संतोषी माता चालीसा लिरिक्स फायदे Santoshi Mata Chalisa Lyrics PDF, Santoshi Mata Chalisa PDF Download Lyrics Hindi Fayade
संतोषी माता की पूजा शुक्रवार को की जाती है। संतोषी माता श्री गणेश जी एवं देवी रिद्धि सिद्धि की पुत्री हैं। जैसे श्री गणेश जी और रिद्धि सिद्धि देवियों की कृपा होती है तो उस घर में सभी सुख सुविधाओं की आपूर्ति होती रहती है, घर में समृद्धि बनी रहती है वैसे ही माता संतोषी भी अपनी कृपा से घर में सभी सुख-सुविधाओं की पूर्ति करती हैं। घर को धन-धान्य से भर देती हैं। जैसा कि उनके नाम से ही विदित है संतोषी अथार्त जिसको संतोष प्राप्त हो, किसी भी परिस्थिति में संतोषी माता नाराज एवं क्रोधित नहीं होती है। वह हमेशा क्षीर सागर यानी कि दूध के सागर में सफेद कमल में विराजमान रहती हैं। उनका व्यवहार सदैव विनम्र ही रहता है। संतोषी माता अपने भक्तों पर हमेशा कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं।
॥ दोहा ॥
बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार ।
ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार ॥
भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम ।
कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम ॥
॥ चौपाई ॥
जय सन्तोषी मात अनूपम ।
शान्ति दायिनी रूप मनोरम ॥
सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा ।
वेश मनोहर ललित अनुपा ॥
बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार ।
ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार ॥
भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम ।
कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम ॥
॥ चौपाई ॥
जय सन्तोषी मात अनूपम ।
शान्ति दायिनी रूप मनोरम ॥
सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा ।
वेश मनोहर ललित अनुपा ॥
श्वेताम्बर रूप मनहारी ।
माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी ॥
दिव्य स्वरूपा आयत लोचन ।
दर्शन से हो संकट मोचन ॥ 4 ॥
जय गणेश की सुता भवानी ।
रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी ॥
अगम अगोचर तुम्हरी माया ।
सब पर करो कृपा की छाया ॥
नाम अनेक तुम्हारे माता ।
अखिल विश्व है तुमको ध्याता ॥
तुमने रूप अनेकों धारे ।
को कहि सके चरित्र तुम्हारे ॥ 8 ॥
धाम अनेक कहाँ तक कहिये ।
सुमिरन तब करके सुख लहिये ॥
विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी ।
कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी ॥
कलकत्ते में तू ही काली ।
दुष्ट नाशिनी महाकराली ॥
सम्बल पुर बहुचरा कहाती ।
भक्तजनों का दुःख मिटाती ॥ 12 ॥
ज्वाला जी में ज्वाला देवी ।
पूजत नित्य भक्त जन सेवी ॥
नगर बम्बई की महारानी ।
महा लक्ष्मी तुम कल्याणी ॥
मदुरा में मीनाक्षी तुम हो ।
सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो ॥
राजनगर में तुम जगदम्बे ।
बनी भद्रकाली तुम अम्बे ॥ 16 ॥
पावागढ़ में दुर्गा माता ।
अखिल विश्व तेरा यश गाता ॥
काशी पुराधीश्वरी माता ।
अन्नपूर्णा नाम सुहाता ॥
सर्वानन्द करो कल्याणी ।
तुम्हीं शारदा अमृत वाणी ॥
तुम्हरी महिमा जल में थल में ।
दुःख दारिद्र सब मेटो पल में ॥ 20 ॥
जेते ऋषि और मुनीशा ।
नारद देव और देवेशा ।
इस जगती के नर और नारी ।
ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी ॥
जापर कृपा तुम्हारी होती ।
वह पाता भक्ति का मोती ॥
दुःख दारिद्र संकट मिट जाता ।
ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता ॥ 24 ॥
जो जन तुम्हरी महिमा गावै ।
ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै ॥
