भज राधे गोविंदा रे पगले भज राधे गोविंदा

भज राधे गोविंदा रे पगले भज राधे गोविंदा रे कृष्णा भजन

भज राधे गोविंदा रे पगले भज राधे गोविंदा रे कृष्णा भजन
 
भज राधे गोविंदा रे पगले,
भज राधे गोविंदा रे,
तन परिंदे को छोड़ कहीं,
उड़ जाये ना प्राण परिंदा रे,
भज राधे गोविंदा रै पगले,
भज राधे गोविन्दा रे।

झूठी सारी दुनियादारी,
झूठा तेरा मेरा रे,
आज रुके कल चल देगा,
ये जोगी वाला फेरा रे,
सब साथी है झूठे जगत के,
सच्चा एक गोविंदा रे,
भज राधे गोविंदा रै पगले,
भज राधे गोविन्दा रे।

इस जीवन में सुख की कलियाँ,
और सभी दुःख के काँटे,
सुख में हर कोई हिस्सा माँगे,
कोई भी ना दुःख बाँटे,
भेद भाव को छोड़ दे पगले,
मत कर तू परनिंदा रे,
भज राधे गोविंदा रै पगले,
भज राधे गोविन्दा रे।

इस चादर को बड़े जतन से,
ओढ़े दास कबीरा रे,
इसे पहन विष पान कर गई,
प्रेम दीवानी मीरा रे,
इस चादर को पाप करम से,
मत कर तू अब गन्दा रे,
भज राधे गोविंदा रै पगले,
भज राधे गोविन्दा रे।

भज राधे गोविंदा रे पगले,
भज राधे गोविंदा रे,
तन परिंदे को छोड़ कहीं,
उड़ जाये ना प्राण परिंदा रे,
भज राधे गोविंदा रै पगले,
भज राधे गोविन्दा रे।

भजन श्रेणी : कृष्ण भजन (Krishna Bhajan)



भज राधे गोविन्दा रे पगले - Bhaj Radhe Govinda Re Pagle - Shri Chinmayanand Bapu Ji

Bhaj Raadhe Govinda Re Pagale,
Bhaj Raadhe Govinda Re,
Tan Parinde Ko Chhod Kahin,
Ud Jaaye Na Praan Parinda Re,
Bhaj Raadhe Govinda Rai Pagale,
Bhaj Raadhe Govinda Re. 

यह भाव जीवन की अस्थिरता को गहराई से छूता है और साथ ही एक सुगंधित मार्ग दिखाता है—नामस्मरण का। यह स्मरण केवल जप नहीं, उस सत्य की याद है जहाँ “राधे गोविंदा” का नाम जीवन के हर क्षण को अर्थ देता है। जब गीत कहता है कि “तन परिंदे को छोड़ कहीं उड़ जाये ना प्राण परिंदा,” तो यह चेतावनी नहीं बल्कि जागरण है—कि इस जीवन की चादर क्षणभंगुर है, इसलिए उसे भक्ति की डोर से बाँध ले। संसार की चाल दिखने में स्थिर है, पर वास्तव में वह सदा परिवर्तनशील है; इसीलिए कबीर और मीरा की तरह नाम के सहारे चलना ही उसकी सच्ची स्थिरता है। 

►Video Name :- भज राधे गोविन्दा रे पगले
►Katha Vachak :- Shri Chinmayanand Bapu
►Copyright :- Shri Chinmayanand Bapu 

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