पार्श्वनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Parshvanatha Chalisa Lyrics, Bhagwan Parshvanatha Chalisa, Aarti Pujan Fayde, Benefits in Hindi
जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान श्री पार्श्वनाथ जी थे। भगवान श्री पार्श्वनाथ जी का जन्म इक्ष्वाकु वंश में पौष माह की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को वाराणसी में हुआ था। भगवान पार्श्वनाथ जी के पिता का नाम राजा अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी था। इनके शरीर का वर्ण नीला था। भगवान पार्श्वनाथ जी का चिन्ह सर्प है। भगवान श्री पार्श्वनाथ जी ने जैन धर्म की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाया और धर्म का सरल रास्ता दिखाया। उन्होंने बताया कि सत्य और अहिंंसा ही परम धर्म है।
पार्श्वनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Parshvanatha Chalisa Lyrics in Hindi
शीश नवा अरिहंत को,
सिद्धन करुं प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का,
ले सुखकारी नाम।
सर्व साधु और सरस्वती,
जिन मन्दिर सुखकार।
अहिच्छत्र और पार्श्व को,
मन मन्दिर में धार।
चौपाई
पार्श्वनाथ जगत हितकारी,
हो स्वामी तुम व्रत के धारी।
सुर नर असुर करें तुम सेवा,
तुम ही सब देवन के देवा।
तुमसे करम शत्रु भी हारा,
तुम कीना जग का निस्तारा।
अश्वसैन के राजदुलारे,
वामा की आँखो के तारे।
काशी जी के स्वामी कहाये,
सारी परजा मौज उड़ाये।
इक दिन सब मित्रों को लेके,
सैर करन को वन में पहुँचे।
हाथी पर कसकर अम्बारी,
इक जगंल में गई सवारी।
एक तपस्वी देख वहां पर,
उससे बोले वचन सुनाकर।
तपसी तुम क्यों पाप कमाते,
इस लक्कड़ में जीव जलाते।
तपसी तभी कुदाल उठाया,
उस लक्कड़ को चीर गिराया।
निकले नाग-नागनी काटे,
मरने के थे निकट बिचारे।
रहम प्रभू के दिल में आया,
तभी मन्त्र नवकार सुनाया।
मर कर वो पाताल सिधाये,
पद्मावति धरणेन्द्र कहाये।
तपसी मर कर देव कहाया,
नाम कमठ ग्रन्थों में गाया।
एक समय श्रीपारस स्वामी,
राज छोड़ कर वन की ठानी।
तप करते थे ध्यान लगाये,
इकदिन कमठ वहां पर आये।
फौरन ही प्रभु को पहिचाना,
बदला लेना दिल में ठाना।
बहुत अधिक बारिश बरसाई,
बादल गरजे बिजली गिराई।
बहुत अधिक पत्थर बरसाये,
स्वामी तन को नहीं हिलाये।
पद्मावती धरणेन्द्र भी आए,
प्रभु की सेवा मे चित लाए।
धरणेन्द्र ने फन फैलाया,
प्रभु के सिर पर छत्र बनाया।
पद्मावति ने फन फैलाया,
उस पर स्वामी को बैठाया।
कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया,
समोशरण देवेन्द्र रचाया।
यही जगह अहिच्छत्र कहाये,
पात्र केशरी जहां पर आये।
शिष्य पाँच सौ संग विद्वाना,
जिनको जाने सकल जहाना।
पार्श्वनाथ का दर्शन पाया,
सबने जैन धरम अपनाया।
अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी,
जहाँ सुखी थी परजा सगरी।
राजा श्री वसुपाल कहाये,
वो इक जिन मन्दिर बनवाये।
प्रतिमा पर पालिश करवाया,
फौरन इक मिस्त्री बुलवाया।
वह मिस्तरी मांस था खाता,
इससे पालिश था गिर जाता।
मुनि ने उसे उपाय बताया,
पारस दर्शन व्रत दिलवाया।
मिस्त्री ने व्रत पालन कीना,
फौरन ही रंग चढ़ा नवीना।
गदर सतावन का किस्सा है,
इक माली का यों लिक्खा है।
वह माली प्रतिमा को लेकर,
झट छुप गया कुए के अन्दर।
उस पानी का अतिशय भारी,
दूर होय सारी बीमारी।
जो अहिच्छत्र ह्रदय से ध्यावे,
सो नर उत्तम पदवी पावे।
पुत्र संपदा की बढ़ती हो,
पापों की इक दम घटती हो।
है तहसील आंवला भारी,
स्टेशन पर मिले सवारी।
रामनगर इक ग्राम बराबर,
जिसको जाने सब नारी नर।
चालीसे को ‘चन्द्र’ बनाये,
हाथ जोड़कर शीश नवाये।
सोरठा
नित चालीसहिं बार,
पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार,
अहिच्छत्र में आय के।