जो मन राखे शुद्ध भावना ।
ताकी पूरण करो कामना ॥
कुमति निवारि सुमति की दात्री ।
जयति जयति माता जगधात्री ॥
शुक्रवार का दिवस सुहावन ।
जो व्रत करे तुम्हारा पावन ॥ 28 ॥
गुड़ छोले का भोग लगावै ।
कथा तुम्हारी सुने सुनावै ॥
विधिवत पूजा करे तुम्हारी ।
फिर प्रसाद पावे शुभकारी ॥
शक्ति-सामरथ हो जो धनको ।
दान-दक्षिणा दे विप्रन को ॥
वे जगती के नर औ नारी ।
मनवांछित फल पावें भारी ॥ 32 ॥
जो जन शरण तुम्हारी जावे ।
सो निश्चय भव से तर जावे ॥
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे ।
निश्चय मनवांछित वर पावै ॥
सधवा पूजा करे तुम्हारी ।
अमर सुहागिन हो वह नारी ॥
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा ।
भवसागर से उतरे पारा ॥ 36 ॥
जयति जयति जय संकट हरणी ।
विघ्न विनाशन मंगल करनी ॥
हम पर संकट है अति भारी ।
वेगि खबर लो मात हमारी ॥
निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता ।
देह भक्ति वर हम को माता ॥
यह चालीसा जो नित गावे ।
सो भवसागर से तर जावे ॥ 40 ॥
॥ दोहा ॥
संतोषी माँ के सदा बंदहूँ पग निश वास ।
पूर्ण मनोरथ हो सकल मात हरौ भव त्रास ॥
॥ इति श्री संतोषी माता चालीसा ॥
माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी ॥
दिव्य स्वरूपा आयत लोचन ।
दर्शन से हो संकट मोचन ॥ 4 ॥
जय गणेश की सुता भवानी ।
रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी ॥
अगम अगोचर तुम्हरी माया ।
सब पर करो कृपा की छाया ॥
नाम अनेक तुम्हारे माता ।
अखिल विश्व है तुमको ध्याता ॥
तुमने रूप अनेकों धारे ।
को कहि सके चरित्र तुम्हारे ॥ 8 ॥
धाम अनेक कहाँ तक कहिये ।
सुमिरन तब करके सुख लहिये ॥
विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी ।
कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी ॥
कलकत्ते में तू ही काली ।
दुष्ट नाशिनी महाकराली ॥
सम्बल पुर बहुचरा कहाती ।
भक्तजनों का दुःख मिटाती ॥ 12 ॥
ज्वाला जी में ज्वाला देवी ।
पूजत नित्य भक्त जन सेवी ॥
नगर बम्बई की महारानी ।
महा लक्ष्मी तुम कल्याणी ॥
मदुरा में मीनाक्षी तुम हो ।
सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो ॥
राजनगर में तुम जगदम्बे ।
बनी भद्रकाली तुम अम्बे ॥ 16 ॥
पावागढ़ में दुर्गा माता ।
अखिल विश्व तेरा यश गाता ॥
काशी पुराधीश्वरी माता ।
अन्नपूर्णा नाम सुहाता ॥
सर्वानन्द करो कल्याणी ।
तुम्हीं शारदा अमृत वाणी ॥
तुम्हरी महिमा जल में थल में ।
दुःख दारिद्र सब मेटो पल में ॥ 20 ॥
जेते ऋषि और मुनीशा ।
नारद देव और देवेशा ।
इस जगती के नर और नारी ।
ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी ॥
जापर कृपा तुम्हारी होती ।
वह पाता भक्ति का मोती ॥
दुःख दारिद्र संकट मिट जाता ।
ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता ॥ 24 ॥
जो जन तुम्हरी महिमा गावै ।
ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै ॥
जो मन राखे शुद्ध भावना ।
ताकी पूरण करो कामना ॥
कुमति निवारि सुमति की दात्री ।
जयति जयति माता जगधात्री ॥
शुक्रवार का दिवस सुहावन ।
जो व्रत करे तुम्हारा पावन ॥ 28 ॥
गुड़ छोले का भोग लगावै ।
कथा तुम्हारी सुने सुनावै ॥
विधिवत पूजा करे तुम्हारी ।
फिर प्रसाद पावे शुभकारी ॥
शक्ति-सामरथ हो जो धनको ।
दान-दक्षिणा दे विप्रन को ॥
वे जगती के नर औ नारी ।
मनवांछित फल पावें भारी ॥ 32 ॥
जो जन शरण तुम्हारी जावे ।
सो निश्चय भव से तर जावे ॥
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे ।
निश्चय मनवांछित वर पावै ॥
सधवा पूजा करे तुम्हारी ।
अमर सुहागिन हो वह नारी ॥
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा ।
