे,
ओढ़े चुनरी माँ गोटेदार भवानी,
मोर नचत है बागों में।।

माँ के मस्तक पे बिंदिया दमक रही,
गले मोतियों की माला डार भवानी,
मोर नचत है बागों में।।

कान-कुंडल में हीरा चमक रहे,
सोहे सोने के कंगन हाथ भवानी,
मोर नचत है बागों में।।

पाँव पैजनिया छम-छम बाज रही,
बहे चरणों से अमृत की धार भवानी,
मोर नचत है बागों में।।

ध्यान-पूजन, पदम न जानत है,
करूँ कैसे तुम्हारो सिंगार भवानी,
मोर नचत है बागों में।।

(अंतिम पुनरावृत्ति)
तोरे ऊँचे भुवन बने, मात भवानी,
मोर नचत है बागों में।।
 


तोरे जँचे भुवन बने मात भवानी.......
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