दर पे आके तेरे साईं बाबा भजन
दर पे आके तेरे साईं बाबा भजन
दर पे आके तेरे साईं बाबा,
कुछ सुनाने को दिल चाहता है।
ना जुदा अपने चरणों से करना,
सर झुकाने को दिल चाहता है।।
मैं जहाँ भी गया, मैंने देखा,
लोग हैं स्वार्थी इस जहाँ में,
बात है कुछ दबी-सी लबों पे,
वो बताने को दिल चाहता है।।
थाम लो बाबा दामन हमारा,
अब मुझे बस है तेरा सहारा।
मोह-माया भरे झूठे जग से,
मन हटाने को दिल चाहता है।।
बस यही एक कृपा मुझपे कर दो,
हाथ हो तेरा सर पे हमारे।
भक्ति-रस में तुम्हारे ओ बाबा,
डूब जाने को दिल चाहता है।।
नाम का जाम मुझको पिला दो,
बस यही आपसे माँगते हैं।
‘परशुराम’ छवि बाबा की मन में,
बस बसाने को दिल चाहता है।।
दर पे आके तेरे साईं बाबा,
कुछ सुनाने को दिल चाहता है।
ना जुदा अपने चरणों से करना,
सर झुकाने को दिल चाहता है।।
कुछ सुनाने को दिल चाहता है।
ना जुदा अपने चरणों से करना,
सर झुकाने को दिल चाहता है।।
मैं जहाँ भी गया, मैंने देखा,
लोग हैं स्वार्थी इस जहाँ में,
बात है कुछ दबी-सी लबों पे,
वो बताने को दिल चाहता है।।
थाम लो बाबा दामन हमारा,
अब मुझे बस है तेरा सहारा।
मोह-माया भरे झूठे जग से,
मन हटाने को दिल चाहता है।।
बस यही एक कृपा मुझपे कर दो,
हाथ हो तेरा सर पे हमारे।
भक्ति-रस में तुम्हारे ओ बाबा,
डूब जाने को दिल चाहता है।।
नाम का जाम मुझको पिला दो,
बस यही आपसे माँगते हैं।
‘परशुराम’ छवि बाबा की मन में,
बस बसाने को दिल चाहता है।।
दर पे आके तेरे साईं बाबा,
कुछ सुनाने को दिल चाहता है।
ना जुदा अपने चरणों से करना,
सर झुकाने को दिल चाहता है।।
Sai Bhajan | तेरे दर पर आए है साई हम | Tere Dar Pe Aye Hai Sai Hum | #sai #saibaba #shridisaibaba
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सच्चे हृदय से ईश्वर के चरणों में शरण लेने की भावना मनुष्य के भीतर तब जागृत होती है, जब वह जीवन की नश्वरता और संसार की क्षणभंगुरता को गहराई से अनुभव करता है। यह भावना उस आंतरिक पुकार से उपजती है, जो सांसारिक बंधनों से मुक्ति और परम सत्य के प्रति समर्पण की ओर प्रेरित करती है। मनुष्य का मन जब संसार के स्वार्थ, लोभ और माया के जाल में उलझकर थक जाता है, तब वह उस अनंत करुणा और प्रेम के स्रोत की ओर मुड़ता है, जहाँ उसे शांति और स्थिरता का आलंबन मिलता है। यह शरणागति केवल बाहरी उपासना नहीं, बल्कि एक गहन आंतरिक यात्रा है, जो मन को सांसारिकता के बंधनों से मुक्त कर, उसे ईश्वरीय प्रेम के रंग में रंग देती है। इस यात्रा में भक्त का हृदय उस परम शक्ति के समक्ष नतमस्तक होता है, जो जीवन के हर दुख और संकट में एकमात्र सहारा बनकर उभरती है।
संसार के झूठे आकर्षणों से मन को हटाकर, ईश्वर के नाम में डूबने की इच्छा तब और प्रबल होती है, जब भक्त को यह अनुभूति होती है कि सच्चा सुख केवल उसी अनंत सत्ता के साथ एकाकार होने में है। यह भावना मन को उस पवित्र रस में सराबोर कर देती है, जहाँ न कोई भय रहता है, न कोई अभाव। ईश्वर का नाम एक ऐसा अमृत है, जो मन के सारे विकारों को धो डालता है और उसे निर्मल कर देता है। भक्त की यह तीव्र इच्छा कि वह अपने हृदय में केवल ईश्वर की छवि को बसाए, एक ऐसी आध्यात्मिक प्यास को दर्शाती है, जो संसार के किसी भी सुख से परे है। यह प्यास केवल भक्ति के मार्ग पर चलकर, ईश्वर की कृपा और उनके प्रेम में पूर्ण समर्पण के माध्यम से ही शांत होती है, जो जीवन को एक नया अर्थ और दिशा प्रदान करती है।
संसार के झूठे आकर्षणों से मन को हटाकर, ईश्वर के नाम में डूबने की इच्छा तब और प्रबल होती है, जब भक्त को यह अनुभूति होती है कि सच्चा सुख केवल उसी अनंत सत्ता के साथ एकाकार होने में है। यह भावना मन को उस पवित्र रस में सराबोर कर देती है, जहाँ न कोई भय रहता है, न कोई अभाव। ईश्वर का नाम एक ऐसा अमृत है, जो मन के सारे विकारों को धो डालता है और उसे निर्मल कर देता है। भक्त की यह तीव्र इच्छा कि वह अपने हृदय में केवल ईश्वर की छवि को बसाए, एक ऐसी आध्यात्मिक प्यास को दर्शाती है, जो संसार के किसी भी सुख से परे है। यह प्यास केवल भक्ति के मार्ग पर चलकर, ईश्वर की कृपा और उनके प्रेम में पूर्ण समर्पण के माध्यम से ही शांत होती है, जो जीवन को एक नया अर्थ और दिशा प्रदान करती है।
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Author - Saroj Jangir
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