भवसागर से उतरे पारा ॥ 36 ॥
जयति जयति जय संकट हरणी ।
विघ्न विनाशन मंगल करनी ॥
हम पर संकट है अति भारी ।
वेगि खबर लो मात हमारी ॥
निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता ।
देह भक्ति वर हम को माता ॥
यह चालीसा जो नित गावे ।
सो भवसागर से तर जावे ॥ 40 ॥
॥ दोहा ॥
संतोषी माँ के सदा बंदहूँ पग निश वास ।
पूर्ण मनोरथ हो सकल मात हरौ भव त्रास ॥
॥ इति श्री संतोषी माता चालीसा ॥
संतोषी माता भजन अवश्य ही देखें Santoshi Mata Bhajan
श्री संतोषी माँ चालीसा लिरिक्स हिंदी
।।दोहा।।श्री गणपति पद नाय सिर, धरि हिय शारदा ध्यान ।
संतोषी माँ की करूं, कीरति सकल बखान ।।
।।चौपाई।।
जय संतोषी मां जग जननी । खल मति दुष्ट दैत्य दल हननी ।।
गणपति देव तुम्हारे ताता । रिद्धि सिद्धि कहलावहं माता ।।
माता-पिता की रहौ दुलारी । कीरति केहि विधि कहूं तुम्हारी ।।
क्रीट मुकुट सिर अनुपम भारी । कानन कुंडल को छवि न्यारी ।।
सोहत अंग छटा छवि प्यारी । सुंदर चीर सुनहरी धारी ।।
आप चतुर्भुज सुघड़ विशाला । धारण करहु गले वन माला ।।
निकट है गौ अमित दुलारी । करहु मयूर आप असवारी ।।
जानत सबही आप प्रभुताई । सुर नर मुनि सब करहिं बड़ाई ।।
तुम्हरे दरश करत क्षण माई । दुख दरिद्र सब जाय नसाई ।।
वेद पुराण रहे यश गाई । करहु भक्त की आप सहाई ।।
ब्रह्मा ढ़िंग सरस्वती कहाई । लक्ष्मी रूप विष्णु ढिंग आई ।।
शिव ढिंग गिरजा रूप बिराजी । महिमा तीनों लोक में गाजी ।।
शक्ति रूप प्रगटी जन जानी । रुद्र रूप भई मात भवानी ।।
दुष्ट दलन हित प्रगटी काली । जगमग ज्योति प्रचंड निराली ।।
चण्ड मुण्ड महिषासुर मारे । शुम्भ निशुम्भ असुर हनि डारे ।।
महिमा वेद पुरानन बरनी । निज भक्तन के संकट हरनी ।।
रूप शारदा हंस मोहिनी । निरंकार साकार दाहिनी ।।
प्रगटाई चहुंदिश निज माया । कण-कण में है तेज समाया ।।
पृथ्वी सूर्य चंद्र अरू तारे । तव इंगित क्रमबद्ध हैं सारे ।।
पालन पोषण तुमहीं करता । क्षण भंगुर में प्राण हरता ।।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं । शेष महेश सदा मन लावैं ।।
मनोकामना पूरण करनी । पाप काटनी भव भय तरनी ।।
चित्त लगाय तुम्हें जो ध्याता । सो नर सुख सम्पत्ति है पाता ।।
बन्ध्या नारि तुमहिं जो ध्यावैं । पुत्र पुष्प लता सम वह पावैं ।।
पति वियोगी अति व्याकुल नारी । तुम वियोग अति व्याकुल यारी ।।
कन्या जो कोई तुमको ध्यावै । अपना मनवांछित वर पावै ।।
शीलवान गुणवान हो मैया । अपने जन की नाव खिवैया ।।
विधि पूर्वक व्रत जो कोई करहीं । ताहि अमित सुख सम्पत्ति भरहीं ।।
गुड़ और चना भोग तोहि भावै । सेवा करै सो आनंद पावै ।।
श्रद्धा युक्त ध्यान जो धरहीं । सो नर निश्चय भव सों तरहीं ।।
उद्यापन जो करहि तुम्हारा । ताको सहज करहु निस्तारा ।।
नारि सुहागिन व्रत जो करती । सुख सम्पत्ति सों गोदी भरती ।।
सो सुमिरन जैसी मन भावा । सो नर वैसो ही फल पावा ।।
सात शुक्र जो ब्रत मन धारे । ताके पूर्ण मनोरथ सारे ।।
सेवा करहि भक्ति युत जोई । ताको दूर दरिद्र दुख होई ।।
जो जन शरण माता तेरी आवै । ताके क्षण में काज बनावै ।।
जय जय जय अम्बे कल्यानी । कृपा करौ मोरी महारानी ।।
जो कोई पढ़ै मात चालीसा । तापे करहिं कृपा जगदीशा ।।
नित प्रति पाठ करै इक बारा । सो नर रहै तुम्हारा प्यारा ।।
नाम लेत ब्याधा सब भागे । रोग दोष कबहूं नहीं लागे ।।
।।दोहा।।
संतोषी मां के सदा बन्दहुं पग निश वास ।
पूर्ण मनोरथ हों सकल मात हरौ भव त्रास ।।
संतोषी माता का चालीसा पढ़ते समय ध्यान रखने योग्य बातें.
- संतोषी माता का चालीसा पढ़ते समय और उनका व्रत करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए.
