भरम न भागा जीव का मीनिंग कबीर के दोहे

भरम न भागा जीव का मीनिंग Bharam Na Bhaga Jeev Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

भरम न भागा जीव का, अनंतहि धरिया भेष।
सतगुर परचे बाहिरा, अंतरि रह्या अलेष॥
Bharam Na Bhaga Jeev Ka, Anantahi Dhariya Bhesh,
Satguru Parche Bahira, Antari Rahya Alekh.

भरम न भागा जीव का: जीव का भरम दूर नहीं होता है.
अनंतहि धरिया भेष: विभिन्न तरह के वेश धर लिए हैं.
सतगुर परचे बाहिरा: सतगुरु के परिचय से अभाव के होने पर.
अंतरि रह्या अलेष: हृदय में स्थित अलक्ष्य को जान नहीं पाया.

कबीर साहेब की वाणी है की बगैर सच्ची भक्ति के, हृदय से भक्ति के अभाव में व्यक्ति पूर्ण परमात्मा को प्राप्त नहीं कर पाता है. जीव सच्ची भक्ति के अभाव में भले ही विभिन्न तरह के वस्त्र धारण कर ले, कर्मकांड कर ले या धार्मिक आडम्बर का उपयोग कर ले लेकिन उसे भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती है. भक्ति आंतरिक है, हृदय से की जाती है जिसमें बाह्य किसी आडम्बर का कोई स्थान नहीं होता है. सतगुरु से परिचय के अभाव में जीवात्मा भक्ति को प्राप्त नहीं कर सकती है.
गुरु के कारण ही इश्वर से साक्षात्कार हो पाता है, अन्यथा अनंत भेष धारण कर लेने से भक्ति नहीं मिलती है. भेष से आशय असंख्य योनियों में जीवन प्राप्त करने से भी है. सतगुरु से परिचय के उपरान्त ही भरम दूर होता है.
भ्रम (भरम) क्या है : हम हैं और हम सदा ही रहेंगे यही सबसे बड़ा भ्रम है. मानव जीवन अल्प है, जगत एक सराय है, सभी को जाना है एक रोज यही सत्य है. जीवन का उद्देश्य हरी का सुमिरन करना है. माया को अपना समझ कर व्यक्ति अपने अमूल्य जीवन को समाप्त करता है. प्रस्तुत साखी में गुरु की महत्ता का वर्णन किया गया है.
 
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