होय कुबेर समान,
जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं सन्तान,
नाम वंश जग में चले।
सिद्धन करुं प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का,
ले सुखकारी नाम।
सर्व साधु और सरस्वती,
जिन मन्दिर सुखकार।
अहिच्छत्र और पार्श्व को,
मन मन्दिर में धार।
चौपाई
पार्श्वनाथ जगत हितकारी,
हो स्वामी तुम व्रत के धारी।
सुर नर असुर करें तुम सेवा,
तुम ही सब देवन के देवा।
तुमसे करम शत्रु भी हारा,
तुम कीना जग का निस्तारा।
अश्वसैन के राजदुलारे,
वामा की आँखो के तारे।
काशी जी के स्वामी कहाये,
सारी परजा मौज उड़ाये।
इक दिन सब मित्रों को लेके,
सैर करन को वन में पहुँचे।
हाथी पर कसकर अम्बारी,
इक जगंल में गई सवारी।
एक तपस्वी देख वहां पर,
उससे बोले वचन सुनाकर।
तपसी तुम क्यों पाप कमाते,
इस लक्कड़ में जीव जलाते।
तपसी तभी कुदाल उठाया,
उस लक्कड़ को चीर गिराया।
निकले नाग-नागनी काटे,
मरने के थे निकट बिचारे।
रहम प्रभू के दिल में आया,
तभी मन्त्र नवकार सुनाया।
मर कर वो पाताल सिधाये,
पद्मावति धरणेन्द्र कहाये।
तपसी मर कर देव कहाया,
नाम कमठ ग्रन्थों में गाया।
एक समय श्रीपारस स्वामी,
राज छोड़ कर वन की ठानी।
तप करते थे ध्यान लगाये,
इकदिन कमठ वहां पर आये।
फौरन ही प्रभु को पहिचाना,
बदला लेना दिल में ठाना।
बहुत अधिक बारिश बरसाई,
बादल गरजे बिजली गिराई।
बहुत अधिक पत्थर बरसाये,
स्वामी तन को नहीं हिलाये।
पद्मावती धरणेन्द्र भी आए,
प्रभु की सेवा मे चित लाए।
धरणेन्द्र ने फन फैलाया,
प्रभु के सिर पर छत्र बनाया।
पद्मावति ने फन फैलाया,
उस पर स्वामी को बैठाया।
कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया,
समोशरण देवेन्द्र रचाया।
यही जगह अहिच्छत्र कहाये,
पात्र केशरी जहां पर आये।
शिष्य पाँच सौ संग विद्वाना,
जिनको जाने सकल जहाना।
पार्श्वनाथ का दर्शन पाया,
सबने जैन धरम अपनाया।
अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी,
जहाँ सुखी थी परजा सगरी।
राजा श्री वसुपाल कहाये,
वो इक जिन मन्दिर बनवाये।
प्रतिमा पर पालिश करवाया,
फौरन इक मिस्त्री बुलवाया।
वह मिस्तरी मांस था खाता,
इससे पालिश था गिर जाता।
मुनि ने उसे उपाय बताया,
पारस दर्शन व्रत दिलवाया।
मिस्त्री ने व्रत पालन कीना,
फौरन ही रंग चढ़ा नवीना।
गदर सतावन का किस्सा है,
इक माली का यों लिक्खा है।
वह माली प्रतिमा को लेकर,
झट छुप गया कुए के अन्दर।
उस पानी का अतिशय भारी,
दूर होय सारी बीमारी।
जो अहिच्छत्र ह्रदय से ध्यावे,
सो नर उत्तम पदवी पावे।
पुत्र संपदा की बढ़ती हो,
पापों की इक दम घटती हो।
है तहसील आंवला भारी,
स्टेशन पर मिले सवारी।
रामनगर इक ग्राम बराबर,
जिसको जाने सब नारी नर।
चालीसे को ‘चन्द्र’ बनाये,
हाथ जोड़कर शीश नवाये।
सोरठा
नित चालीसहिं बार,
पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार,
अहिच्छत्र में आय के।
होय कुबेर समान,
जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं सन्तान,
नाम वंश जग में चले।
श्री पार्श्वनाथ चालीसा लिरिक्स इन हिंदी (Shri Parasvanath Chalisa Lyrics in Hindi)
।। दोहा ।।शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकार।
अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मंदिर में धार।।
।। चौपाई ।।
पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी।
सुर नर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा।
तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा।
अश्वसेन के राजदुलारे, वामा की आंखों के तारे।
काशीजी के स्वामी कहाए, सारी परजा मौज उड़ाए।
इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुंचे।
हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जंगल में गई सवारी।
एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले वचन सुनाकर।
तपसी! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते।
तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया।
निकले नाग-नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे।
रहम प्रभु के दिल में आया, तभी मंत्र नवकार सुनाया।
मरकर वो पाताल सिधाए, पद्मावती धरणेन्द्र कहाए।
तपसी मरकर देव कहाया, नाम कमठ ग्रंथों में गाया।
एक समय श्री पारस स्वामी, राज छोड़कर वन की ठानी।
तप करते थे ध्यान लगाए, इक दिन कमठ वहां पर आए।
फौरन ही प्रभु को पहिचाना, बदला लेना दिल में ठाना।
बहुत अधिक बारिश बरसाई, बादल गरजे बिजली गिराई।
बहुत अधिक पत्थर बरसाए, स्वामी तन को नहीं हिलाए।
पद्मावती धरणेन्द्र भी आए, प्रभु की सेवा में चित लाए।
धरणेन्द्र ने फन फैलाया, प्रभु के सिर पर छत्र बनाया।
पद्मावती ने फन फैलाया, उस पर स्वामी को बैठाया।
कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोशरण देवेन्द्र रचाया।
यही जगह अहिच्छत्र कहाए, पात्र केशरी जहां पर आए।
शिष्य पांच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना।
पार्श्वनाथ का दर्शन पाया, सबने जैन धरम अपनाया।
अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी, जहां सुखी थी परजा सगरी।
राजा श्री वसुपाल कहाए, वो इक जिन मंदिर बनवाए।
प्रतिमा पर पालिश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया।
वह मिस्तरी मांस था खाता, इससे पालिश था गिर जाता।
मुनि ने उसे उपाय बताया, पारस दर्शन व्रत दिलवाया।
मिस्त्री ने व्रत पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना।
गदर सतावन का किस्सा है, इक माली का यों लिक्खा है।
वह माली प्रतिमा को लेकर, झट छुप गया कुए के अंदर।
उस पानी का अतिशय भारी, दूर होय सारी बीमारी।
जो अहिच्छत्र हृदय से ध्वावे, सो नर उत्तम पदवी वावे।
पुत्र संपदा की बढ़ती हो, पापों की इकदम घटती हो।
है तहसील आंवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी।
रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नारी-नर।
चालीसे को ‘चन्द्र’ बनाए, हाथ जोड़कर शीश नवाए।
।। सोरठा ।।
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगंध अपार, अहिच्छत्र में आय के।
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।।
ॐ जय पारस देवा, स्वामी जय पारस देवा |
सुर नर मुनिजन तुम चरणन की, करते नित सेवा |
सुर नर मुनिजन तुम चरणन की, करते नित सेवा |
Aarti
पौष वदी ग्यारस काशी में, आनंद अतिभारी-2,
अश्वसेन वामा माता उर-2, लीनो अवतारी |
ॐ जय पारस देवा |
श्यामवरण नवहस्त काय पग, उरग लखन सोहें-2,
सुरकृत अति अनुपम पा भूषण-2, सबका मन मोहें |
ॐ जय पारस देवा |
जलते देख नाग नागिन को, मंत्र नवकार दिया-2,
हरा कमठ का मान ज्ञान का-2, भानु प्रकाश किया |
ॐ जय पारस देवा |
मात पिता तुम स्वामी मेरे, आस करूँ किसकी-2,
तुम बिन दाता और न कोई , शरण गहूँ जिसकी |
ॐ जय पारस देवा |
तुम परमातम तुम अध्यातम, तुम अंतर्यामी-2,
स्वर्ग-मोक्ष के दाता तुम हो-2, त्रिभुवन के स्वामी |
ॐ जय पारस देवा |
दीनबंधु दु:खहरण जिनेश्वर, तुम ही हो मेरे-2,
दो शिवधाम को वास दास-2, हम द्वार खड़े तेरे |
ॐ जय पारस देवा |
विपद-विकार मिटाओ मन का, अर्ज सुनो दाता-2,
सेवक द्वै-कर जोड़ प्रभु के-2, चरणों चित लाता |
ॐ जय पारस देवा |
ॐ जय पारस देवा, स्वामी जय पारस देवा |
सुर नर मुनिजन तुम चरणन की, करते नित सेवा |
भजन श्रेणी : जैन भजन (Read More : Jain Bhajan)
पार्श्वनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Parshvanatha Chalisa Lyrics
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