- संतोषी माता का व्रत शुक्रवार को होता है।
- संतोषी माता की पूजा शुक्रवार को की जाती है।
- संतोषी माता की पूजा करते समय संतोषी माता का चालीसा का पाठ करना अत्यंत फलदाई होता है। संतोषी माता का चालीसा का पाठ करते समय साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें।
- घर को अच्छे से साफ करें।
- मंदिर में साफ सफाई करके मूर्ति को लाल कपड़े पर विराजित करें।
- तांबे के कलश में पानी भरकर रखें।
- गाय के घी से दीपक जलाएं।
- संतोषी माता के व्रत की कथा एवं चालीसा पढ़ते समय चने और गुड़ से ही संतोषी माता की कथा सुननी चाहिए।
- कथा सुनने के बाद एवं चालिसा का पाठ करने के बाद गुड़ और चने को प्रसाद के रूप में बच्चों को बांट दें।
- कथा सुनने एवं चालीसा का पाठ करने के पश्चात कलश के पानी को घर में छिड़के और बचे हुए पानी को तुलसी को अर्पित करें।
- ध्यान रखें छाछ और दही का प्रयोग बिल्कुल भी ना करें।
- शुक्रवार के व्रत में दही और छाछ खाना और खिलाना वर्जित है।
संतोषी माता माता का चालीसा पाठ करने के फायदे.
- संतोषी माता श्री गणेश जी भगवान एवं माता रिद्धि सिद्धि की पुत्री हैं। इनके चालीसा का पाठ करने से घर में रिद्धि-सिद्धि आती है।
- घर में संपन्नता में वृद्धि होती है।
- घर में सभी व्यक्तियों को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- घर में आर्थिक संपन्नता आती है।
- संतोषी माता का चालीसा का पाठ करने से मन में शांति एवं संतोष की प्राप्ति होती है।
- संतोषी माता का चालीसा का पाठ करने से घर में सभी व्यक्तियों की बुद्धि का विकास होता है।
- सभी बुद्धिमान बनते हैं।
- संतोषी माता का चालीसा का पाठ करने से बुद्धि का विकास होता है।
- व्यक्ति बुद्धिमान एवं प्रगतिशील बनता है।
- व्यक्ति स्वभाव से विनम्र बनता है।
- संतोषी माता का चालीसा का पाठ करने से सभी दुख दर्द दूर होते हैं।
- सभी समस्याओं का निराकरण हो जाता है।
- सोलह शुक्रवार का तक संतोषी माता के व्रत करने से सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।
- आस्था और विश्वास के साथ सोलह शुक्रवार करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
- सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- संतोषी माता का की कृपा प्राप्त करने के लिए शुक्रवार के व्रत के दिन दही छाछ का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
भजन श्रेणी : माता रानी भजन (Mata Rani Bhajan)
संतोषी माता जी की यह चालीसा अवश्य सुने हर वक़्त संतोषी माता जी घर मैं धन सुख समृद्धि बढ़ती है
श्री संतोषी मां की आरती
जय संतोषी माता जय संतोषी माता ।
अपने जन को सुख सम्पत्ति दाता ।।
सुंदर वीर सुनहरी मां धारण कीन्हों ।
हीरा पन्ना दमके तन श्रृंगार लीन्हों ।।
गेरू लाल छटा छवि बदन कमल सोहे ।
मंद हंसत करुणामयी त्रिभुवन मन मोहे ।।
स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर ढुरे प्यारे ।
धूप, दीप, नैवेद्य, मधुमेवा भोग धरे न्यारे ।।
गुड़ अरु चना परम प्रिय तामें संतोष कियो ।
संतोषी कहलाई भक्तन वैभव दियो ।।
शुक्रवार प्रिया मानत आज दिवस सोही ।
भक्ति मंडली छाई कथा सुनत मोही ।।
मंदिर जगमग ज्योति मंगल ध्वनि छाई ।
विनय करें हम बालक चरनन सिर नाई ।।
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जो मन बसै हमारे इच्छा फल दीजै ।।
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जय संतोषी माता जय संतोषी माता ।
अपने जन को सुख सम्पत्ति दाता ।।
सुंदर वीर सुनहरी मां धारण कीन्हों ।
हीरा पन्ना दमके तन श्रृंगार लीन्हों ।।
गेरू लाल छटा छवि बदन कमल सोहे ।
मंद हंसत करुणामयी त्रिभुवन मन मोहे ।।
स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर ढुरे प्यारे ।
धूप, दीप, नैवेद्य, मधुमेवा भोग धरे न्यारे ।।
गुड़ अरु चना परम प्रिय तामें संतोष कियो ।
संतोषी कहलाई भक्तन वैभव दियो ।।
शुक्रवार प्रिया मानत आज दिवस सोही ।
भक्ति मंडली छाई कथा सुनत मोही ।।
मंदिर जगमग ज्योति मंगल ध्वनि छाई ।
विनय करें हम बालक चरनन सिर नाई ।।
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जो मन बसै हमारे इच्छा फल दीजै ।।
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