जगत जहंदम राचिया मीनिंग Jagat Jhandam Rachiya Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )
जगत जहंदम राचिया, झूठे कुल की लाज।तन बिनसे कुल बिनसि है, गह्या न राँम जिहाज॥
Jagat Jahandam Rachiya Jhuthe Kul Ki Laaj,
Tan Binase Kul Binasi Hai, Gahya Na Ram Jihaj
जगत जहंदम राचिया : यह संसार जहन्नुम/नरक के प्रति आकर्षित हो चूका है.
झूठे कुल की लाज : कुल की झूठी लाज के कारण.
तन बिनसे कुल बिनसि है : तन के समाप्त होते ही कुल भी समाप्त हो जाता है.
गह्या न राँम जिहाज : राम नाम रूपी जहाज को प्राप्त नहीं करता है.
जगत : संसार, जगत के सभी लोग.
जहंदम : नरक, जहन्नुम.
राचिया : आस्था रखते हैं, लगाव रखते हैं.
झूठे कुल की लाज : कुल वंश की झूठी लाज के कारण.
तन : मानव देह.
बिनसे : समाप्त होने पर, नष्ट होने पर.
कुल बिनसि है : कुल भी समाप्त हो जाता है.
गह्या : ग्रहण नहीं किया.
राँम जिहाज : राम रूपी जहाज.
झूठे कुल की लाज : कुल की झूठी लाज के कारण.
तन बिनसे कुल बिनसि है : तन के समाप्त होते ही कुल भी समाप्त हो जाता है.
गह्या न राँम जिहाज : राम नाम रूपी जहाज को प्राप्त नहीं करता है.
जगत : संसार, जगत के सभी लोग.
जहंदम : नरक, जहन्नुम.
राचिया : आस्था रखते हैं, लगाव रखते हैं.
झूठे कुल की लाज : कुल वंश की झूठी लाज के कारण.
तन : मानव देह.
बिनसे : समाप्त होने पर, नष्ट होने पर.
कुल बिनसि है : कुल भी समाप्त हो जाता है.
गह्या : ग्रहण नहीं किया.
राँम जिहाज : राम रूपी जहाज.
कबीर साहेब का सन्देश है की झूठे कुल की लाज और मर्यादा के कारण जीवात्मा व्यक्ति लोक प्रचलित मान्यताओं का अनुसरण करता है और इश्वर के प्रति समर्पित नहीं होता है. ऐसे में साहेब की वाणी है की जीवात्मा को समझना होगा की इस नश्वर देह के समाप्त होने पर समस्त झूठा जगत भी समाप्त हो जाना है. अतः जीवात्मा जगत के कारण भव सागर से पार होने के लिए राम रूपी जहाज को ग्रहण नहीं कर पाती है.
भाव है की इस जगत के सागर से पार होने के लिए जीवात्मा को राम रूपी जहाज का सहारा लेना चाहिए. राम नाम सुमिरन ही मुक्ति का माध्यम है लेकिन जीवात्मा
संसार का अनुसरण करती है जो उसे नरक की तरफ लेकर जाती है.
इस दोहे में साहेब ने भक्ति मार्ग की लोकप्रचलित मान्यताओं का खंडन करके भक्ति मार्ग में राम सुमिरन को महत्त्व दिया है, अन्य सभी प्रचलित मान्यताएं व्यर्थ हैं. प्रस्तुत साखी में रूपक और वक्रोक्ति अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
भाव है की इस जगत के सागर से पार होने के लिए जीवात्मा को राम रूपी जहाज का सहारा लेना चाहिए. राम नाम सुमिरन ही मुक्ति का माध्यम है लेकिन जीवात्मा
संसार का अनुसरण करती है जो उसे नरक की तरफ लेकर जाती है.
इस दोहे में साहेब ने भक्ति मार्ग की लोकप्रचलित मान्यताओं का खंडन करके भक्ति मार्ग में राम सुमिरन को महत्त्व दिया है, अन्य सभी प्रचलित मान्यताएं व्यर्थ हैं. प्रस्तुत साखी में रूपक और वक्रोक्ति अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
निचे दिए गए लिंक पर जाकर आप कबीर साहेब के दोहे को खोज सकते हैं, जिसका सरल हिंदी अर्थ आपको प्राप्त हो जाएगा.
ट्रेंडिंग कबीर दोहे Trending Kabir Dohe
- पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार-कबीर के दोहे हिंदी में
- गुरु कुम्भार शिष्य कुम्भ है कबीर के दोहे में
- पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया ना कोय कबीर के दोहे
- जब मैं था हरी नाहीं, अब हरी है मैं नाही कबीर के दोहे हिंदी
- कबीर संगत साधु की ज्यों गंधी की बांस कबीर दोहे हिंदी में
- ऊँचे कुल में जनमियाँ करनी ऊंच ना होय कबिर के दोहे
- करे बुराई सुख चहे कबीर दोहा हिंदी में