हिंदू धर्म में नदियों को देवियों का दर्जा दिया गया है। गंगा माता, नर्मदा माता, यमुना माता, सरस्वती माता जैसी बहुत सी नदियों की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है की गंगा नदी में डुबकी लगाने मात्र से ही सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, वैसे ही नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से ही सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और सुखी जीवन की प्राप्ति होती है। जैसा कि नाम से ही विदित है 'नर्म' अथार्त सुख और 'दा' अथार्त देने वाली, हिंदू धर्म में नर्मदा नदी को सुख देने वाली नदी भी कहा जाता है। नर्मदा नदी को 'सुखदा' भी कहा जाता है। नर्मदा चालीसा का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा भी प्राप्त होती है। नर्मदा चालीसा का पाठ करने से पापों से मुक्ति मिलती है और सुखी जीवन की प्राप्ति होती है।
दोहा देवि पूजित, नर्मदा, महिमा बड़ी अपार, चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार। इनकी सेवा से सदा, मिटते पाप महान, तट पर कर जप दान नर, पाते हैं नित ज्ञान। चौपाई जय-जय-जय नर्मदा भवानी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी। अमरकण्ठ से निकली माता, सर्व सिद्धि नव निधि की दाता। कन्या रूप सकल गुण खानी, जब प्रकटीं नर्मदा भवानी। सप्तमी सुर्य मकर रविवारा, अश्वनि माघ मास अवतारा। वाहन मकर आपको साजे, कमल पुष्प पर आप विराजे। ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावे, तब ही मनवांछित फल पावे। दर्शन करत पाप कटि जाते, कोटि भक्त गण नित्य नहाते। जो नर तुमको नित ही ध्यावे, वह नर रुद्र लोक को जावे। मगरमच्छा तुम में सुख पावे, अंतिम समय परमपद पावे। मस्तक मुकुट सदा ही साजे, पांव पैंजनी नित ही राजे। कल-कल ध्वनि करती हो माता, पाप ताप हरती हो माता। पूरब से पश्चिम की ओरा, बहतीं माता नाचत मोरा। शौनक ऋषि तुम्हरो गुण गावे, सूत आदि तुम्हरो यश गावे। शिव गणेश भी तेरे गुण गावे, सकल देव गण तुमको ध्यावे। कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे, ये सब कहलाते दु:ख हारे। मनोकमना पूरण करती, सर्व दु:ख माँ नित ही हरती।
कनखल में गंगा की महिमा, कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा। पर नर्मदा ग्राम जंगल में, नित रहती माता मंगल में। एक बार कर के स्नाना, तरत पिढ़ी है नर नारा। मेकल कन्या तुम ही रेवा, तुम्हरी भजन करें नित देवा। जटा शंकरी नाम तुम्हारा, तुमने कोटि जनों को है तारा। समोद्भवा नर्मदा तुम हो, पाप मोचनी रेवा तुम हो। तुम्हरी महिमा कहि नहीं जाई, करत न बनती मातु बड़ाई। जल प्रताप तुममें अति माता, जो रमणीय तथा सुख दाता। चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी, महिमा अति अपार है तुम्हारी। तुम में पड़ी अस्थि भी भारी, छुवत पाषाण होत वर वारि। यमुना मे जो मनुज नहाता, सात दिनों में वह फल पाता। सरस्वती तीन दीनों में देती, गंगा तुरत बाद हीं देती। पर रेवा का दर्शन करके मानव फल पाता मन भर के। तुम्हरी महिमा है अति भारी, जिसको गाते हैं नर-नारी। जो नर तुम में नित्य नहाता, रुद्र लोक मे पूजा जाता। जड़ी बूटियां तट पर राजें, मोहक दृश्य सदा हीं साजें| वायु सुगंधित चलती तीरा, जो हरती नर तन की पीरा। घाट-घाट की महिमा भारी, कवि भी गा नहिं सकते सारी। नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा, और सहारा नहीं मम दूजा। हो प्रसन्न ऊपर मम माता, तुम ही मातु मोक्ष की दाता। जो मानव यह नित है पढ़ता, उसका मान सदा ही बढ़ता। जो शत बार इसे है गाता, वह विद्या धन दौलत पाता। अगणित बार पढ़ै जो कोई, पूरण मनोकामना होई। सबके उर में बसत नर्मदा, यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ।
दोहा भक्ति भाव उर आनि के, जो करता है जाप। माता जी की कृपा से, दूर होत संताप। इति श्री नर्मदा चालीसा
नर्मदा चालीसा पाठ संपूर्ण होने पर नर्मदा नदी की आरती भी करें। हिंदू धर्म में माना जाता है कि चालीसा पाठ करने के पश्चात आरती करने पर ही पूजा पूर्ण होती है।
नर्मदा माता की आरती
ॐ जय जगदानन्दी, मैया जय आनन्द कन्दी।
Chalisa Lyrics in Hindi,Narmada Mata Bhajan Lyrics Hindi
ब्रह्मा हरिहर शंकर रेवा शिव , हरि शंकर रुद्री पालन्ति। ॐ जय जय जगदानन्दी.....। देवी नारद शारद तुम वरदायक, अभिनव पदचण्डी। सुर नर मुनि जन सेवत, सुर नर मुनि शारद पदवन्ती। ॐ जय जय जगदानन्दी.....। देवी धूमक वाहन, राजत वीणा वादयन्ती। झूमकत झूमकत झूमकत झननना झननना रमती राजन्ती। ॐ जय जय जगदानन्दी.....। देवी बाजत ताल मृदंगा, सुरमण्डल रमती। तोड़ीतान तोड़ीतान तोड़ीतान, तुरड़ड़ रमती सुरवन्ती। ॐ जय जय जगदानन्दी.....। देवी सकल भुवन पर आप विराजत, निशदिन आनन्दी। गावत गंगा शंकर,सेवत रेवा शंकर , तुम भव मेटन्ती। ॐ जय जय जगदानन्दी.....। मैया जी को कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। अमर कंठ विराजत, घाटन घाट कोटी रतन जोती। ॐ जय जय जगदानन्दी.....। मैया जी की आरती निशदिन पढ़ि पढ़ि जो गावें। भजत शिवानन्द स्वामी, मन वांछित फल पावें। ॐ जय जय जगदानन्दी.....। इति श्री नर्मदा आरती